एक सूत्री एजेंडा

समझदार लोग वो होते हैं जिनको ये पता होता है कि कौन सा काम, कब और कैसे करना है। हरियाणा सरकार के एक ताकतवर मंत्री का ही किस्सा लें। बड़ी मुश्किल से-बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा है। उनको राजकाज में अपनी मनचाही करने का अवसर मिला है। सियासत तो वो किसानों के नाम पर करते रहे हैं,मगर राज में वो किसानों और किसान आंदोलन के चक्कर में न पड़ कर अपने धंधे में जुटे हुए हैं। कमाई में लगे हुए हैं। गुड़गांव में धीरेद्र ब्रहम्चारी ट्रस्ट की बेशकीमती करीब 25 एकड़ जमीन पर हाथ साफ करने में लगे हुए हैं।

इस जमीन की रजिस्ट्री में अनियमितताएं सामने आने पर हरियाणा सरकार ने इस पर रोक लगा दी है। प्रभावित पक्ष अब न्यायपालिका से मनमाफिक फैसला लाने के लिए जुटा हुआ है। इस डील में कुछ शराब कारोबारियों और हरियाणा के एक पूर्व मंत्री का नाम भी आ रहा है। धीरेंद्र ब्रहम्चारी का तो एक केस है जो सार्वजनिक हो गया। इन मंत्री जी ने तो ऐसे ऐसे कई कांड कर रक्खे हैं। इनके कारनामों की सरकार ने लाल फाइल तैयार कर रक्खी है। जिस किसी दिन इनकी सर्जरी करनी होगी,लाल फाइल के आड़ में चुपके से कर दी जाएगी। मंत्री जी भी इस सारे हालात से अनभिज्ञ नहीं है। सो उन्होंने भी अपना एकसूत्री कार्यक्रम राज में आने के पहले दिन से ही स्पीड पकड़ रक्खी है। इस हालात पर कहा जा सकता है:

हम जो उन्हें कुछ कहते नहीं
समझते हैं वो,हम समझते नहीं

किसान आंदोलन

राष्ट्र और राष्ट्रध्वज के लिए अचानक से कुछ लोगों में ज्यादा ही श्रद्धा बढ गई। देशभक्त्ति की भावना में बहने वाले इन लोगों में से कई ऐसे हैं जिनका यूं तो राष्ट्र और ध्वज से कोई लेना देना नहीं है,लेकिन लालकिले में उपद्रव होने की अनहोनी पर ये सियासी रोटियां सेंकने से बाज नहीं आ रहे। मीडिया में ज्यादातर लोग इसके लिए आंदोलनकारी किसानों को आड़े हाथों लेकर अपने आकाओं को खुश करने में लगे हैं। लगभग सारा का सारा तथाकथित मेनस्ट्रीम मीडिया एक तरफा चल रहा है। ज्यादातर तो केंद्र सरकार के स्तुतिगान में जुटे हैं। कुछ ही हैं जो किसानों का भी पक्ष रख रहे हैं। हकीकत ये है कि गणतंत्र दिवस के मौके पर जो कुछ हुआ उसके लिए सरकार और किसान संगठन दोनों ही कसूरवार हैं। जब किसान आंदोलन के चौधरियों के पल्ले दाणे ही नहीं है तो वो किस हैसियत से सरकार के साथ ट्रैक्टर परेड का रूट प्लान डिसकस कर रहे हैं? बैठक पर बैठकों के दौर कर रहे थे? जब उनके कहे में प्रदर्शनकारी हैं ही नहीं हैं तो वो क्यूं इसकी अगुवाई कर रहे हैं? किसान आंदोलन को बदनामी से बचाने के चाक चौबंद प्रबंध करने की जिम्मेदारी किसकी है? सरकार की या किसान नेताओं की? किसी भी सरकार से ये उम्मीद पालना कि वो किसी भी आंदोलन के स्वागत में आकाश पाताल एक कर देगी, महज मर्ख ही कर सकता है।

