भिखारिन

छाती उफान पर थी परंतु उसमें दूध नहीं था । गोद में नन्हा  बच्चा दूध के लिए बिलख रहा था । दूध के लिए वह सड़कों पर हाथ पसारे फिर रही थी । उसने बूढ़े रईस की आंखों के इशारे को भांप लिया और जा-कर चुपचाप उसकी लंबी गाड़ी में बैठ गई ।        

 अपने महलनुमा सुंदर फ्लैट में रईस बूढे ने लड़की को अपने हाथों से नहलाया, धुलाया और अच्छे कपड़े पहनाए । बच्चे को नौकर के हाथ बाहर भिजवा दिया । आदेश दिया कि बच्चे को भरपूर दूध पिलाया जाए और रोने नहीं दिया जाए ।          

  भिखारिन को चंद घंटों के लिए स्वर्ग नसीब हो गया ।        

 रईस बूढा आदमी नपुंसक हवस को शांत करने की कोशिश में लड़की के नंगे शरीर से खेलने लगा और देर तक खेलता रहा ।  उसके कोमल शरीर को भोगता रहा, लूटता रहा । भिखारिन आंखें बंद किए स्वर्गीय आनन्द में लीन थी, उसके लिए यही स्वर्ग था । जन्नत थी । आनन्द था क्योंकि यहाँ उसे भरपेट खाने को मिला था । बच्चे को दूध नसीब हुआ था । चंद घंटों के स्वर्णिम लोक में वह विचरण कर रही थी ।     

अगले रोज, जन्नत की तलाश में ललचाई भिखारिन फ्लैट के बाहर घंटों घूमती रही । अमीर आया, और उसने देखा– ‘उसकी गाड़ी में कोई नई भिखारिन लड़की लाई गई है, जिसे उसी की तरह स्वर्ग नसीब होगा ।’ वह उदास हो गई और अपने भाग्य को कोसने लगी ।     

 उस बूढे अमीर ने एक बार भी उसकी तरफ आँख उठाकर नहीं देखा । भूखा बच्चा माँ की छाती से चिपका,  पिछले दिनों की तरह रोता-बिलखता रहा, भूखे पेट मचलता रहा ।

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