किसानों का अभूतपूर्व ट्रैक्टर मार्च, राष्ट्रपति को भेजा ज्ञापन

ऐलान – ना रुकेंगे ना झुकेंगे, 26 जनवरी को दिल्ली में करेंगे किसान परेड

चरखी दादरी जयवीर फोगाट

संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन के बीच दादरी शहर में हुआ ट्रैक्टर मार्च आज इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। भविष्य में जब कभी कोई आंदोलन होगा तो इतने लंबे और बेहद अनुशासित ट्रैक्टर मार्च को जरूर याद किया जाएगा। सुबह से ही  किसान ट्रैक्टरों पर सवार हो दादरी के हुड्डा ग्राउंड पहुंचना शुरू हो गए थे। जिधर से देखो वहीं से ट्रैक्टरों का लंबा काफिला देखने को मिल रहा था। बहुत सी महिलाएं भी खुद ट्रैक्टर चलाकर पहुंची। आलम ये था कि 11.30 बजे तक हुड्डा ग्राउंड पूरी तरह भर गया था। उसके बाद मुख्य सड़क पर ट्रैक्टर खड़े होने शुरू हो गए थे। हर ट्रैक्टर पर संयुक्त किसान मोर्चे के झंडे लगे हुए दिखे।

  करीब 12 बजे ट्रैक्टरों पर सवार किसानों ने जोरदार नारेबाजी करते हुए मार्च शुरू किया जो लोहारू चौक, बस स्टैंड, परशुराम चौक, लाजपतराय चौक, दिल्ली रोड, ढाणी फाटक, पुल के नीचे से महेंद्रगढ़ चुंगी, झज्जर घाटी, सरदार झाडू सिंह चौक, परशुराम चौक होते हुए रोहतक रोड़ स्थित उपायुक्त के कैम्प कार्यालय पहुंचे। जहां विभिन्न किसान, सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों ने राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन उपायुक्त राजेश जोगपाल को सौंपा। जिसमें उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने कोरोना काल के समय जब पूरा देश महामारी से जूझ रहा था उसी समय तीन कृषि कानून देश के संसद में पारित करवाए। इन कानूनों के विरुद्ध पिछले 54 दिन से लाखों किसान कड़कड़ाती ठंड में दिल्ली में धरने पर बैठे हैं इसी के साथ विभिन्न टोलों व जगहों पर हजारों किसान अनिश्चितकालीन धरनारत हैं। उसके बावजूद सरकार बार बार वार्ता के नाम पर किसानों के सब्र का इम्तिहान ले रही है।                   

उन्होंने कहा कि कोरोना के समय में देश के अन्नदाता ने किसी भी नागरिक को फल, दूध, अनाज व सब्जियों की कमी महसूस नहीं होने दी। यहां तक की गिरती हुई अर्थव्यवस्था को भी किसानों ने ही संभाला। उसका सिला किसानों को इन तीन काले कानूनों के साथ पराली जलाने पर एक करोड़ जुर्माना और 5 साल की सजा के रूप में मिला। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मन की बात तो मौके बेमौके कह लेते हैं पर किसानों की बात सुनने को राजी नहीं है। इस आंदोलन के दौरान 70 से ज्यादा किसान शहादत दे चुके हैं पर उनके मुंह से एक शब्द तक नहीं निकला है। हमारा यह मानना है की ये तीनों कानून ना केवल सरकारी मंडियों को खत्म कर देंगे साथ में एमएसपी भी नहीं बचेगी इससे किसान तो बर्बाद होंगे ही आढ़ती भी नहीं बचेंगे। गरीबों के लिए बेहद जरूरी सार्वजनिक वितरण प्रणाली बंद हो जाएगी जिससे उन्हें सस्ता अनाज व दालें नहीं मिलेंगी। असीमित भंडारण से महंगाई सिर चढ़कर बोलेगी और गरीब को निवाला मिलना मुश्किल हो जाएगा। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में भी बड़ा खतरा है, बड़ी कंपनियों का सामना करना साधारण किसान के बूते से बाहर है।

  राष्ट्रपति से गुहार लगाते हुए किसानों ने कहा कि केंद्र सरकार का रवैया बेहद उदासीनता भरा है और उसने अहंकार की सभी सीमाएं लांघ दी हैं। सरकारी संसाधनों को बेचा जा रहा है और अम्बानी-अडानी जैसे उद्योगपतियों को सीधा लाभ पहुंचाया जा रहा है। इससे हर वर्ग में बेहद आक्रोश है। आप देश के सवैंधानिक प्रमुख हैं इस नाते आप इस मसले पर हस्तक्षेप कर इन कानूनों को रद्द करवाएं और किसानों को एमएसपी की गारंटी दिलवाने के साथ बिजली संशोधन अधिनियम 2020 वापिस करवाएं ताकि आंदोलनकारी किसान शांतिपूर्ण ढंग से अपने घर लौट जाएं।                   

किसान नेताओं ने ऐलान किया कि ना रुकेंगे ना झुकेंगे और 26 जनवरी को दिल्ली में किसान परेड करेंगे। जिसमें इलाके के हजारों किसान, मजदूर ट्रैक्टर में सवार होकर अपने अधिकारों को लेकर आवाज बुलुन्द करेंगे।                 

इस अवसर नरसिंह डीपीई, बलवंत नम्बरदार, शमशेर फौगाट, ओमप्रकाश कलकल, राजबीर शास्त्री, नरेश सरपंच, पूर्व विधायक नृपेंद्र मांढी, राजू मान, अजित सिंह फौगाट, कमलेश भैरवी, कमल प्रधान, रणधीर घिकाड़ा, राजकुमार घिकाड़ा, उमेद पातुवास, रणधीर कुंगड़, नितिन जांघू, प्रीतम चैयरमैन, दिलबाग नीमड़ी, जगबीर घसोला, रामकुमार कादयान, कृष्ण फौगाट, निर्मला पांडवान, धर्मेन्द्र छपार, सुरजभान सांगवान, सुरेन्द्र कुब्जानगर, डॉ विजय सांगवान, रणबीर फौजी, सोनू साहुवास, बलजीत फौगाट, सुशील धानक, रामकुमार सोलंकी, कृष्णा सांगवान, बीरमति डोहकी, सुनीता, कुलवंत रंगा, देवी सिंह, राजेन्द्र, मनोज, सुरेन्द्र इत्यादि मौजूद थे।

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