-कमलेश भारतीय 

जुबान का क्या है । फिसल जाती है और मुश्किल में फंसा देती है । बोलती तो जीभ है पर फजीहत इंसान की होती है । अब जबान तो जुबान है । वो चाहे मंत्री जी की हो या किसी छोटे आदमी की । फिसल गयी तो फिसल गयी । अब क्या किया जाये ? सांसत में जान फंसी । कहते हैं कि जुबान तो बोल कर अंदर चली जाती है जबकि भुगतना पड़ता है इंसान को .

हरियाणा के कृषि मंत्री जी ने प्रधानमंत्री जी की आंदोलनजीवी की तर्ज पर कह दिया कि लाल झंडे वाले चंदा चोर ही नहीं चंदाजीवी हैं । बस हो गया घमासान । यही नहीं उत्तरप्रदेश के किसान नेताओं को सड़कछाप कहने से भी संकोच नहीं किया । अब बवंडर मचना था मच गया । इतने संवेदनहीन कृषि मंत्री के होते आप किसान के प्रति क्या उम्मीद कर सकते हैं ?

इससे बड़ी संवेदनहीनता क्या हो सकती है कि मंत्री महोदय ने आंदोलन में मारे गये किसानों के बारे में कहा कि इन किसानों की स्वाभाविक मृत्यु नहीं हुई । वाह । फिर क्यों गांवों में हर किसी के निधन पर गोड्डे मोड़ने जाते हो ? इतनी निषुठुरता ? बहुत अफसोस रहेगा मंत्री जी । यह जनता है और यह किसानों का मुद्दा है । कुछ ढंग से बोलते । या न ही बोलते । पर आप तो हंसें भी और एक प्रकार से किसान आंदोलन का मज़ाक भी उड़ाया । वीडियो भी वायरल हुआ तो माफी भी मांगी पर शब्द तो तीरकमान से छूटे तीर की तरह छूट चुके हैं ।  यसां तक कि इनकी प्रेस कांफ्रेस का विरोध भी हो सकता है । इतने ऊंचे न उड़िए । पांव ज़मीं पर ही रखिएगा ।

कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष सैलजा कह रही हैं कि किसान आंदोलन से दुनिया जाग गयी लेकिन केंद्र सरकार नींद में है । दीपेंद्र हुड्डा राज्यसभा में इस मुद्दे को जोरदार ढंग से उठा रहे हैं । खाप पंचायतें सक्रिय हो चुकी हैं । रेल रोको जैसे कार्यक्रम घोषित किये जा रहे हैं । ऐसे में एक राज्य के कृषि मंत्री का यह बयान क्या गुल खिलायेगा ? 

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