न किसी पक्ष को हार  और न किसी पक्ष को जीत का गुरुर हो  
दिल्ली सहित केंद्र सरकार पर बढ़ता जा रहा दबाव. गुरु पर्व, देव दिवाली और अन्नदाता का हाथ खाली

फतह सिंह उजाला

संभवत आजादी के बाद देश के इतिहास में यह पहला मौका है, जब देश का मतदाता, अन्नदाता अपने अधिकारों के लिए और मांगों को मनवाने के लिए दिल्ली को चारों तरफ से घेर कर बैठने के लिए मजबूर हो रहा है । अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर किसान आंदोलन का पांचवा दिन भी बीत गया , लेकिन उम्मीद के विपरीत केंद्र सरकार ने अपनी मुट्ठी बंद रखी और अन्नदाता की झोली खाली ही रह गई ।

जैसे-जैसे तापमान गिर रहा है , वैसे वैसे ही फ्रंट पर बैठे फार्मर्स के साथ-साथ देशभर के किसानों का जोश गर्म होता जा रहा  है। विभिन्न राज्यों के साथ-साथ अब दिल्ली के बिल्कुल साथ लगने वाले इलाकों में शामिल मेवात जैसे क्षेत्र से भी किसानों ने किसान आंदोलन को मजबूती प्रदान करने के लिए दिल्ली प्रस्थान का बिगुल बजा दिया है । कुल मिलाकर अब देखा जाए तो मैदान भी केंद्र सरकार का है और किसानों के द्वारा डाली गई गेंद भी केंद्र के पाले में । लेकिन उम्मीद के मुताबिक आंदोलनरत किसानों की झोली अभी भी खाली ही है ।

किसान आंदोलन की सबसे खूबसूरत और सौहार्द पूर्ण बात यही है कि सभी किसान संगठन इनके कार्यकर्ता किसान और तमाम किसान बिना किसी हुल्लड़ बाजी के सौहार्द पूर्ण तरीके से शांति का माहौल बना कर केवल मात्र सड़क पर बैठे मोर्चा खोले हुए हैं । इस बीच कथित रूप से बढ़ते जवाब को देखते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और देश के गृह मंत्री अमित शाह के बीच किसान आंदोलन और किसानों की मांगों के मुद्दे पर बैठक भी हो चुकी। बैठक में क्या कुछ चर्चा हुई यह चारदीवारी से बाहर नहीं निकल  सकी । केंद्र सरकार के कृषि अध्यादेश के विरोध में अपनी मांगों को को मनवाने के लिए बैठे अनेकानेक किसान संगठनों को अपना समर्थन देने में अब चुने हुए जनप्रतिनिधियों के साथ ही कर्मचारी संगठनों ने भी मोर्चा संभाल लिया है । शायद केंद्र सरकार अभी और सरकार के मंत्री अथवा इस प्रकार के बड़े आंदोलनों के समाधान के एक्सपर्ट अभी तक ऐसा फार्मूला नहीं बना सके जिससे कि केंद्र सरकार के कृषि अध्यादेश अथवा कृषि बिल के साथ ही केंद्र सरकार सहित आंदोलनरत किसानों की मांगें मानने अथवा पूरी करने के मामले में न किसी पक्ष को हार का एहसास हो और नहीं किसी पक्ष को जीत का गुरुर हो । संभवतः सारा मामला यहीं पर ही आकर अटका हुआ महसूस किया जा रहा है।

अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के पदाधिकारियों का दो टूक कहना है कि केंद्र सरकार बिना शर्त के ही बातचीत करें । आंदोलनरत किसान और किसान संगठन तो यहां तक केंद्र सरकार के सामने अपना प्रस्ताव सार्वजनिक रूप से रख चुके हैं कि किसी भी मंत्री या फिर केंद्र सरकार के प्रतिनिधि मंत्री को किसानों के बीच धरना स्थल पर आने की भी जरूरत नहीं, किसानों की जो मांगे हैं उनको मांगने की घोषणा कर दी जाए इतने भर से ही किसान अपने गृह क्षेत्र को लौट सकते हैं । आंदोलनरत किसानों को और किसान संगठनों को जिस प्रकार से पांचवें दिन पूरे देश से समर्थन मिलना आरंभ हुआ उस समर्थन से केंद्र सरकार पर ही दवाब बढ़ता हुआ महसूस किया जा सकता है ।

