भाजपा कार्यकर्ता ही बैठे उपवास पर किसान बनकर बहाव के साथ तैरने वाले बहाव के विरुद्ध तैर नहीं पाते

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। वर्तमान में हरियाणा में किसान आंदोलन ही छाया हुआ है और आज किसान आंदोलन की चर्चा को और बल दिया भाजपा के एसवाइएल मुद्दे पर किसानों के उपवास ने। अब कहें किसानों का उपवास या भाजपाइयों का।

उपवास स्थल के आसपास निकलने वाले लोग चर्चा कर रहे थे कि ये कैसे किसान हैं। लगता तो नहीं कि इनके खेत-खलिहान हैं। कुछ लोग यह कहते सुने गए कि इनको खेती का कोई ज्ञान नहीं लेकिन आज उपवास पर बैठकर कह रहे हैं खुद को किसान

आज के उपवास से भाजपा की अंदरूनी बातें कुछ-कुछ सामने आने लगीं। भिवानी में अनशन पर कृषि मंत्री जेपी दलाल स्वयं बैठे थे लेकिन वहां के सांसद धर्मबीर और विधायक घनश्याम सर्राफ उपवास स्थल पर नहीं पहुंचे। न ही उनके समर्थक पहुंचे।

इसी प्रकार हिसार में चौ. बीरेंद्र सिंह के पुत्र सांसद बिजेंद्र सिंह भी नहीं पहुंचे। अन्य कई स्थानों पर भी ऐसे ही समाचार प्राप्त हुए। समाचार कुछ ऐसे भी मिले कि कई स्थानों पर किसानों ने भाजपा के उपवास करने वालों के सामने उपवास किया। तात्पर्य यह है कि भाजपा की जो सोच थी कि इस बहाने हम जनता में और किसानों में एसवाइएल का मुद्दा जोर से उठाएंगे और जनता का ध्यान इस ओर आकर्षित हो जाएगा, वह सफल होता नजर नहीं आया।

रविवार को मुख्यमंत्री नारनौल में किसानों की रैली करने जा रहे हैं। उसके बारे में भी आशंकाएं खड़ी हो रही हैं कि वह रैली सफल होगी या नहीं। उसमें किसान आएंगे या भाजपा कार्यकर्ता और उसका परिणाम क्या रहेगा, इन्हीं सब बातों की चर्चा गुरुग्राम में भी चल रही है। समाचार ऐसे मिले हैं कि कुछ भाजपा के कार्यकर्ता भी इससे दूरी बनाएंगे और वहां के लोगों की निगाह इस बात पर भी टिकी है कि इसमें कहां से और कौन से किसान होंगे।

बहाव के साथ तैरने वाले बहाव के विरूद्ध तैर नहीं पाते:

पुरानी कहावत है कि बहाव के साथ तैरने वाले यदि बहाव के विरूद्ध तैरना पड़े तो वह पानी से बाहर निकलने राह ढूंढते हैं, क्योंकि उनका बहाव के विरूद्ध तैरना न तो स्भाव होता और न ही शक्ति।

इसी प्रकार वर्तमान में जो भाजपा है, उसमें मुख्यमंत्री से जिला अध्यक्ष तक सभी बहाव के साथ तैरने वाले हैं और वह बहाव है प्रधानमंत्री मोदी का नाम। परंतु वर्तमान में प्रधानमंत्री मोदी के नाम से जनता इनके साथ नहीं लग रही है। किसानों की लड़ाई प्रधानमंत्री मोदी के बनाए कानूनों से ही है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि विपरीत परिस्थितियों में भी क्या ये भाजपाई मोदी के अनुयायी बने रहेंगे?यह बात तो सभी भाजपाई कहते रहते हैं कि वह समय गया जब भाजपा सिद्धांत और संघर्ष की पार्टी हुआ करती थी। वर्तमान में तो भाजपा सत्ता और वैभव की पार्टी है। अत: यहां सिद्धांत ढूंढना व्यर्थ है।

जब प्रथम बार एमएलए बन प्रधानमंत्री मोदी की कृपा से मनोहर लाल मुख्यमंत्री बने तब से ही भाजपा में बदलाव आना आरंभ हुआ या इसे यूं भी कह सकते हैं कि संघर्ष करने वाली पार्टी को जब पहली बार बहुमत की सरकार मिली तो कार्यकर्ताओं की मानसिकता बदलने लगी। कारण कोई भी रहा हो, यह भी सर्वमान सत्य है कि कार्यकर्ताओं की सोच बदली।

सामथ्र्यवान, चापलूस और संबंधों के बलबूते भाजपा में पद पाने की परंपरा चल पड़ी और इसी को देखते हुए संघर्षशील और पुराने कार्यकर्ता अपने आपको उपेक्षित देख घर बैठ गए और मोदी लहर में भाजपा के साथ अन्य पार्टियों के भी बहुत आदमी आ गए

इसका अनुमान पाठक इसी से लगा सकते हैं कि वर्तमान में जो भाजपा के सांसद हैं, उनमें आधे से अधिक अगर मैं गलती नहीं कर रहा तो 6 कांग्रेस पृष्ठभूमि के हैं। इसी प्रकार अन्य दलों से सत्ता के साथ चलने में लोग आए।

अब देखना यह है कि जब सारी जनता, भाजपा या यंू कहें कृषि कानूनों के बनने से प्रधानमंत्री मोदी से नाराज हैं और यह संभावना नहीं है कि मोदी के नाम से वोट मिल जाएंगे तो अब वे भाजपा के साथ रह पाएंगे या बहाव को विपरीत देख यहां से निकल कोई और रास्ता ढूंढेंगे।

इसका एक प्रमाण तो यह मिल ही गया है कि रविवार को 2 बजे किसानों के समर्थन में पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह डूमरखां बैठेंगे और आज उनका पुत्र भी हिसार में अनशन पर नहीं गया था, वह भी वर्तमान में भाजपा का सांसद है।

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