किसान जब आंदोलन करता है तो सरकार के खिलाफ जनमत तैयार कर देता है। धर्मपाल वर्मा चंडीगढ़। पूरे भारत में एक पुरानी मान्यता है कि किसान जब आंदोलन करता है तो वह इसे लंबा भी चला सकता है । वह सरकार के खिलाफ जनमत तैयार कर देता है और कई बार उसके आंदोलनों से सत्ता परिवर्तन भी हुआ है । यह अलग बात है कि कई बार आंदोलनों से किसानों को लाभ नहीं हुआ है परंतु सत्ता परिवर्तन में उसका योगदान हमेशा बना रहा है । कुछ ऐसा ही अब चर्चित कृषि कानूनों को लेकर किसानों के दिल्ली कूच आंदोलन से नजर आने लगा है । यद्यपि अभी चुनाव का समय नहीं है परंतु पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पर चुनाव की तैयारी को लेकर भाजपा परस्त सीधे आरोप लगाने लगे हैं । आज स्थिति यह है कि जबकि किसान ने केंद्र की मोदी सरकार को बैकफुट पर लाकर खड़ा कर दिया है । किसान यूनियन के झंडे के नीचे चले इस आंदोलन में कई ऐसी अनुशासित चीजें देखने को मिली है जो यह संकेत देती हैं कि किसान के दिलो-दिमाग में केंद्र सरकार ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर भी बहुत भारी क्षोभ है । कैप्टन अमरिंदर सिंह वास्तव में मजबूत हुए हैं और वे एक नायक की तरह देखे जाने लगे हैं । स्थिति यह है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री हरियाणा की सरकार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष चीख चीख कर कह रहे हैं कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह उनसे बात करने के लिए लाइन पर नहीं आ रहे हैं। ऐसा कई दिन से हो रहा है। लेकिन हरियाणा और हरियाणा के किसानों को यह मान लेना चाहिए कि इस आंदोलन से उन्हें एक नुकसान यह हो सकता है कि फिर से सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद हरियाणा को पंजाब से एसवाईएल के पानी मिलने में अब बहुत दिक्कत पेश आ सकती हैं ।क्योंकि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एसवाईएल पर जो स्टैंड लिया पूर्व मुख्यमंत्री सरदार प्रकाश सिंह बादल ने जिस तरह से खुदी हुई एसवाईएल नहर को अटवाने का काम किया उससे पंजाब का किसान इस मसले पर पहले से ज्यादा आक्रामक हो सकता है। उसने आज हरियाणा में आकर अपनी ताकत दिखाई है अपना हौसला दिखाया है हिम्मत दिखाई है वह उसे एसवाईएल के मामले पर चुप नहीं बैठने देगा और जानकार यह मानकर चलने लगे हैं कि हरियाणा के हितों को एक बार फिर भारी नुकसान होने वाला है । इन परिस्थितियों में भी जब पंजाब के किसानों को हरियाणा से जनता की सपोर्ट मिल रही है तो इससे भी यह बात साफ हो गई है कि हरियाणा में भाजपा के खिलाफ माहौल बन रहा है।आंदोलन इतना सिस्टम से चल रहा है कि इसे योजनाबद्ध कार्यवाही कहना अनुचित नहीं होगा। कहीं कोई हिंसा नहीं ,कहीं कोई प्रतिरोध नहीं ,किसानों की तैयारियां उनकी अपनी है। लोगों ने सर्दी के बावजूद पंजाब से चलने से पहले महीने भर का राशन घर से या आपसी सहयोग से इकट्ठा किया रास्ते में भोजन खुद तैयार किया बल्कि औरों को भी खिलाया ।सर्दी में सड़क पर रात काटने की हिम्मत दिखाई और यह साबित करने की कोशिश की कि पंजाब के किसान की इच्छा शक्ति और संघर्ष करने का मादा औरो से कुछ ज्यादा है । वह इसलिए कि हरियाणा का किसान भी उसे न केवल समर्थन दे रहा है बल्कि उसकी हिम्मत की दाद भी दे रहा है । यह बड़ी बात है। बात को समझा जा सकता है कि हरियाणा में किसान यूनियन के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी किसानों को माइक से सीधा संदेश दे रहे हैं कि कोई पुलिस वाला हाथ उठाए तो आपने उसका प्रतिकार नहीं करना है, आपने हाथ नहीं उठाना है ।पुलिस चाहे गोली चला दे परंतु आप प्रतिकार न करें । सड़क को नहीं घेरना है मतलब आंदोलन को हिंसा से बचाना है। आमजन को दिक्कत नहीं होने देनी है। भीड का जलजला हिम्मत और हौसला देखकर लगता है कि किसान अपनी बात मनवा कर ही लौटेंगे। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नेता इसे शाहीन बाग ना समझने की गलती न करें न ही इसे खालीस्तान की भावना से जोड़ें ।शाहीन बाग का भाजपा को लाभ हुआ था क्योंकि इसे हिंदू और मुस्लिम भावना से जोड़कर प्रचारित कर दिया गया और इससे हिंदुओं में हुआ ध्रुवीकरण भाजपा के काम आया था परंतु अब ऐसा बिल्कुल नहीं है। लोगों ने सोशल मीडिया पर जो दृश्य देखें उससे लगता है कि जनता का बदल रहा है।