कमलेश भारतीय

आज देश में एक ही मुद्दा है -किसान आंदोलन, संसद से सड़क तक । दिल्ली की सीमाओं को घेरे बैठे किसानों के हौंसले पर्वतों से भी ऊंचे हैं । कम से कम छप्पन इंच के सीने के अंदर बेचैनी पैदा करने लायक तो हैं ही तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि उनके बजट के दिल में गांव और किसान हैं । पर कृषि कानूनों को रद्द करने का कोई इरादा नहीं जाहिर किया । हालांकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी कह रही हैं कि हम किसानों से बातचीत के लिए तैयार हैं । वाह । निर्मला जी , तैयारी तो देखिए कैसी की जा रही है ?

देखिए न बैरिकेटिंग जो किसानों को घेरने के लिए लगाई गयी है । ऐसी बैरीकेटिंग तो जम्मू कश्मीर की सीमाओं पर भी न मिलेगी । न चीन की सीमा पर । इतनी बैरिकेटिग जैसे कोई विदेशी हमले की आशंका हो । आतंकवादी घटना की फिक्र हो । जहां दिल्ली में दूतावास की रक्षा करनी थी , वहां तो आपकी गुप्तचर एजेंसियां फूल और जहां देश का भोला किसान प्रदर्शन कर रहा है , वहां कितनी परतों वाली बैरिकेटिंग । इतना डर है किसान से ?

यह तो रही सड़कों की बात और संसद में भी किसान ही किसान गूंजने लगा है । अब क्या बोलोगे ? जवाब में ? भारत माता की जय या जय जवान , जय किसान ? जय जवान , जय किसान तो छब्बीस जनवरी को हो लिया न । जब एक अकेला दीप सिद्धू सतरंगी झंडा अकेले फहरा कर देश का अपमान कर निकल गया । तब आपकी सुरक्षा एजेंसियां कहां थीं ? तब आपकी पुलिस ने उसे उतरते ही काबू क्यों नहीं किया? इसीलिए शक की सुई कहीं और ही जा रही है । पर सत्ता के लालच में तिरंगे का अपमान तो न करवाइये साहब । इस तिरंगे के लिए कितने लोगों ने खून दिया है , शहादत दी है , फांसी के फंदों को चूमा है । क्यों देश को बांटने पर अमादा हो गये हो साहब ?

कितना तो हिंदू मुसलमान कर लिया । अब न मुसलमान रहा न हिंदू । अब तो किसान किसान ही रह गया । इसीलिए कांग्रेस नेता अधीर रंजन द्वारा कहा जा रहा है कि हम कहीं ब्रिटिश काल में तो नहीं लौट रहे? किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि जब तक कानून वापसी नहीं तब तक घर वापसी नहीं । बेशक कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर कह रहे है कि हम संसद के अंदर व बाहर कृषि कानूनों पर चर्चा के लिए तैयार हैं पर आंदोलन में मारे गये किसानों के लिए कोई मुआवजे का प्रावधान नहीं । यह है संवेदनहीनता की हद ।

संभल जाइए साहब । सुन लीजिए किसानों का दर्द । छोड़िए अपनी जिद्द या वही राजहठ । इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला । यह लड़ाई लम्बी न खींचिए ।

इक मशविरा है जनाब
कि थोड़ी थोड़ी सुना करो ।
बस मन की ही न किया करो ।

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