..तो मोदी का नाम नहीं मिलेगा

गृहमंत्री अमित शाह किसान आंदोलन के मददेनजर जाट सांसदों के साथ दिल्ली में मीटिंग कर रहे थे। उन्होंने इन जाट सांसदों से अपने अपने लोकसभा क्षेत्र में जाकर लोगों को तीन किसान कानूनों के फायदे बताने के लिए कहा। इसी दौरान हरियाणा के एक सांसद कहने लगे कि उनको जनता के बीच जाने में हर्ज नहीं है,लेकिन इस से पहले सरकार को किसानों की कुछ मांगें तो मान लेनी चाहिए ताकि वे जनता में जाने लायक हो सकें। लोगों को बताने लायक हो सकें। समझाने लायक हो सकें। मुंह दिखाने लायक हो सकें। इतना सुनते ही अमित शाह तमतमा उठे। कहने लगे कि मुझे सबका पता है कि कौन क्या है और क्या करता है? अगर अब आप लोग गांवों में नहीं जाते या नहीं जाना चाहते तो ये याद रख लेना अगला लोकसभा चुनाव अपने आप ही लड़ लेना। अपने दम पर लड़ लेना। अगले चुनाव में आपको मोदी का नाम नहीं मिलेगा। मोदी का सहारा नहीं मिलेगा। इस हालात पर यही कहा जा सकता है:

कोई ठिकाना नहीं ख्वाबों का कब क्या आ जाए
आज सुकूं है ख्वाबों में कल यही मेरी जान ले जाये

राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया

जब से केंद्र में भाजपा सरकार आई है देश में अदभुत विकास हो रहा है। विकास कुलांचे भर कर सरपट दौड़ा जा रहा है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि पैट्रोल और डीजल की बढती कीमतों का सीधा सबंध अब सिर्फ और सिर्फ विकास से है। विकास से ऐसा सीधा सात्विक और पवित्र रिश्ता इसी सरकार में संभव है। अब तो कभी किसी दिन डीजल-पैट्रोल के दाम नहीं बढते तो आशंका होने लगती है कि कहीं देश का विकास ठिठक तो नहीं जाएगा? इस से पहले अगर किसी सरकार में पैट्रोलिमय पदाथों के दाम बढते थे तो उस सरकार की आलोचना होती थी। अब अगर आलोचना कर दी गई तो ये राष्ट्रनिर्माण मेंं अवरोध खड़ा करने की साजिश मानी जाएगी।

सरकार चलाने वाले एक सज्जन तो ये तक फरमा रहे हैं कि पैट्रोलियम पदार्थो की बढती कीमत तो पिछली सरकार की गलत नीतियों का रिजल्ट है। मान लिया कि इसके लिए जवाहरलाल नेहरू और उनके वंशजों की गलत नीतियां उत्तरदायी हैं। आप ये भी तो बतलाइए हुजूर अगर आपने ने अपने फैसलों के लिए पिछली सरकारों को ही कोसना है तो फिर आप को जनता ने दिल्ली के राजतख्त पर क्यंू बिठाया? अगर आप जनता के इतने ही शुभचिंतक हैं तो बदल दो पहले की सरकारों की गलत नीतियों को। आप को किसने रोका है? पिछलों को गलत मान कर और आपको सही मान कर ही तो जनता ने आप को राजपाठ सौंपा था। जो कारोबारी बाबा और फिल्म स्टार यूपीए राज में पैट्रोलियम पदार्थो की कीमत बढने पर तब की सरकार की आलोचना करते थे अब उनके मुंह में दही जमा हुआ है। खौफ इसी चिड़िया का नाम है। कोई चंू नहीं कर रहा। उल्टे इसे जनहितैषी फैसला साबित करने पर तुले हैं।

इस पुण्य काम को राष्ट्रवाद से जोड़ने का काम मीडिया वालों के जिम्मे लगाया है। इक बड़े न्यूज चैनल के बड़े न्यूज ऐंकर दर्शकों को मूर्ख बनाने की प्रक्रिया में संलिप्त होते हुए समझा रहे थे कि देश को ये समझना चाहिए कि डीजल-पैट्रोल के दामों से इकटठा होने वाल पैसा सरकार अपने घर नहीं ले जाती। ये पैसा तो राष्ट्र निर्माण पर ही खर्च होता है। जैसे कि पहले की सरकारों में दाम बढने का पैसा नेताओं के बैंक एकाउंट में जाता हो। भाजपा सरकार की ये भी एक अनूठी उपलब्धि है कि इसने पिछले कुछ बरसों में तथाकथित बुद्धिजीवियों की एक ऐसी जमात खड़ी की है जो ऐसे फैसलों को न्यायसंगत बतलाने के लिए तरह तरह के कुतर्क गढने में लग जाते हैं।

ऐसे ही एक तथाकथित बुद्धीजीवी से पूछा गया कि नेपाल-श्रीलंका-पाकिस्तान तक में पैट्रोल और डीजल सस्ता है,तो भारत में महंगा क्यूं है? इस पर उन्होंने ये गजब का लाजिक दिया कि ये तो मोदी जी की दूरदर्शी सोच का नतीजा है। ये पट्रोलियम पदार्थ स्थाई नहीं है। एक न एक दिन इनका भंडार खत्म हो जाएगा। इनके कुएं सूख जाएंगे। मोदी जी ने कीमत इसलिए बढाई-बढवाई हैं ताकि देश के लोगों में जागृति आए और वो डीजल-पैट्रोल का कम से कम इस्तेमाल करें। पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचे। लोग साईकिल का इस्तेमाल ज्यादा करें। पैदल चलें। ताकि वो फिट रह सकें।

