भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

आज चुनाव आयोग ने हरियाणा में निकाय चुनावों की घोषणा कर दी और ये चुनाव दिसंबर माह में ही हो जाने हैं। परिणाम भी आ जाना है तथा वर्तमान में किसान आंदोलन के कारण सारे प्रदेश में माहौल भाजपा के विरूद्ध बना हुआ है। ऐसे में भाजपा के लिए साख बचाना बड़ा मुश्किल होगा, ऐसा चर्चाकारों का कहना है।

सर्वप्रथम तो हरियाणा में गठबंधन सरकार है और भाजपा और जजपा दोनों मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं ऐसी घोषणा दोनों दलों की ओर से की जा रही है परंतु वास्तविकता जमीन पर कुछ और ही नजर आती है। भाजपा ने भी अपने हैवी वेट नेता हर निकाय चुनाव के लिए प्रभारी बनाए हैं और ऐसा ही कुछ जजपा की ओर से किया जा चुका है। और अभी तक ऐसी कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई है कि इन दोनों दलों की निकाय चुनाव के लिए कोई बैठक हुई हो। 

निकाय चुनाव में अनेक पार्षद चुनाव लड़ते हैं, मेयर, डिप्टी मेयर होते हैं, आजकल मेयर का चुनाव डायरेक्ट होता है, ऐसी अवस्था में दोनों पार्टियों को समन्वय करने के लिए हर क्षेत्र का गहन अध्यन कर यह देखना होगा कि उस क्षेत्र में क्या समीकरण हैं, जिसमें जातीय, दलीय आदि सभी विषयों पर ध्यान रखना होगा और एक सप्ताह में इन सभी चीजों का अध्यन करना एक दृष्टि से संभव नजर आता नहीं।यह तो हुई जमीनी बात।

अब दोनों पार्टियों की बात करें तो भाजपा का कहना है कि हमारा जनाधार शहरों में बहुत है, गांवों में हम कुछ कमजोर हो सकते हैं, पहले थे। वर्तमान में हमने गांवों में भी मजबूती पाई है। शहरों के लिए तो उनका दावा मजबूत है ही। फिर पार्टी भी गठबंधन में देखें तो बड़ी है। जहां भाजपा के 40 विधायक हैं और जजपा के केवल दस। इन चीजों को देखते हुए लगता नहीं कि भाजपा निकाय चुनावों में जजपा को कुछ अधिक सीटें पर लडऩे का समझौता करे और उधर सूत्रों के अनुसार जजपा ने भी अपने हर क्षेत्र में उम्मीदवार तैयार कर रखे हैं। ऐसी अवस्था में क्या इनकी बैठक होगी, उसमें हल निकलना कम से कम पहली बैठक में तो संभव नजर आता नहीं और वर्तमान में समय इतना है नहीं कि जो लंबी बैठकें की जाएं।

इधर किसान आंदोलन के कारण भाजपा के अंदर मुख्यमंत्री के विरूद्ध कुछ आवाजें भी उठने लगी हैं। भाजपाइयों के मुंह से ही सुनी हुई बात है कि कैप्टन अभिमन्यू, प्रो. रामबिलास शर्मा जैसे दिग्गज जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं, उन्हें निगम क्षेत्र का प्रभारी इन विपरीत परिस्थितियों में बनाना उनके भविष्य के लिए राहें कठिन करने का प्लान हो सकता है। खैर यह तो भाजपा की अंदरूनी बात है। भाजपा के अनुसार उनका कोई कार्यकर्ता बड़ा या छोटा नहीं होता, हर कार्यकर्ता हर कार्य कर सकता है तो उस हिसाब से आवश्यकता अनुसार यह ठीक भी लनगता है कि विकट परिस्थितियों में धुरंधर कोई कमाल दिखा दें।

जो बात ऊपर हम कह रहे हैं, वह बात कांग्रेस भी भली प्रकार समझ रही है और उन्हें यह लगता है कि इन निगम चुनावों में उन्हें मैदान साफ मिल गया है। जिसमें वह कुछ चौके-छक्के उड़ा सकते हैं। इसका सबूत भी मिला कि आज ही घोषणा हुई निकाय चुनाव की और आज ही कांग्रेस की ओर से घोषित कर दिया गया कि वह चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ेंगे। मेरी याद में आज से पूर्व कांग्रेस ने कभी निकाय चुनाव चुनाव चिन्ह पर नहीं लड़े। 

वर्तमान परिपेक्ष में यह चुनाव भाजपा के लिए कड़ी परीक्षा नजर आ रहा है। परिस्थितियां यह कह रही हैं कि ऐसे में जीतना की बात तो दूर की कौड़ी लगती है, यहां तो लगता है कि कहीं भाजपा के उम्मीदवार उपस्थिति भी दर्ज न करा पाएं और इसका असर सीधा-सीधा भाजपा की वर्तमान सरकार पर पड़ेगा। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि यह भाजपा का लिटमस टैस्ट होगा।