एआईकेएससीसी ने प्रधानमंत्री के किसानों की मदद के दावों की निन्दा की; जो प्रधानमंत्री किसानों को बरबाद करे और कारपोरेट व विदेशी कम्पनियों की मदद करे, फिर भी अपने मुंह मिया मिटठू बने, देश के लिए शर्मनाक है। – प्रधानमंत्री बेतुके दावे कर अंजान लोगों को गोलबंद कर रहे हैं और किसानों की न्यायोचित मांग पर जनता के बीच संदेह फैला रहे हैं। – भारत सरकार ने खेती में निजी निवेशकों की मदद के लिए 1 लाख करोड़ रुपये आवंटित किये हैं खुद निवेश करने को राजी नहीं हैं। – पीएम किसान रु0 16.32 का तुत्छ सहयोग है; फसल बीमा ने कम्पनियों की आय 10 हजार करोड़ प्रतिवर्ष से बढ़ाई; ओडीएफ में बने 90 फीसदी शौचालय गैर कार्यात्मक; 95 फीसदी बैंक खाता ज्यादातर शून्य बैलेन्स; रसोई गैस पर अब ज्यादातर सब्सिडी गायब; मनरेगा, आवास में थोक के भाव गबन। – उ0प्र0, उत्तराखंड के किसान पुलिस का मुकाबला करके दिल्ली पहँुचे, गाजीपुर की ताकत 20 हजार, भीड़ और बढ़ रही है। – एआईकेएससीसी ने गुजरात में मोदी के विफल विकास माॅडल का खुलासा किया। – देश भर ने ‘धिक्कार दिवस’ मनाया – 2 लाख किसान एक माह से दिल्ली की सीमा पर ठंड में और सरकार बेपरवाह; अम्बानी, अडानी के उत्पादों व सेवाओं के खिलाफ कारपोरेट विरोधी अभियान तेज। कल थाली पीटी जाएगी। वर्किंग ग्रुप ने प्रधानमंत्री की तीखी आलोचना करते हुए कहा है कि उन्होंने अपने किसानों के लाभ के कदमों के प्रचार में 500 करोड़ तो खर्च किये पर इन सभी में थोक के भाव गबन होता है और इनका अमल दमन के साथ किया जाता है। किसानों की 3 कानून व बिजली बिल वापसी की मांग पर मुंह मोड़ने के साथ-साथ भारत सरकार ने निजी निवेशकों द्वारा खेती में पैसा लगाने में सहयोग करने के लिए 1 लाख करोड़ रुपये आवंटित किया है, जबकि किसानों की मांग थी कि सरकार खुद सिंचाई, मशीनों की आपूर्ति, मंडियों में सुधार, लागत की सब्सिडी, एमएसपी व खरीद आदि में निवेश करे। एआईकेएससीसी ने दोहराया है कि उसकी सबसे पहली व अग्रिम मांग 3 खेती के कानून व बिजली बिल 2020 की वापसी है और हर अन्य मांग इसके बाद है। देश के किसान एआईकेएससीसी के नेतृत्व में कई सालों से सी2$50 फीसदी के हर फसल के एमएसपी और हर किसान से खरीद तथा सभी किसानों, खेत मजदूरों, आदिवासियों की कर्जमाफी के लिए लड़ते रहे हैं। पर इन्हें हल करने के लिए मोदी सरकार 3 अध्यादेश और बिजली बिल 2020 को लेकर आई जिससे सभी वर्तमान सुविधाएं व सुरक्षाएं समाप्त हो जाएंगी और एक कानूनी ढांचा कारपोरेट व विदेशी कम्पनियों के मुनाफे का बनेगा। इससे खेती की प्रक्रिया, लागत की बिक्री, मशीनरी, फसल की खरीद, भंडारण, परिवहन, प्रसंस्करण और खाने की बिक्री पर उनका कब्जा हो जाएगा। इससे किसानों पर कर्ज बढ़ेगा, आत्महत्याएं बढ़ेंगी, फसलें सस्ती होंगी, खाना मंहगा होगा और जमाखोरी व कालाबाजारी बढ़ेगी। वर्किंग ग्रुप ने स्पष्ट किया है कि सरकार की जितनी भी योजनाएं हैं वह लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार से संलिप्त हैं और उनका अमल त्रुटिपूर्ण है। ओडीएफ में 90 फीसदी बने शौचालय अधूरे व गैर कार्यात्मक हैं। 