अमित नेहरा

पंजाब में किसान आंदोलन 24 सितंबर 2020 से शुरू हुआ, 27 सितंबर से पूरे पंजाब में रेल यातायात रोक दिया गया। लेकिन इससे केंद्र सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा। ये आंदोलन का पहला चरण था।

थक हारकर 26 नवम्बर 2020 को पंजाब के किसान दिल्ली की सीमाओं पर आ डटे। इस दौरान हरियाणा सरकार ने अपनी सीमाओं पर इन किसानों का स्वागत ऐसे किया मानों वे किसी दुश्मन देश की सेना हों, तमाम तरह की बाधाएं पारकर ये किसान देश की राजधानी के मुहानों सिंघु बार्डर और टीकरी बॉर्डर पर बैठ गए। ये किसान दिल्ली के जंतर-मंतर या रामलीला मैदान में जाना चाहते थे मगर दिल्ली ने मना कर दिया। इन्हें ऑफर दिया गया कि वे बुराड़ी में निरंकारी समागम स्थल पर आ सकते हैं लेकिन यहाँ जाने से किसानों ने मना कर दिया।

अब हरियाणा के किसान भी इनके साथ आ जुटे। उधर उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश के किसान भी गाजीपुर बॉर्डर पर जम गए। राजस्थान के किसान भी शाहजहांपुर बॉर्डर पर आ गए। पलवल में भी नेशनल हाईवे पर टेंट लग गए। इसके अलावा पूरे देश में हजारों जगहों पर छोटे-बड़े धरने शुरू हो गए।

आंदोलन 26 जनवरी तक पूरी तरह शांतिपूर्ण चला। सरकार को बुरी तरह पसीने आ गए। तीन कृषि कानूनों को बिल्कुल ठीक बताने वाली केंद्र सरकार इनमें संसोधनों के लिए तैयार हो गई। यही नहीं इन्हें डेढ़ साल तक होल्ड करने के भी ऑफर दे दिया। लेकिन किसान इन्हें रद्द करवाने के लिए अड़ गए। 

26 जनवरी 2021 को किसानों ने दिल्ली में प्रस्तावित ट्रैक्टर तिरंगा परेड निकाली। किसानों ने कई जगह असमंजस और कई जगह जानबूझकर परेड को निर्धारित रास्तों से अलग होकर निकाल लिया। इस दौरान सुरक्षा बलों से झड़पें हुईं। ट्रैक्टर पलटने से एक युवा किसान की मौत हो गई। झड़पों में अनेक जवान और किसान घायल हुए। किसानों का एक दल लालकिले में जा घुसा और वहाँ खाली पोल पर सिखों के धार्मिक झंडे और किसान आंदोलन के झंडे को फहरा दिया। संयुक्त किसान मोर्चे ने शाम होते-होते ट्रैक्टर मार्च वापस ले लिया और आरोप लगाया कि लालकिले में घुसने वाले  किसान के जत्थे को सरकार की शह है।

ये आंदोलन का दूसरा चरण था

इसके बाद आंदोलन तीसरे चरण में प्रवेश कर गया। सरकारी एजेंसियों ने लालकिले को मुद्दा बनाकर किसान नेताओं को घेर लिया। उन पर देशद्रोही होने के आरोप लगाये गए। अनेक नेताओं पर संगीन धाराओं में केस दर्ज कर लिए गए। मेनस्ट्रीम मीडिया और बीजेपी की आईटी सेल जो पिछले दो महीने से उदासीन थे, अचानक किसानों पर हमलावर हो गए। किसान आंदोलन की धार कुंद हो गई।

इसके बाद 28 जनवरी 2021 को दिल्ली-उत्तरप्रदेश पर स्थित गाजीपुर बॉर्डर धरने को हटवाने के लिए एसपी और डीएम की अगुवाई में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया। किसान नेता राकेश टिकैत को गिरफ्तार करने की तैयारी हो गई। सब कुछ टीवी चैनलों पर लाइव चल रहा था। आंदोलनरत सभी किसान सदमे में आ गए। टीकरी और सिंघु बॉर्डर के धरनों पर भी खतरे के बादल मंडराने लगे।

