कई किसान अपने गांवों को लौट रहे हैं. महीने पहले जहां धरनास्थल पर हजारों कैंप नजर आ रहे थे, अब उनके आधे ही रह गए हैं. दिल्ली – राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के गाजीपुर और सिंघू बॉर्डर पर किसानों की भीड़ कम होती दिख रही है. किसान वहां पर केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ करीब 80 से ज्यादा दिनों से धरने पर बैठे हैं, लेकिन कोई हल निकलता हुआ नहीं दिख रहा है. कई किसान अपने गांवों को लौट रहे हैं. महीने पहले जहां धरनास्थल पर हजारों कैंप नजर आ रहे थे, अब उनके आधे ही रह गए हैं. जब पूछा गया कि क्या प्रदर्शन कमजोर पड़ रहा है तो किसानों ने कहा कि यह साफ है कि यह लड़ाई लंबी चलने वाली है. बॉर्डर पर किसानों की संख्या कम करना, उनकी नई रणनीति का हिस्सा है, जो कि आंदोलन को विस्तार देने के लिए बनाई गई है अब फोकस आंदोलन के लिए समर्थन हासिल करने के लिए राज्यों में बड़े स्तर पर रैलियां करने पर है. किसान नेता राकेश टिकैत ने पूरे देश में महापंचायत करने की योजना बनाई थी. वह अगले कुछ दिनों में हरियाणा, महाराष्ट्र और राजस्थान में ऐसी कई किसान बैठकों में शामिल होंगे. किसानों और सरकार के बीच गतिरोध बना हुआ है, कई स्तर की वार्ता के बाद भी कोई भी पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं है. किसानों ने सरकार के 18 महीने के लिए कृषि कानूनों पर रोक लगाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. प्रदर्शन कर रहे एक किसान ने बताया, ‘अगर यहां 10 लाख लोग इकट्ठा हो जाएंगे तो क्या होगा? क्या सरकार ये कानून वापस ले लेंगी? हम पूरे देश में प्रदर्शन कर रहे हैं. सभी जिलों में हमारे लोग फैल रहे हैं. बैठकें हो रही हैं.’ गाजीपुर प्रदर्शन कमेटी के प्रवक्ता जगतार सिंह बाजवा ने कहा, ‘सरकार की हठ को ध्यान में रखते हुए पहले सीमाओं को प्रदर्शन का केंद्र बनाया गया था.’ साथ ही उन्होंने कहा, ‘किसान नेता प्रदर्शन के लिए रणनीतियां बदल रहे हैं, ताकि हर गांव के हर घर तक आंदोलन पहुंच सके. हम अलग-अलग जगह पर महापंचायत का आयोजन कर रहे हैं.’ बाजवा ने कहा, ‘हमें युवाओं की ऊर्जा का उपयोग करने की जरूरत है. किसान अपना काम करने के साथ ही आंदोलन को भी आगे बढ़ा सकते हैं. अब यह केवल सीमाओं तक ही नहीं है, बल्कि एक खेत में काम करते हुआ किसान भी इसका हिस्सा है.’ किसान नेताओं ने यह भी दावा किया कि बुलाने पर किसान कुछ ही समय में बॉर्डर पर पहुंचने के लिए हमेशा तैयार हैं. बाजवा ने कहा, ‘गाजीपुर बॉर्डर पर हमें संख्या बढ़ानी होगी तो एक दिन में एक लाख लोग पहुंच जाएंगे. आंदोलन में हिस्सा ले रहे एक्टिविस्टों का भी कहा है कि आंदोलन का विकेन्द्रीकरण फैसला अहम है. रेमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित एक्टिविस्ट संदीप पांडे ने कहा, ‘पंजाब, हरियाणा और अन्य स्थानों पर छोटे आंदोलन हुए हैं. अब वे और बढ़ रहे हैं. बिहार में रैलियां हो रही हैं, पूर्वी उत्तर प्रदेश, अवध के किसान ट्रैक्टरों पर नहीं आ सकते, इसलिए हम लोग वहीं पर रैलियां करने की योजना बना रहे हैं.’ Post navigation लगातार 7वें दिन महंगा हुआ पेट्रोल-डीजल इनसो जल्द चलाएगी हाईटेक सदस्यता अभियान, कई राज्यों से लाखों नए सदस्य जोड़ने का लक्ष्य