भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

कडक़ड़ाती सर्दी और कोरोना के कहर के मध्य किसान आंदोलनकारी सडक़ों पर पड़ें हैं। उनका कहना है कि तीनों कानूनों को निरस्त करो, जबकि सरकार का कहना है कि किसान खुश हैं, जो आंदोलन कर रहे हैं वे बहकाए हुए हैं। 

अब लगता है कि हरियाणा भाजपा ने किसान आंदोलन से निपटने की रणनीति बना ली है और उसी रणनीति के तहत वह अब एसवाइएल पर प्रदर्शन करने लगे हैं और मुख्यमंत्री स्वयं नारनौल में 20 तारीख को किसान रैली करने जा रहे हैं। अर्थात यह कह सकते हैं कि सरकार का किसानों का बात का मानना नामुमकिन नजर आता है, क्योंकि सरकार का कहना है कि ये तीनों कानून किसानों के उत्थान के लिए हैं। एक कहावत प्रसिद्ध है कि हमला सुरक्षा का बेहतर उपाय है। उसी तर्ज पर लगता है हरियाणा सरकार अब चल पड़ी है। उनके संगठन के लोग फिर किसान चौपालों के करने की बातें करने लगे हैं। ऐसी हालत में यह सोचना कठिन होगा कि आने वाले समय में कैसा होगा, क्या किसान भाजपा नेताओं की बात सुनेंगे?

यदि सोचा जाए तो भाजपा सरकार के लिए यह दुष्कर कार्य होगा, क्योंकि अगस्त माह से ही भाजपा सरकार और भाजपा संगठन इसी कार्य में लगे हुए हैं। परिणाम जो सामने आ रहे हैं, वह यह हैं कि उनका समर्थन करने वाले विधायक भी उनकी बात ना समझ किसानों को उचित ठहरा रहे हैं। इसी को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह दुष्कर कार्य होगा, क्योंकि जो उनके अपने हैं वही बात नहीं समझ रहे तो बाहर के कैसे समझेंगे?

यह तो रही आंदोलन की बात। लेकिन इस आंदोलन के परिणाम बहुत चिंताजनक हो सकते हैं। कल संत राम सिंह ने स्वयं को गोली मार ली। किसान सर्दी के मारे मर रहे हैं। जैसे-जैसे ये घटनाएं होती हैं, वैसे-वैसे किसान आंदोलन की ओर जनसमर्थन बढ़ जाता है।

जबकि वास्तविकता देखी जाए तो जो-जो रास्ते किसान आंदोलन से ग्रस्त हैं वहां के लोगों को अपनी आजीविका में भी परेशानी हो रही है। सुखदेव ढ़ाबा बहुत मशहूर है लेकिन वहां से भी समाचार आ रहे हैं कि रोज बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है। ग्राहकों की संख्या आधे से भी कम रह गई है। इसी प्रकार उन रास्तों में जो फैक्ट्रियां लगी हैं, उनके कर्मचारी भी नौकरी पर पहुंच नहीं पा रहे हैं। अत: आजीविका का संकट है। परंतु विशेष बात यह है कि इन लोगों में से भी अधिकांश किसान आंदोलन का समर्थन करते नजर आते हैं।

संक्षेप में स्थिति का जो वर्णन हुआ है, उसे देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि किसान आंदोलन से जो कोरोना के डर से थोड़ी बहुत जिंदगी पटरी पर आने लगी थी, उसमें भी दिक्कतें आ रही हैं। अत: सरकार को किसी भी प्रकार किसानों से बातचीत कर इसका हल निकालना चाहिए, न कि कोई लंबा रास्ता अपनाना चाहिए।

error: Content is protected !!