सरसों के तेल और घी के दिये पर्यावरण के सरंक्षक.
बिजली की रंगीन रोशनी में पनपते हैं मच्छर-कीट पतंगे.
लक्ष्मी पूजन के लिए  शुद्धता है आवश्यक

फतह सिंह उजाला

पटौदी। दिवाली पर लक्ष्मी के पूजन के लिए मिट्टी के दिए, सरसों का तेल और घी इस्तेमाल करने के पीछे पर्यावरण के सरंक्षण और मानव स्वास्थ्य का गूढ़ रहस्य भी समाहित है। फसलों की कटाई और बदलते मौसम में मच्छरों के साथ बीमारियां फैलाने वाले नाना प्रकार के कीट भी पैदा होने लगते हैं। इन दिनों में तो कोरोना कोविड 19, डेंगू, वायरल, फीवर जैसी बीमारी के साथ ही प्रदूषण की समस्या भी गंभीर बनी हुई है।  महाकाल के अनुयायी, महंत लक्ष्मण गिरि गौशाला के संचालक स्वामी बिठ्ठल गिरि बताते हैं कि लक्ष्मी पूजन के लिए सरसों के तेल और शुद्ध घी के दिए जलाने से पर्यावरण शुद्ध होता है, साथ ही पनपने वाले कीट पतंगों पर भी नियंत्रण होता है। सरसों के तेल की खूबी है कि यह तीन वर्ष तक खराब भी नहीं होता है।

बिजली की रंगीन रोशनी में मच्छर-कीट पतंगे पैदा होकर स्वास्थ्य के लिए खतरा बन जाते हैं। बेशक आज दुनिया को मात देते हुए हम अंतरिक्ष में अपनी धाक साबित कर चुके हैं। लेकिन हमारी पुरातन संस्कृति और त्योहार की मान्यता जमीन से ही जुड़ी हैं। होली के बाद दिवाली ही एक ऐसा त्योहार है जो अमीर-गरीब की दूरी को सड़क किनारे पटरी पर मिट्टी के दिए की सजी दुकान पर लाकर बराबर कर दिखाता है।

शिक्षाविद, चिंतक और वेंदों के ज्ञाता महाममंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव का कहना है कि कितने ही गरीब या एक वक्त भूखा सोने वाला मजदूर परिवार हो या फिर महंगे से महंगे होटल में लंच अथवा डिनर करने वाला रहीस परिवार हो। वर्ष में दिवाली का ही एक ऐसा दिन आता है जब दोनों के ही घरों में लक्ष्मी पूजन के लिए मिट्टी के दिए जलाए जाते हैं।  लाखों रूपए की गाड़ी में महंगा और मुंह मांगी कीमत पर सामान खरीददार भी मिट्टी के दीए विक्रता से खरीदता हैं। यही कारण है कि हमारे जितने  भी त्योहार हैं । और उनके मनाने के कारण एवं तरीके के पीछे जितना आध्यात्मिक महत्व है उतना ही वैज्ञानिक आधार भी है।

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