सरकार चाहे अभी की ओ या फिर अतीत की रही हो, वो आमतौर पर किसी भी आंदोलन को कुचलने के लिए आतुर रहा ही करती है। हर सरकार का आंदोलन से निपटने के लिए अलग अलग फार्मूला हुआ करता है। कुछ प्यार से सर्जरी कर दिया करती हैं तो कुछ खुल्मखुल्ला लटठ ठाया करती हैं। अब जबकि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ फिर से किसान एकजुट होने लगे हैं तो इसका नेतृत्व करने वालों की जिम्मेदारी फिर से बढ गई है। उनको हर पल हर घड़ी चौकन्ना रहना होगा कि इस आंदोलन को कंलक न लग जाए। इसकी साख को बट्टा न लग जाए। इसमें असमाजिक तत्व न घुस जाएं। कभी कभी ज्यादा चटकी दिखाना भारी पड़ जाता है। ज्यादा सयाणा आदमी ज्यादा दुखी रहता है। जो किसान आंदोलन लगभग उखड़ चुका था उसे सरकार की गलतियों ने फिर से जिंदा कर दिया। इसमें प्राण फंूक दिए। नई ऊर्जा का संचार कर दिया। जो लोग हालात देख कर इस आंदोलन से खुद ब खुद किनारा कर के घर चले गए थे उन सबको सरकार की कुटिल चालों ने फिर से एक कर दिया है। सोचिए कि किसान आंदोलन की बदनामी और इसमें हुई हिंसा या यंू कहें कि जानबूझ कर करवाई गई हिंसा से फायदा किस को हुआ? सरकार कह रही है कि इस आंदोलन की आड़ में पाकिस्तानी और खालिस्तानी सक्रिय हैं। वो इसकी फंडिग कर रहे हैं। अगर वाकई ऐसा है तो सरकार को ऐसा करने वालों को सबक सिखाना चाहिए। ऐसा करने वालों की देश के सामने पोल खोलनी चाहिए। साथ ही ये भी समझ लेना चाहिए कि सैंकड़ों किलोमीटर से साईकिल-पैदल- ट्रैक्टर पर आकर इस आंदोलन का हिस्सा बनने वाले भोले भाले किसानों पर दमनचक्र चलाया तो इसके गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं। इस हालात पर कहा जा सकता है:

ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के
अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के
कह रही है झोपड़ी और पूछते हैं खेत भी
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गांव के
बिना लड़े कुछ भी यहां मिलता नहीं ये जानकर
अब लड़ाई लड़ रहे हैं लोग मेरे गांव के

पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह

हरियाणा भाजपा के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह काफी समय की रहस्यमयी चुप्पी के बाद कुछ सप्ताह पहले अचानक से अवतरित हुए। हरियाणा के कई स्थानों पर जा कर वे किसान आंदोलन का हिस्सा बने। किसानों के समर्थन में उन्होंने हिसार में उपवास भी किया। इलैक्ट्रानिक मीडिया-सोशल मीडिया और अखबारों को क्रांतिकारी इंटरव्यू भी दिए कि केंद्र सरकार को किसान आंदोलन को गंभीरता से लेना चाहिए। ये हरियाणा-पंजाब के किसान हैं,आसानी से नहीं मानेंगे। अचानक पता नहीं क्या हुआ कि बीरेंद्र सिंह की जुबान पर ताला जड़ गया। वो जितनी तेजी से सियासी पटल पर सक्रिय हुए थे उस से कहीं तेजी से गायब हो गए। हो सकता है कि भाजपा हाईकमान ने उनको कृषि कानूनों के बारे में विस्तार से से ऐसा ज्ञान दे दिया हो कि चाहकर भी अब उनकी जुबान नहीं खुल पा रही।

इस्तीफा

मनोहर सरकार बरौदा उपचुनाव के हादसे से अभी उबर ही रही थी कि एक उपचुनाव की नौबत फिर से आ गई है। ऐलनबाद से इनैलो के एकमात्र विधायक अभय चौटाला ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। तीन कृषि कानूनों को किसानों के खिलाफ बता चौटाला ने इस्तीफे का दांव खेला है। चौटाला की पार्टी इस समय बिखर चुकी है। उनकी ही पार्टी से निकल कर बनी जजपा किसानों में अपनी साख खो चुकी है। अभय इस किसान आंदोलन की आड़ में अपनी पार्टी को मजबूती देने का अवसर तलाश रहे हैं। कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना की रणनीति बना रहे हैं। इनैलो के लोग अपना खोया हुआ जनाधार तलाशने के लिए काफी व्याकुल हुए जा रहे हैं। किसान आंदोलन को उन्होंने एक अवसर के तौर पर लिया है। उनको लगता है कि उपचुनाव को इनैलो जीतती है तो प्रदेश में इस पार्टी की वापसी की कोशिशों को कुछ बल मिलेगा। इस हालात पर कहा जा सकता है:

मैं किस के लिए बेचैन हंू कोेई बताए मुझे
वो सुन रहा है तो मोहब्बत में आजमाए मुझे

प्रदीप चौधरी

उपचुनाव अकेले ऐलनाबाद में ही नहीं हो रहा,कालका में भी होने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। कालका से कांग्रेस विधायक प्रदीप चौधरी को तीन बरस की सजा का ऐलान होते ही विधानसभा स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता ने उनकी विधानसभा की सदस्यता रदद कर दी है। अगर ऊपरी अदालत से प्रदीप चौधरी अपनी सजा पर रोक लगवाने में कामयाब हो जाते हैं तो फिर इस उपचुनाव की नौबत नहीं आएगी। अगर एक दफा प्रदीप को स्टे मिल गया तो उनके विधानसभा का अपना कार्यकाल पूरा करने के आसार हैं। अपने यहां इस तरह के मामलों में अक्सर ऐसा होता है कि जब तक कोर्ट से फाइनल फैसला आता है तब तक सबंधित विधायक-सांसद का कार्यकाल ही पूरा हो जाया करता है।

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