लालू, विधायक ललन और लोकतंत्र

-कमलेश भारतीय

बिहार के नव निर्वाचित विधायक ललन पासवान ने केस दर्ज करवाया कि चारा घोटाले में सज़ा काट रहे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने फोन कर उनको मंत्री बनाये जाने का लालच दिलाकर कहा कि अध्यक्ष पद के लिए हमें समर्थन देना । इस तरह महागठबंधन की तरफ लाने की कोशिश की । बाकायदा फोन डिटेल्स और समय तक बताया गया । इसका असर यह हुआ कि लालू प्रसाद को 82 दिन बाद बंगले से रिम्स के पेइंग वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया । यह छोटी सी सज़ा दी गयी फिलहाल ।

ललन कह रहे हैं कि मुझे दुख है कि लालू ने मुझे बिकाऊ समझा । दूसरी ओर भाजपा ने झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की है । यह बहुत शर्मनाक लोकतंत्र का मात्र एक उदाहरण नहीं है । लोकतंत्र का अपहरण पिछले कुछ सालों में इतना हो गया कि शर्मसार ही होते रहते हैं । अभी कांग्रेस के संकटमोचक अहमद पटेल का निधन हो गया । याद है आपको उनका राज्यसभा चुनाव ? जब आधी रात को आधी वोट से वे कैसे जीते थे ? और एक बड़े नेता कैसे चुनाव परिणाम रोकने पर अड़े हुए थे । वह लोकतंत्र सबने देखा । चाहे भाजपा, चाहे कांग्रेस दोनों ने अपने अपना विधायक कैसे छिपाए थे ? यह विधायकों की खरीद फरोख्त पिछले वर्षों में इतनी बढ़ती जा रही है कि अब तो लगता है कि हर विधायक ऑन सेल यानी बिकाऊ है ।

पूरी मंडी लगी थी मानेसर में अभी कुछ महीने पहले जब राजस्थान सरकार को पलटने का खेल खेला जा रहा था । तब कहां थे ललन पासवान जैसे विधायक? सब होटल और मोटल में मज़े लूट रहे थे और सबको दिख रहा था कि लोकतंत्र की लूट है , लूट सके तो लूट । पर किसी कारणवश लूट पूरी न हो पाई और अशोक गहलोत सरकार को बचाने में सफल रहे । उत्तराखंड और मणिपुर में क्या नहीं हुआ ? गोवा में रातों रात सरकार बन गयी और महाराष्ट्र में भी आधी रात को देवेंद्र फडणबीस व अजीत पवार को शपथ दिलाकर लोकतंत्र को शर्मिंदा किया गया । यह लोकतंत्र तो ऐसा लगता है कि विधायकों से मुंह छिपाता फिर रहा है । कितने रिपोर्ट्स और कितने होटल्स में विधायक मुफ्त में देखते और इंजाॅय करते है ?

क्या तब लोकतंत्र को लूटा नहीं जाता? किसने इस खेल को शुरू किया , यह सवाल वैसे ही है जैसे कि मुर्गी ने अंडा कब और कैसे दिया? पूरी की पूरी सरकार पलट जाये , ऐसा नजारा और कहां ? सूटकेस से सरकार बन जाये , यह और किसी देश में कहां ? रिमोट कंट्रोल से सरकारें गिरा दी जायें , यह हमारे ही देश में संभव है । ऐसे करिश्मे देख देख कर बहुत दुख होता है । लालू, ललन और लोकतंत्र बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर गये । यह बिकाऊ विधायक कब होश में आएंगे और जनता भी कब समझेंगी यह मंडी कैसे चलती है और कौन चलाता है ? काश , लोकतंत्र के सेवक यह बात समझ लें कि बिक गया जो वो खरीददार नहीं हो सकता ।

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