29 दिसम्बर 2020 – स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा कांग्रेस कमेटी के प्रदेश प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने कहा कि जब भी किसी मुद्दे पर आंदोलन होता है तब उसका हल निकालने के लिए सरकार उस मुद्दे पर बयानबाजी करके आंदोलनरत लोगों को खुद भड़काएगी तो उसका हल कैसे निकलेगा। विद्रोही ने कहा कि तीन कृषि कानूनों के संदर्भ में आंदोलनरत किसानों के घावों पर मरहम लगाने की बजाय मोदी भाजपा-संघी सरकार सत्ता अहंकार में उन घावों पर नमक-मिर्च छिड़ककर किसानों के दर्द को और अधिक पीड़ादायक बना रही है। एक ओर मोदी सरकार किसानों से वार्ता का ढोंग कर रही है तो दूसरी सांस में किसान आंदोलन को विपक्ष द्वारा प्रायोजित व भ्रम जाल व झूठ की दीवार पर खड़ा आंदोलन बता रही है। जब सरकार आंदोलनरत किसानों को भ्रमित, विपक्ष की कठपुतली व उनके आंदोलन को झूठ की दीवार बताकर सार्वजनिक रूप से किसानों का मजाक उड़ाने की बेशर्मी कर रही है तो फिर वार्ता से हल कैसे निकलेगा? यदि सरकार वार्ता से वर्तमान गतिवरोध को तोड़कर सर्वमान्य हल निकालने के प्रति गंभीर होती तो भड़काऊ बयानबाजी करने की बजाय सयंम रखती। विद्रोही ने कहा कि जब प्रधानमंत्री से लेकर मोदी सरकार का हर मंत्री, भाजपा सांसद, विधायक, छोटा-बडा नेता-कार्यकर्ता मीडिया में बयान देकर आंदोलनरत किसानों की नीयत पर ही सवाल उठा रहे है तो फिर वार्ता का ढोंग करने का औचित्य क्या है? मेरी निजी राय है कि सरकार आंदोलनरत किसानों से वार्ता करके उसका सर्वमान्य हल निकालने की बजाय वार्ता का ढोंग करके उनके आंदोलन को लम्बा खींचकर किसानों को थकाकर उनके आंदोलन को बेदम करने की षडयंत्रकारी रणनीति पर काम कर रही है। सवाल उठता है कि जब सरकार चंद पूंजीपतियों की दलाली करके उनकी तिजौरियां भरने को आमदा हो और सत्ता दुरूपयोग से गोदी मीडिया के सक्रिय सहयोग से किसानों व किसान आंदोलन को प्रायोजित खबरों से बदनाम करने पर तुली हो तो वार्ता से किसी भी हल की आशा बेमानी है। विद्रोही ने कहा कि मोदी सरकार व संघी अपने को कृषि मामलों में महाज्ञानी-सर्वज्ञ मानकर आंदोलनरत किसानों, विपक्षी दलों व देशवासियों को मूर्ख मनाने की हिमाकत कर ही हो तो कोई हल निकल ही नही सकता। ऐसी स्थिति में किसानों के सामने एक ही विकल्प बचता है कि वे अपना आंदोलन तेज करे। गांवों में भाजपा मुख्यमंत्रीयों, मंत्रीयों, सांसदों, विधायकों, नेताओं के घुसने पर पूर्णतया प्रतिबंध हो और उनका कड़ाई से सार्वजनिक बहिष्कार हो, तभी सत्ता मद में चूर संघीयों की अकल ठिकाने आयेगी। Post navigation 32 दिन और 32 रात… क्या अब बुधवार को खत्म हो सकेगी तकरार ! कांग्रेस का स्थापना दिवस और गांधी परिवार