गुरु जो करें उसकी नकल नहीं करनी चाहिए.
गुरु जो कहे उसी पर ही अमल होना चाहिए

फतह सिंह उजाला
पटौदी ।
 गुरु का आशीर्वाद जीवन में कभी भी व्यर्थ नहीं जाता है । गुरु का स्थान इस ब्रह्मांड में सर्वश्रेष्ठ स्थान रहा है और रहेगा । गुरु जो कुछ भी करें , उसकी नकल नहीं करनी चाहिए । गुरु जो शिक्षा दें अथवा मार्गदर्शन करें उन्हीं बातों पर जीवन पर्यंत अमल करना चाहिए । गुरु अपने प्रति समर्पित शिष्यों और श्रद्धालुओं को भली-भांति जानते और पहचानते हैं । गुरु बनाना बहुत सरल है, लेकिन गुरु बनना बहुत ही मुश्किल है । यह बात महंत लक्ष्मण गिरि गौशाला बुचावास के संचालक महंत विट्ठल गिरी महाराज ने शनिवार को गौशाला परिसर में आयोजित हवन यज्ञ के मौके पर कही ।

शनिवार को गोसेवा और मानव सहित जीव के कल्याण के प्रति समर्पित विट्ठल गिरी महाराज के द्वारा अपने आध्यात्मिक गुरु जो कि अपरिहार्य कारणों से अज्ञातवास को प्रस्थान कर चुके हैं, महामंडलेश्वर ज्योति गिरी महाराज के जन्मोत्सव के उपलक्ष पर उनकी दीर्घायु और स्वास्थ्य की कामना को लेकर महादेव को साक्षात मान हवन यज्ञ का आयोजन किया गया । इस मौके पर बड़ी संख्या में गौ भक्त श्रद्धालु महाकाल के अनुयाई मौजूद रहे और पूरे श्रद्धा भाव के साथ में हवन यज्ञ में आहुतियां भी अर्पित की ।

इस मौके पर विट्ठल गिरी महाराज ने कहा कि समय और परमपिता परमेश्वर ब्रह्मांड में सभी की परीक्षा लेता है , परीक्षा लेता आया है और परीक्षा लेता रहेगा । एक सच्चे और समर्पित शिष्य के साथ-साथ श्रद्धालुओं का भी  नैतिक दायित्व बनता है कि आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने वाले गुरु का और ईश्वर को प्राप्त करने का मार्ग बताने वाले गुरु का सदैव सम्मान करना चाहिए , गुरु ही वह शख्सियत है । गुरु चाहे किसी भी हालात , परिस्थिति में रहे लेकिन कभी भी अपने शिष्यों का अहित और अनिष्ट नहीं चाहेगा। भारतीय सनातन संस्कृति में और विशेष रूप से अध्यातन के क्षेत्र में गुरु को सर्वश्रेष्ठ स्थान प्रदान किया गया है । इस स्थान को गुरु के अलावा अन्य कोई भी नहीं ले सकता । जिस प्रकार गुरु अपने शिष्यों की परीक्षा लेते हैं , उसी प्रकार से महादेव , महाकाल, परमपिता परमेश्वर के सामने भी कभी-कभी ऐसे हालात और परिस्थितियां बनती हैं कि गुरु को भी उस परीक्षा की कसौटी से गुजरना पड़ता है । उन्होंने आह्वान किया कि गुरु के प्रति निष्ठा और श्रद्धा भाव को जीवन पर्यंत बनाए रखना ही गुरु के प्रति सबसे बड़ी श्रद्धा और समर्पण हो सकता है।

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