ये तो हुई भाजपा की बात। लेकिन, कांग्रेस कौन सा कम है? कांग्रेसी पैट्रोल-डीजल की कीमतों पर क्यंू हाय तौबा कर रहे हैं? किस हक से आलोचना कर रहे हैं? अगर कांग्रेसी इतने ही जनता के शुभचिंतक हैं तो जहां जहां इस पार्टी की सरकार है उनको डीजल-पैट्रोल पर टैक्स कम करना चाहिए ताकि जनता को पता लगे कि इस पार्टी के लोग अन्य सियासी दलों की तरह सिर्फ घड़ियाली आंसू ही नहीं बहाते, बल्कि जनता को दुख दर्द से उबारने के लिए ठोस पहल करना भी जानते हैं। सब सरकारों की इस जनहितैषी सोच को नमन करते हुए बेचारी जनता तो महज ये ही कह सकती है कि:
तुम्हें पा के हमने जहां पा लिया है
जमीं तो जमीं आसमां पा लिया है
जमाने के गम प्यार में ढल गए हैं
उम्मीदों के लाखों दीए जल गए हैं
के जब से तुम्हें मेहरबां पा लिया है

इप्शिता खुल्लर

मुख्यमंत्री मनोहरलाल के अभूतपूर्व प्रधान सचिव और वर्ल्ड बैंक के कार्यकारी निदेशक राजेश खुल्लर की प्रतिभाशाली बेटी इप्शिता के एक गाने ने इन दिनों यू टयूब पर धूम मचाई हुई है। ये गीत 19 फरवरी को यू टयूब व अन्य प्लेटफार्म पर लांच हुआ। दो दिन के भीतर इस गाने को यू टयूब पर करीब 60 लाख लोग देख चुके हैं। सोलो लैला शीर्षक से रिलीज इस गाने के बोल हैं: दुनिया तो पुरानी है-मेरी नई कहानी है,मेरे तौर तरीके देख कर सबको हैरानी है। अमेरिका की प्रतिष्ठित येल यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त इप्शिता के दो महीने पहले हनी सिंह के साथ करीब दो महीने लांच हुए एक अन्य गीत को भी गजब का रिस्पांस मिला है। यू टयूब पर इसे अब तक 140 मिलियन व्यूज मिल चुके हैं।

समय का फेर

समय परिवर्तनशील है। एक समय हरियाणा में जरूरत से ज्यादा सक्रिय रहे भाजपा आलाकमान के नेता को पार्टी ने इन दिनों कुछ बर्फ में लगा रक्खा है। यंू तो इन नेता जी को राज्यसभा सांसद भी बना रक्खा है,लेकिन उनको इस से ज्यादा मिलने की आस थी। केंद्र में मंत्री बनने की हसरत थी। बताते हैं कि इन दिनों उनका वो जलवा नहीं है जो कई बरस लगातार रहा। एक समय इनके पास मिलने वालों की लाइन लगी रहती थी-मारामारी रहती थी,लेकिन अब इनको लोग मिलने नहीं आते। लिहाजा अपने अच्छे दिनों को याद कर कर के ये नेता जी कुछ कुछ डिप्रैशन में चले गए हैं। इस बीमारी उबरने के लिए डाक्टरी परामर्श ले रहे हैं। एक वो दौर भी था जब इन नेता जी के कारण हरियाणा के कई नेता डिप्रैशन में चले गए थे। ईश्वर भी सबका बही खाता अपने पास रखता है। सारा हिसाब यहीं करता है। इस हालात पर बहादुरशाह जफर का एक शेर है:
ये किस्सा वो नहीं तुम जिसे किस्सा-ख्वां से सुनो
मेरे फसाना-ए-गम को मेरी जुबां से सुनो

कष्ट निवारण

हरियाणा की जनता काफी समय से अपने मंत्रियों से उम्मीद लगाए बैठी है कि वे उनके कष्टों का निवारण करेंगे। मंत्री हैं कि जनता के अरमानों को पूरा करने के लिए जरा भी गौर नहीं कर रहे। या यंू कहें कि जब मंत्रियों के खुद के कष्टों का ही निवारण नहीं हुआ तो फिर व जनता की तकलीफ का हरण कैसे करें? दरअसल ज्यादातर मंत्री काफी समय से अपने जिलों में कष्ट निवारण कमेटी की मीटिंग करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। सीआईडी ने भी रिपोर्ट दे रक्खी है कि किसान आंदोलन के मददेनजर सत्तारूढ भाजपा के मंत्री-विधायक जनता में जाने से बचें। इस कारण से इनकी गतिविधियां या तो पंचकूला-अंबाला या फिर गुड़गामा-फरीदाबाद क्षेत्र तक सीमित हो गई हैं। ऐसा भी हरियाणा में लगभग पहली दफा हुआ कि किसान आंदोलन के मददेनजर मुख्यमंत्री समेत कई मंत्रियों के गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराने के कार्यक्रम में ऐन मौके पर बदलाव किया गया।

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