उसकी एक बानगी देखिए एक जट सिख जीटी रोड पर मुरथल में लगे बड़े नाक्के को किसानों किसानों द्वारा ध्वस्त किए जाने और ट्रैक्टर निकालकर दिल्ली की ओर अग्रसर होने के समय ऊंचे पुल पर खड़ा होकर बुलंद आवाज में कह रहा है कि और आ गए ने बब्बर शेर और मोदी दे टटपून्जिए खड़े खड़े देख रहे ने तमाशा । टटपून्जिए से उसका मतलब है पुलिस प्रशासन । कहता है ,गलत पंगा ले लिया ओ मोदिया ।अब दिल्ली दी हिक पर चढ़णगे। मतलब दिल्ली की छाती पर चढ़ना है । बोलता है मुरथल का बैरीगेट सबसे मजबूत बताया जा रहा था ।पंजाब बब्बर शेर ने उसे उखाड़ फेंका है। मोदी के लोगों ने जिस नाके को क्रेनों से तैयार किया गया था उसे मेरे वीरों ने हाथ से उखाड़ फेंका है और ट्रैक्टर उसी नाके की गर्दन पर चढ़ गए हैं । किसानों के इस प्रयोग के पीछे एक दो नहीं कई कारण नजर आ रहे हैं । एक यह कि सरकार उसके मंत्री संत्री नेता मौखिक वक्तव्य तो यह दे रहे हैं कि एमएसपी खत्म नहीं होगा लेकिन इस पर कानून बनाने को तैयार नहीं हो रहे हैं ।ऐसा क्यों ।इस सवाल ने किसान को एक कर दिया है और पंजाब में साथ-साथ हरियाणा में भी कांग्रेस के नेताओं ने किसानों को यह समझा दिया है कि सरकार वास्तव में एमएसपी खत्म करना चाहती है इसीलिए अध्यादेश लाया गया । सरकार मुट्ठी भर पूंजीपतियों के दबाव में है और वह एमएसपी खत्म करने वाला कानून लाएगी ही नहीं। उन्हें यह सुनता दिया गया है कि अध्यादेश उन अवस्थाओं में लाया जाता है जब आसपास संसद के सत्र का वक्त ना हो या ऐसी कोई नौबत आ जाए कि ऐसा करना बहुत जरूरी हो जाए ।जबकि ऐसी कोई अवस्था थी नहीं बल्कि संसद का अधिवेशन भी कोरोना काल में बुलाया गया । विपक्ष की परवाह किए बिना, किसी की सुनवाई किए बिना । जल्दबाजी में अध्यायदेशों को कानून बनाने का काम किया गया । मतलब चोरी चोरी चुपके चुपके योजना को इस तरीके से सिरे चढ़ाया गया कि एक हरियाणवी कहावत चरितार्थ होती नजर आई जिसमें कहा जाता है कि ऊंट की चोरी कोडे कोडे नहीं की जा सकती। लगता है अब किसानों ने अब सरकार की दुखती रग पर पांव रख दिया है और उसकी एक ही मांग रह गई है कि सरकार यह कानून बनाए कि एमएसपी खत्म नहीं होगी और आवश्यक वस्तु अधिनियम से छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह राजनीतिक तौर पर शानदार समझ रखते हैं और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा किसानों की नब्ज जानते हैं। इन दोनों का इस तरह से इकट्ठे हो जाना भारतीय जनता पार्टी के लिए एक नया संदेश है। कैप्टन अमरिंदर सिंह राजनीति के कुशल खिलाड़ी है । उन्होंने एसवाईएल पर हरियाणा के पक्ष में आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पंजाब विधानसभा का सत्र बुलाकर जिस तरह से निरस्त किया था वह उनका राजनीतिक अस्त्र बन गया है । आज उसी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब के किसान को यह भी समझा दिया है कि केंद्र की मोदी सरकार पंजाब के साथ लगातार भेदभाव कर रही है और यह बात इन 3 कानूनों के बाद पंजाब के किसानों की समझ में भी आ गई है। आज देशभर के किसान यह देख रहे हैं कि पंजाब सरकार किसानों को दिल्ली भेजना चाह रही थी दिल्ली की केजरीवाल सरकार उसे बुला रही थी लेकिन बीच में हरियाणा की भाजपा सरकार उसी किसान को रोक रही थी लेकिन सारे प्रबंध पंजाब के किसान की हिम्मत के आगे धरे के धरे रह गए। और आज यह स्थिति है कि केंद्र में बैठे भारतीय जनता पार्टी के नेता जहां किसानों के दिल्ली आगमन का विरोध कर रहे थे अब यह पेशकश करने लगे हैं कि आप दिल्ली में आइए ,आपके लिए कई जगह उचित व्यवस्था कर दी गई है ।आप 3 दिसंबर को बात कीजिए आपकी सारी बातें मानेंगे। एक बात दावे से की जा सकती है कि इस आंदोलन से किसानों को, भारतीय किसान यूनियन को, कांग्रेस को और पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को और थोड़ा बहुत हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को लाभ होने जा रहा है। यद्यपि आंदोलन में शामिल पंजाब और हरियाणा के किसानों ने यह कोशिश की है कि उन पर किसी राजनीतिक दल के हाथों में खेलने का आरोप न लगे । इसका एक प्रमाण जीटी रोड पर करनाल टोल नाके पर उस समय देखने को मिला जब कांग्रेस के नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला की तरफ से किसानों को कंबल बांटने की कोशिश की गई तो किसानों ने इन कमरों को लौटा दिया मतलब लेने से इनकार कर दिया। Post navigation जिला पंचकूला के साथ सौतेला व्यवहार असहनीय: चंद्रमोहन सरकार 72 घंटों के अन्दर धान की फसल का भुगतान करना सिर्फ एक ढकोसला है – राहुल गर्ग