भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

भाजपा-जजपा का गठबंधन तीन कृषि कानूनों के बाद से सवालों के घेरे में ही रहा है। विपक्ष या जनता में आवाज उठती रहती है कि ये अलग होंगे लेकिन दोनों की ओर से कहा जाता है कि हम मजबूत हैं और इकट्ठे हैं लेकिन कार्यशैली अलग ही नजर आती है।

बरौदा उपचुनाव की तरह ही या उससे भी अधिक गठबंधन की दोनों पार्टियों के विरोधाभास सामने आने लगे हैं। अभी दो दिन पूर्व मुख्यमंत्री कहते हैं कि पंचायत और निगम चुनाव जब सरकार में गठबंधन के साथ हैं तो मिलकर ही लड़ेंगे। अगले दिन ही प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ पंचकूला, सोनीपत और अंबाला के लिए मंत्रीमंडल के वरिष्ठ मंत्रियों को प्रभारी बनाने का पत्र डाल देते हैं। कैप्टन अभिमन्यु, सुभाष बराला और शिक्षा मंत्री गुर्जर को तीनों निगम के प्रभारी की घोषणा कर दी जाती है। उसके चंद घंटों बाद ही जजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय चौटाला मीटिंग करते हैं और निगम और पंचायत चुनाव के लिए समिति गठित करते हैं, शीघ्र निर्णय की बात करते हैं और आज समिति की ओर से पंचायत और निगम चुनाव के लिए अलग से कमेटियां गठित कर दी गई हैं। जिसमें निगम के लिए डॉ. केसी बांगड और पंचायतों के लिए राजेंद्र लितानी के नेतृत्व में वरिष्ठ नेताओं की समिति गठित की गई है।

ये तो दो दिन में घटी घटनाएं हैं, जो चिल्ला-चिल्लाकर कह रही हैं भाजपा सरकार और भाजपा संगठन में ही तालमेल नहीं है तथा भाजपा और जजपा में भी तालमेल नजर नहीं आ रहा।यदि भाजपा सरकार और संगठन में तालमेल होता तो कुछ समय पूर्व मुख्यमंत्री का यह ब्यान कि हम मिलकर चुनाव लड़ेंगे और अगले दिन प्रात: ही ओमप्रकाश धनखड़ तीन प्रभारी नियुक्त करते हैं,

मुख्यमंत्री की ओर से इस पर कोई रिएक्शन नहीं आता है। हालांकि भाजपाइयों में जरूर यह चर्चा चल रही थी कि संगठन का काम होता है चुनाव लडऩा और लड़वाना या संगठन सरकार के मंत्रियों को लगा रहा है। ऐसे ही जेपी दलाल को बरोदा का प्रभारी बनाया था, क्या परिणाम रहा। जिला अध्यक्ष जमीन से जुड़ा होता है। संगठन के आदमी संगठन से तालमेल करना जानते हैं लेकिन धनखड़ साहब जिस दिन से बने हैं प्रदेश अध्यक्ष, तभी से कह रहे हैं कि एक हफ्ते में संगठन का कार्य पूर्ण कर लिया जाएगा। चर्चा सुनी है कि अब लगता है कि यह कहीं फिर निगम चुनाव और पंचायत चुनाव के बाद तक न टल जाए। अब यह भी सुना है कि धनखड़ जी इसी मास के अंत में 29-30 को कार्यकारिणी घोषित करेंगे। खैर, गलती हुई, हमारा विषय भाजपा नहीं है। 

बरोदा उपचुनाव से पहले भी यही कहा जा रहा था कि दोनों दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे और एक बार तो यह बात लगभग तय मानी जाने लगी थी कि उम्मीदवार जजपा का होगा और चुनाव चिन्ह भाजपा का। नाम भी तय हो गया था केसी बांगड़ का लेकिन जैसा कि ज्ञात हुआ जजपा की ओर से आ गया कि हम लड़ेंगे तो अपने चुनाव चिन्ह पर ही लड़ेंगे, अपने वरिष्ठ नेता को आपकी पार्टी ज्वाइन नहीं कराएंगे। परिणाम सामने रहा। बरोदा चुनाव में जजपा की भूमिका पर अब भी प्रश्न चिन्ह उठ रहे हैं कि या तो उन्होंने साथ नहीं दिया और या फिर जजपा का जनाधार समाप्त हो गया।

इन चुनावों से पूर्व न तो दोनों पार्टियों के संगठन की बैठक हुई और न कोई चर्चा हुई तथा दोनों ने अपनी-अपनी चुनाव लडऩे की रणनीतियां बनानी आरंभ कर दीं। अब जब सरकार में साथ हैं और चुनाव बकौल मुख्यमंत्री मिलकर साथ लडऩा है तो रणनीति भी मिलकर साथ ही बनानी चाहिए न। ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है और यही बात आने वाले समय के संकेत दे रही है कि भाजपा कहेगी शहरों में हम मजबूत हैं, शहरों में हम लड़ेंगे और जजपा कहेगी कि गांव में हम मजबूत हैं तो पंच सारे हमारे होंगे। ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है, क्योंकि जब बरोदा एक एमएलए की सीट पर इतना घमासान हुआ तो यह तो पंचायत चुनाव सारे हरियाणा की बात है। क्या होगा, यह दिखाई दे रहा है या कह सकते हैं कि आने वाले समय में दोनों पार्टियों में जमकर तनातनी बढ़ेगी, उसका परिणाम क्या होगा, यह तो समय बताएगा लेकिन हम यह बात अवश्य कह सकते हैं कि यह गठबंधन सरकार सत्ता की सालगिरह मना चुकी तारीख के हिसाब से। दीवाली को शपथ ली थी, दीवाली भी जा चुकी परंतु अब तक संपूर्ण हरियाणा में कहीं भी भाजपा और जजपा के कार्यकर्ता इकट्ठे नहीं देखे गए। न यह देखा गया कि जजपा का नेता जाए तो भाजपा के स्थानीय नेता उसके सम्मान इकट्ठे हों और न ही यह कि भाजपा का बड़ा नेता आए तो जजपा के स्थानीय नेता इकट्ठे हों। ऐसी अवस्था में हमें तो लिखना है लेकिन जिनको गठबंधन कर फैसला करना है उन्हें सारी सर्दी में पसीने जरूर आते रहेंगे।

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