गुरु का आशीर्वाद सभी व्याधियों का करता है समाधान,
जीवन में परमात्मा और गुरु को याद करते रहना चाहिए

फतह सिंह उजाला
पटौदी । 
गुरु की दी हुई शिक्षा शिष्य के लिए जीवन पर्यंत अमूल्य धरोहर से कम नहीं होती । वास्तव में गुरु को इसीलिए ब्रह्मांड में सर्वोच्च और श्रेष्ठ स्थान प्रदान किया गया है कि गुरु ही आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करके भगवान को कैसे प्राप्त किया जाए यह रास्ता शिष्यों और अनुयायियों को दिखाता है । जीवन में कितनी भी विपदा आये, कैसा भी समय हो , हमें परमपिता परमेश्वर और गुरु को सदैव याद करते रहना चाहिए । यह बात धर्म ग्रंथों के मर्मज्ञ आश्रम हरी मंदिर शिक्षण संस्थानों के संचालक महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव महाराज ने आश्रम हरी मंदिर शिक्षा संस्थान के आदि संस्थापक और अपने दादा गुरु ब्रह्मलीन स्वामी अमर देव महाराज की पुण्यतिथि के मौके पर कहीं ।

इससे पहले आश्रम हरी मंदिर संस्कृत महाविद्यालय परिसर में ही संस्थान के आदि संस्थापक ब्रह्मलीन संस्कृत के प्रकांड विद्वान स्वामी अमरदेव महाराज की स्मृति में हवन यज्ञ का आयोजन कर आहुतियां अर्पित की गई । इस मौके पर तिलक राज ,विजय कुमार, अभिषेक बंगा, सुरेंद्र धवन, दीपक सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु और अनुयाई मौजूद रहे । महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने अपने दादा गुरु ब्रह्मलीन स्वामी अमरदेव महाराज की समाधि स्थल पर पहुंच दीप प्रज्वलित कर पुष्प अर्पित करते हुए नमन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया ।

इसी मौके पर महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने कहा कि जो पवित्र और दृढ़ संकल्प लेकर दादा गुरु ब्रह्मलीन स्वामी अमरदेव ने पटौदी में पदार्पण किया , उसे अपने पवित्र संकल्प के साथ पूरा भी किया। उनका लगाया हुआ एक छोटा सा वृक्ष आज वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। मेजबान संस्था के साथ-साथ देशभर के विभिन्न स्थानों पर शिक्षा, संस्कृति, संस्कार, मानव मूल्य की शिक्षा देकर मानव का चरित्र निर्माण करने का कार्य किया जा रहा है । उन्होंने सभी श्रद्धालुओं का आह्वान किया कि जीवन में सुख हो या दुख जैसे भी हालात हो परमपिता परमेश्वर और गुरु को सदैव याद करते रहना चाहिए। गुरु का आशीर्वाद और सानिध्य प्राप्त कोई भी व्यक्ति हो , वह कठिन से कठिन हालात और जटिल समस्याओं का भी बड़े ही संयम और सहजता से समाधान प्राप्त करने में कामयाब रहता  है। गुरु और शिष्य के बीच इतना अधिक आत्मीय सामंजस्य होना चाहिए कि बिना कहे ही एक दूसरे के मनोभावों को समझ सके और पढ़ सके। गुरु हमेशा अपने शिष्य और अनुयायियों के कल्याण के लिए और दुखों को हरने के लिए ही परमपिता परमेश्वर की भक्ति में लीन रहते हैं ।

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