गुरुग्राम, 23 जनवरी। साठ के दशक में अखिल भारतीय साहित्य परिषद के संस्थापक सदस्य रहे डॉ. धर्मपाल मैनी पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से सेवानिवृत्त होने के उपरांत पिछले तीन दशकों से गुरुग्राम में ही रह रहे थे, उनका कल रात सेक्टर 47 स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। सन्त साहित्य के अधिकारी विद्वान रहे डॉ. मैनी जीवन भर सुसंस्कृत मानव के सृजन की चिन्ता में लीन रहे। उन्होंने दो वर्ष अमेरिका के विस्कौनसन विश्वविद्यालय में भी पढ़ाया। वर्ष 2010 से 2013 तक वे अखिल भारतीय साहित्य परिषद हरियाणा प्रान्त के अध्यक्ष रहे। उन्हें भारत सरकार से सुब्रह्मण्य भारती सम्मान, विश्व हिन्दी सम्मेलन सम्मान, पंजाब का साहित्य शिरोमणि व उत्तर प्रदेश के सौहार्द सम्मान सहित अनेक पुरस्कार मिले पर वे इन सबसे ऊपर अपने परिचय में यह कहना नहीं भूलते थे कि वे आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य हैं।

उन्होंने अपनी माँ के दूध के साथ ही जिस संस्कृति का पान कर गुरुजन के आशीर्वाद से इसे पल्लवित किया, उसे पाँच भागों में मानव मूल्यों का विश्वकोश सम्पादित कर लौटाने का प्रयास किया। साहित्य परिषद के हरियाणा प्रान्तीय महामंत्री डॉ. योगेश वासिष्ठ उनका भावपूर्ण स्मरण करते हुए कहते हैं कि वे अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में अपने व्याख्यान के लिए जब भी आते थे तो अपनी भारतीय जीवन मूल्य पुस्तक निःशुल्क वितरित करते थे और आत्मिक सन्तोष के भाव से कहते थे कि गुरुजन ने यही सिखाया है कि भारतीय मूल्यों के बीज बिखराते चलो। कभी वर्षा आएगी, खाद पानी मिलेगा तो इनकी खेती लहलहा उठेगी। उनके जाने से आज समाज ने मानवता का सच्चा रखवाला खो दिया है।

उनके साथ परिषद में का. अध्यक्ष का दायित्व निभा चुके हरियाणा साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक डॉ. पूर्णमल गौड़ ने कहा कि उनके निधन से उन्हें हार्दिक दुख पहुँचा है। परिषद को उनकी दी हुई सेवाएँ सदा स्मरण रहेंगी। वहीं मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक डॉ. देवेन्द्र दीपक कहते हैं कि वे चले गए पर उनका मानव मूल्यों का कोश हमारी राह दिखलाता रहेगा।

इस विश्वकोश के सम्पादन में उनके सहयोगी रहे रमेश कुमार शर्मा ने कहा कि उनका मार्गदर्शन हमेशा हमारी स्मृतियों में रहेगा। अन्य सहयोगी डॉ. महेश दिवाकर काव्यमय रूप में कहते हैं- तुम्हें भूल हम नहीं सकेंगे, अब सपनों में नित आओगे। याद रहेंगी सारी बातें, चले गए हो अमर रहोगे।
उनके निधन पर परिषद के प्रान्तीय अध्यक्ष प्रो. रामसजन पांडेय, का. अध्यक्ष रमेशचन्द्र शर्मा, गुरुग्राम इकाई की अध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा, महामन्त्री मोनिका शर्मा, जींद इकाई अध्यक्ष डॉ. मंजुलता, केन्द्रीय प्रचार प्रमुख प्रवीण आर्य सहित हरीन्द्र यादव, मुरारि पचलंगिया, मदन साहनी आदि अनेक साहित्यकारों ने भावपूर्ण श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए इसे साहित्य की अपूरणीय क्षति बतलाया है।

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