भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

26 जनवरी को दिल्ली में हुई किसान ट्रैक्टर रैली में हिंसा के पश्चात सरकार फ्रंटफुट पर आई और किसान बैकफुट पर। एक दिन के इंतजार के बाद आज किसान और उनके समर्थक फिर मुखर होने लगे।हरियाणा की बात करें तो हरियाणा सरकार ने आंदोलनकारियों को आंदोलन से उठाने के लिए अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया। कई स्थानों पर सरकार आंदोलनकारियों को उठाने में कामयाब भी हुई और कई स्थानों पर विफल भी। लेकिन देखने में यह आया कि जनता का किसानों के प्रति रुझान समाप्त हुआ नहीं है। वह अब भी किसान आंदोलन के समर्थन में ही नजर आते हैं।

कल की छुट्टी के पश्चात आज राजनैतिक नेताओं के भी ब्यान आने लगे किसान आंदोलन के समर्थन में और किसान नेता चढूणी ने कहा कि यह हमारे आंदोलन का चौथा चरण है। हमें अपनी एकता तोडऩी नहीं है।

चढूणी ने बताया कि किसी भी आंदोलन के चार चरण होते हैं। पहले चरण में आंदोलनकारियों को समझाया जाता है, दूसरे चरण में उन्हें लालच दिया जाता है, तीसरे चरण में उन्हें धमकाया जाता है, एफआइआर दर्ज की जाती हैं, तब भी बात नहीं बनती तो चौथे चरण में आंदोलनकारियों में फूट डाली जाती है और हमें इसी बात को समझना है। चौथे चरण तक कोई-कोई आंदोलन ही पहुंच पाता है तथा इतिहास बताता है कि चौथे चरण में अधिकांश आंदोलन बिखर जाते हैं। हमें बिखरना नहीं है, एकजुट रहना है। तिरंगे का सम्मान हम अपने दिल से करते हैं। तिरंगा हमारे लिए सर्वोपरि है। जिसने तिरंगा का अपमान किया है, वह हमारा नहीं हो सकता। हम मरते दम तक तिरंगे के सम्मान के लिए सर्वस्व लुटाने के लिए तैयार हैं। बस हमें अपने अधिकारों के प्रति एकजुट होकर लडऩा है।

दूसरी ओर आज सरकार की ओर से फिर किसान आंदोलन के बारे में ब्यान नहीं आए। ऐसा हमने कल भी लिखा था। हरियाणा सरकार को यह आंदोलन बहुत भारी पड़ता नजर आ रहा है। सरकार अपने विधायकों को भी नहीं समझा पाई कि ये कानून किसान के हित में हैं। उनके समर्थन करने वाले विधायक भी आज किसान आंदोलन में किसानों के साथ खड़े नजर आ रहे हैं, जिनमें सोमबीर सांगवान, बलराज कुंडू का नाम अधिक सुर्खियों में है।

कल अभय चौटाला ने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया। उससे किसानों में उनकी साख बढ़ी। लेकिन इसके साथ-साथ राजनीति में इसका प्रभाव होना निश्चित है। एक प्रमाण तो आज ही मिल गया, जब कई बार के विधायक रहे रामपाल माजरा ने भाजपा से इस्तीफा दे दिया और कहा कि मैं किसानों के साथ बैठूंगा। अभय चौटाला के त्याग पत्र से मैं प्रभावित हुआ हूं। 

किसान संगठनों के धरने अभी भी जारी हैं और उनका कहना है कि जब तक कानून वापिस नहीं होंगे, तब तक धरने चलते रहेंगे। कुछ स्थानों पर जैसे मसानी आदि से सरकार किसानों को उठाने में सफल हुई, मान सकते हैं किंतु वे किसान अन्य जगह धरने में शामिल हो गए। कई स्थानों पर प्रशासनिक अधिकारियों को धरना स्थल पर बैरंग लौटना पड़ा।

वर्तमान में हरियाणा गठबंधन सरकार के लिए यह परीक्षा की घड़ी है और साथ ही भाजपा संगठन के लिए भी। क्योंकि इनके अपने भाजपाई लोग जब समाज में अपने ऊपर व्यंग्य बाण सुनते हैं तो उनके मन में भी कुछ भाव तो उत्पन्न होते ही हैं। सुनने में आ रहा है कि कल भी भाजपा के कुछ लोग आप पार्टी में शामिल होंगे।

सरकार के लिए जहां किसान आंदोलन को समाप्त करने का लक्ष्य है, वहीं दूसरा लक्ष्य यह भी नजर आता है कि अपने संगठन और अपनी सरकार को बचाएं। आंदोलनों के प्रभाव दीर्घकालीन होते हैं।