काश देश का पेट भरने वाला अन्नदाता वोट की भी खेती कर पाता तो शायद ही देश के मतदाता , अन्नदाता को अपनी मांगे मनवाने के लिए नवंबर-दिसंबर माह की ठंड में दिन रात सड़क पर बैठने को मजबूर नहीं होना पड़ता । आंदोलनरत किसानों और किसान संगठनों के द्वारा देश की राजधानी दिल्ली के 5 एंट्री प्वाइंट्स पर अपनी घेरा बंदी करके रखी गई है। इस पूरे प्रकरण में आंदोलनरत किसानों सहित किसान संगठनों में इस बात को लेकर बना रोष और गुस्सा भी शांत होने का नाम नहीं ले रहा कि दिल्ली आते समय उनको रोकने के लिए विभिन्न स्थानों पर खासतौर से हरियाणा राज्य में मुख्य सड़क मार्गों को तोड़ दिया गया, विभिन्न स्थानों पर रोकने के लिए किलेबंदी जैसी नाकाबंदी की गई और वाटर कैनन तक का प्रहार किया गया । इसी दौरान हजारों किसानों पर विभिन्न गंभीर धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज किए जा चुके हैं । किसानों पर मुकदमे दर्ज किया जाना जानकारों के मुताबिक एक प्रकार से दवाब बनाने की प्रक्रिया का ही हिस्सा  है ।

हालांकि सोमवार को गुरु पर्व , देव दीपावली के मौके पर पीएम मोदी के द्वारा भी सार्वजनिक मंच से दावा किया गया की केंद्र सरकार के द्वारा जो भी कृषि अध्यादेश अथवा बिल बनाया गया है , वह पूरी तरह से किसान और किसानी के हित में ही  है । इन नए कृषि अध्यादेशों और बिजली बिल 2020 का देश के सभी किसानों को दूरगामी लाभ मिलना निश्चित है। कुल मिलाकर बेबाक और बेलाग सवाल सहित बात यह है की पूरे देश भर से ढाई सौ से अधिक विभिन्न किसान संगठन और अनगिनत किसान अपना घर , खेत , खलिहान सब कुछ छोड़ कर दिल्ली सीमा पर कड़ाके की ठंड में भी डेरा डाले हुए हैं । तो इस बात से भी इनकार नहीं की नए कृषि अध्यादेश अथवा कृषि बिल में जरूर ऐसी खामियां हैं जिनसे किसानों  को अहित की आशंका सता रही है । इसी आशंका के निवारण और समाधान के लिए ही अनगिनत किसान दिल्ली के फ्रंट पर ऐसे डटे हुए हैं जैसे देश की सीमा पर जवान आम आदमी , नेता, अभिनेता सहित प्रत्येक नागरिक जिसमें हिंदू , मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी शामिल है, उनके लिए चैन की नींद सोने के वास्ते अपनी जान हथेली पर रखते हुए चैकसी कर रहे हैं ।

वही देश का मतदाता जोकि अन्नदाता भी है , अपने हक हकूक के लिए देश की राजधानी दिल्ली के चारों तरफ डेरा डाले हुए हैं । अब  कृषि बिल को लेकर मामला पूरी तरह से केंद्र सरकार के पाले में ही किसानों के द्वारा डालकर छोड़ दिया गया है । वर्ष 2020 के इस किसान आंदोलन और इसके समाधान पर मतदाता, अन्नदाता और जवानों के साथ ही पूरे देश सहित दुनिया की भी नजरें टिकी हुई है । अब देखना यही है की इस किसान आंदोलन और केंद्र के विचार मंथन से कौन से और कैसे अमृत रूपी समाधान या फिर घोषणाएं बाहर निकल कर के आएंगे जिससे कि मतदाता, अन्नदाता अपनी लहलाती फसल को देख खुश होने के जैसे प्रसन्न हो सकेगा।

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