आज देश में सबसे बड़ा मुद्दा किसान आंदोलन का बना हुआ है। गत रविवार को जिस प्रधानमंत्री के कहने से जनता ने ताली और थाली बजाई थी, उसी प्रधानमंत्री के विरोध के लिए ताली और थाली बजाई। सरकार की ओर से सदा यही कहना है कि हम बातचीत के लिए तैयार हैं, किसान ही बातचीत नहीं करते।

अब किसानों की ओर से पत्र लिखा गया था कि आज 29 दिसंबर को बातचीत की जाए। परंतु आज सरकार की ओर से किसानों को पत्र लिखकर दिल्ली में केंद्रीय मंत्री स्तर की बातचीत का निमंत्रण भेजा गया है। अभी किसानों की ओर से इस पर सहमति नहीं मिली है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर कब होगी यह बातचीत।

 किसान आंदोलन जैसा कि हमने पहले भी लिखा था कि अब किसानों का संयम टूट रहा है। वे अब कुछ उग्र होते दिखाई दे रहे हैं। अनेक टोल प्लाजा फ्री करा दिए हैं। जियो के टॉवर बंद किए जा रहे हैं। हरियाणा में मंत्रियों का घेराव किया जा रहा है। पंचायत कर मंत्रियों की गांवों में एंट्री बंद की जा रही है। अंबानी-अडाणी और बाबा रामदेव के उत्पादों के बहिष्कारों कीबात की जा रही है। प्रतिदिन कोई न कोई नई योजना बनती है। कहने का तात्पर्य यह है कि किसान प्रतिदिन शांतिपूर्ण आंदोलन से आगे बढ़ रहे हैं। ऐसे में बातचीत कर जितनी जल्दी इस विवाद को समाप्त किया जाए, वही देश, सरकार और किसानों के हित में होगा। 

किसानों का आंदोलन जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा है, देखने में आ रहा है कि वैसे-वैसे उन्हें समर्थन मिलना भी बढ़ रहा है। दक्षिण हरियाणा के जिले गुरुग्राम, रेवाड़ी, नारनौल इस आंदोलन से आरंभ में दूर नजर आ रहे थे लेकिन समय के साथ-साथ यहां से भी किसानों के समर्थन में अनशन-धरने दिए जाने आरंभ हो गए हैं। 

मुख्यमंत्री के करनाल, भिवानी में किसान विरोध के कारण कार्यक्रम रद्द करने पड़े। दुष्यंत चौटाला अपने विधानसभा क्षेत्र में बड़े विरोध का सामना कर रहे हैं। ऐसी स्थितियां क्या प्रदेश के हित में रहेंगी?हरियाणा की राजनीति इस आंदोलन से गरमाई हुई है। सरकार पर संकट के बादल छाए नजर आ रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा बार-बार विधानसभा सत्र बुलाने की मांग कर रहे हैं और मुख्यमंत्री का उत्तर है कि सत्र बुलाने के लिए विपक्ष के पास कोई विशेष मुद्दा नहीं है, जबकि  भूपेंद्र हुड्डा का कहना है कि किसान आंदोलन से बड़ा क्या मुद्दा होगा?

आगामी 30 दिसंबर निगमों के चुनाव परिणाम आ जाएंगे। यदि उनमें भाजपा को हार का सामना करना पड़ा तो यह संदेश अवश्य जाएगा कि किसान आंदोलन के चलते सरकार की लोकप्रियता बहुत घटी है।

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