अचानक हारी हुई बाजी पलट गई। किसान नेता मंच पर किसानों पर हो रहे जुल्मों को लेकर रो पड़े। इस भावनात्मक मुद्दे ने तुरुप के पत्ते का काम किया। पूरे पश्चिमी उत्तरप्रदेश, हरियाणा और पंजाब में मिनटों में ही भावनात्मक सैलाब उमड़ पड़ा।

किसानों का सोशल मीडिया शबाब पर आ गया। राकेश टिकैत और गाजीपुर बॉर्डर ट्रेंड करने लगा। गांवों से रात को ही तुरंत किसानों के जत्थे गाजीपुर, टीकरी और सिंघु बॉर्डर के लिए रवाना हो गए। खुफिया एजेंसियों के इनपुट से सरकार सहम गया। गाजीपुर धरने पर राकेश टिकैत को गिरफ्तार करने की मंशा लेकर आये गाजियाबाद के एसपी और डीएम को यह कहकर वापस जाना पड़ा कि वो तो टिकैत साहब के स्वास्थ्य का हालचाल जानने आये थे। रात को ही सारी पुलिस हटा ली गई।

29 जनवरी की सुबह एक नया उत्साह लेकर आई, रात से जो किसानों का आगमन शुरू हुआ उसने जनसैलाब ला दिया। किसान नेताओं को अपील करनी पड़ी कि अब बस करिये। किसान आंदोलन फिर से परवान चढ़ गया था। मीडिया और सोशल मीडिया से लालकिले का मुद्दा खत्म हो चुका था।

मुद्दा बेशक उत्तरप्रदेश का रहा हो लेकिन इसका 

हरियाणा में बहुत जबरदस्त प्रभाव पड़ा। सभी जिलों के ज्यादातर गांवों के जत्थे-जत्थे गाजीपुर बॉर्डर रवाना हो गए। ये रात के 2 बजे गाजीपुर बॉर्डर पहुंचने शुरू हो गए जो दिनभर आते रहे और राकेश टिकैत का हौसला बढ़ाते रहे। उधर इनेलो महासचिव और हरियाणा में इनेलो के एकमात्र विधायक अभय सिंह चौटाला गत 11 जनवरी को किए गए अपने वायदे के अनुसार 27 जनवरी को किसानों के हक में अपना त्यागपत्र दे चुके थे। इससे अभय सिंह चौटाला का कद तो बढ़ा ही किसान आंदोलन को नैतिक और सार्वजनिक बल भी मिला। अभय चौटाला ने इस आंदोलन को सफल बनाने का बीड़ा भी ठान लिया और अपने समर्थकों के साथ आंदोलन स्थलों पर जाने का एलान कर दिया।

हरियाणा सरकार इस घटनाक्रम से इतना हिल गई कि उसने तुरंत प्रभाव से अंबाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, करनाल, कैथल, पानीपत, हिसार, जींद, रोहतक, भिवानी, चरखी दादरी, फतेहाबाद, रेवाड़ी और सिरसा जिलों में वॉयस कॉल को छोड़कर इंटरनेट सेवाओं को 30 जनवरी 2021 शाम 5 बजे तक के लिए बंद करने के आदेश दे दिए। जबकि सोनीपत, पलवल व झज्जर जिलों में 26 जनवरी से ही इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा रखी थी। खास बात यह रही कि हरियाणा में कहीं भी कोई दंगा-फसाद की कोई आशंका नहीं थी। ऐसे में इस निर्णय ने किसानों को सरकार पर मनोवैज्ञानिक बढ़त दिला दी। इससे सन्देश गया कि अहिंसक तरीके से ही सरकार को झुकाया जा सकता है।

उधर, सिंघु बॉर्डर पर दिन में कुछ उपद्रवियों ने पुलिस सुरक्षा में आंदोलनरत किसानों पर पत्थरबाजी करने की कोशिश की मगर किसानों ने उन्हें अच्छी तरह से जवाब दे दिया।

इस समय हालात यह है कि दो दिन बैकफुट पर आया हुआ किसान आंदोलन फिर से पुरानी रंगत में लौट आया है।

और हाँ, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके किसानों को पूरा समर्थन देकर उन्हें आंदोलन से एक इंच भी पीछे न हटने की सलाह देकर भी किसान आंदोलन को हवा दे दी है।