कमलेश भारतीय

हमारे प्रधानमंत्री पर इनेलो नेता अभय चौटाला ने एक मज़ेदार चुटकी ली कि नरेंद्र मोदी जी अच्छे कथावाचक तो हो सकते हैं लेकिन अच्छे प्रधानमंत्री नहीं । यह विचार उनके मन में प्रधानमंत्री जी के विभिन्न विषयों पर की गयी टिप्पणियों के आधार पर बने होंगे । फिर चाहे वह मन की बात हो या संसद में दिये भावुक भाषण ।

इन दिनों प्रधानमंत्री जी एक शब्द पर ज्यादा घिर गये हैं -आंदोलनजीवी । श्री मोदी ने कहा कि किसान आंदोलन तो पवित्र था लेकिन यह अपवित्र आंदोलनजीवी हाथों में चला गया । बस । यहीं से आंदोलनजीवी पर उन्हें सोशल मीडिया में खूब प्रचलित किया जाने लगा है और उन्हीं की तर्ज पर मैं चौकीदार की तरह हर किसान लिखने लखा है कि मैं आंदोलनजीवी । आपके अपनाये तरीकों से ही आपको मात देने की तैयारी होने लगी । कभी आप मैं चाय वाला कह कर नमो टी स्टाॅल खुलवाते रहे तो कभी फकीर बन उपदेश देते रहे । अब बारी किसान की आई तो आपने उन्हें आंदोलनजीवियों के हाथों में फंस जाने का कह कर अपमानित किया, जैसा कि किसान नेता कह रहे हैं । आप कह रहे हैं कि सरकार सब मांगने पर ही नहीं करती । हमने तीन तलाक कानून बिना मांगे दिया लेकिन जो मुस्लिम महिलाएं आगे आई थीं, उनका क्या? चलो । कृषि कानून आपने बिन मांगे मोतियों की तरह दे दिये लेकिन जब किसान इसे स्वीकार ही नहीं कर रहा तो होल्ड का प्रपंच किसलिए ? आप कह रहे हैं कि अपनाओ या न पर कानून रहेंगे । ऐसा कैसे? संशोधन के लिए भी तैयार लेकिन रद्द नहीं करेंगे । यह कैसी जबर्दस्ती और क्यों ?

किसान आंदोलन को लम्बा खिंचते देख कर भी आप अपने हठ को छोड़ने को तैयार नहीं । आंदोलनकारी और आंदोलनजीवी की व्याख्याओं में पड़े हो । आंदोलन तो स्वतंत्रता से पूर्व भी हुए और होते रहेंगे । यह स्वतंत्रता आंदोलन से ही मिली है न कि चुपचाप बैठे रहने से । बिना रोये तो मां भी दूध नहीं देती । कोशिश करनी पड़ती है । आपको टोका जाना भी पसंद नहीं । अधीर रंजन चौधरी ने टोका तो बहुत बुरा लगा । आखिर संसद से कांग्रेस सहित कुछ दल बहिष्कार ही कर गये ।
बहुत सरल सा रास्ता है कि बात कीजिए । इससे कब तक मुख मोड़े रहेंगे ?

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