90 फीसदी जनधन बैंक खाते ज्यादातर समय शून्य बैलेन्स में रहते हैं; पीएम किसान रु0 16.32 का तुच्छ सहयोग है जिसमें 800 ग्राम आटा आता है। फसल बीमा योजना किसानों से किसानों के नाम से सरकारी फंड जिलेवार आवंटित बीमा कम्पनी के खाते में प्रीमियम का पैसा डालने की योजना है। सन् 2017-18 में उन्होंने 2500 करोड़ रुपये कमाए और बाद में 10,000 करोड़; मनरेगा व आवास दोनो में गबन बहुत ज्यादा है जबकि कुछ रोजगार व मकान प्रधानमंत्री के प्रचार का आधार हैं। वर्किंग ग्रुप एआईकेएससीसी ने है कि तथ्य दिखाते हैं कि मोदी का गुजरात का किसानों के लिए विकास माॅडल पूरी तरह विफल रहा है। 2001 से 2011 के बीच एनएसएस रिपोर्ट के अनुसार 3.55 लाख जमीन वाले किसान गायब हो गये और 17 लाख कृषि मजदूर बढ़ गये। अध्ययन बताते हैं कि ये कारपोरेट खेती जो निर्यात के लिए कराई गयी, उसके कारण हुआ। गुजारत आज भी सिंचाई के आभाव से त्रस्त है जबकि नर्मदा बांध का पानी उद्योगों व साबरमती रीवर वाटर फ्रंट के लिए भेजा जा रहा है। गुजरात के 9 किसानों पर पेप्सिकों कम्पनी ने उनका पेटेंट वाला बीज इस्तेमाल करने के लिए उन पर 1 करोड़ रुपये का दावा ठोक दिया। प्रधानमंत्री व उनके मंत्री बार-बार बेतुका दावा कर रहे हैं कि किसान अपनी फसल कहीं भी बेच सकते हैं, किसी भी दाम पर बेच सकते हैं, कम्पनियां उन्हें बेहतर दाम देंगी। यह केवल सीधे व अंजान लोगों को गुमराह करने और किसानों की मांग के प्रति दुर्भावना फैलाने के लिए है। कम्पनियां केवल मुनाफे के लिए निवेश करती हैं और किसान स्थानीय बाजार में ही फसल बेच सकता है। इस बीच दिल्ली की गाजीपुर सीमा पर विभिन्न इलाकों से 20 हजार से ज्यादा किसान आ चुके हैं, और आ रहे हैं। ये सभी उ0प्र0, उत्तराखंड की पुलिस का मुकाबला करते हुए आए हैं। आज दिल्ली के धरने का एक माह पूरा होने पर सरकार के अड़ियल रवैये और किसानों की हालत के प्रति निर्दयी व संवेदनहीन रुख और अपने मुंह मिया मिट्ठू बनने के खिलाफ देश भर के 7000 से ज्यादा स्थानों पर ‘धिक्कार दिवस’ मनाया गया। अम्बानी व अडानी की उत्पादों व सेवाओं के खिलाफ भी अभियान शुरु किया गया। कल प्रधानमंत्री के मन की बात प्रसार के समय देश भर में थाली पीटकर विरोध किया जाएगा। Post navigation सरकार के बातचीत के प्रस्ताव को किया स्वीकार किसानों ने, 29 दिसंबर को बैठक के लिए तैयार मोदी कहेंगे मन की बात तो किसान बजाएंगे ताली-थाली