कमलेश भारतीय

किसान आंदोलन आज चौबीस दिन पुराना हो चुका । पर इसका जोश कम नहीं हुआ । सर्दी के बावजूद हौंसले पस्त नहीं हुए । चाहे नारेबाजी हो या फिर भाषणबाजी और गीत संगीत हर रूप मे आंदोलन जारी है । सोशल मीडिया में छाया हुआ है किसान आंदोलन । पर ऐसा लगने लगा है कि केंद्र सरकार किसानों से बातचीत करने में देर कर रही है जिससे शांत किसानों की शांति कम और बेचैनी बढ़ती जा रही है । शायद सरकार भी यही चाहती है कि देर हो जाये और ये किसान थक बार कर खाली हाथ घर लौट जायें ।

कल अम्बाला में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर नगर निगम के चुनाव प्रचार के लिए आये तो उनके काफिले को काले झंडे तो दिखाये ही गये लेकिन जब पुलिस ने रोकने या रास्ता बदलने की कोशिश की तो झंडों के डंडों से गाड़ियों पर हमला किया गया । बाद में मुख्यमंत्री ने इसका आरोप निर्मल सिंह और कांग्रेस पर जड़ दिया । ऐसा भी सकता है और नहीं भी । पर जो हुआ वह बहुत सुखद संकेत नहीं है । आंदोलन के चलते पहले फतेहाबाद में भाजपा और किसानों में झड़प हुई और अब अम्बाला में यह काले झंडे । रब्ब खैर करे ।

दिल्ली वाॅर्डर पर भी मामला अशांत होता दिख रहा है । सारे रास्ते बंद किये जाने की योजना और टोल प्लाजा भी बंद यानी फ्री कर देंगे । प्रतिदिन लाखों लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है । फल सब्जी की ही नहीं जरूरी वस्तुओं की सप्लाई प्रभावित होने लगी है । किसान परेशान । एक तरफ धरने पर बैठने की मजबूरी तो दूसरी तरफ अन्नदाता की छवि बनाये रखना । कैसे बिठाये संतुलन?

केंद्र सरकार , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि मंत्री सब आराम से देख रहे हैं आंदोलनकारियों को । कोई पहल नहीं । सिर्फ वार्ता का बुलावा लेकिन
कब और कहां , कोई नहीं बता रहा । फिर इस देरी में कितने लोग क़ुर्बान हो
जायेंगे ? कौन जानता है ।
देर न हो जाये , कहीं
देर न हो जाये ,,,,
आ जा रे ,,,

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