बीजेपी के गले की फांस बन गया बरोदा उपचुनाव

उमेश जोशी

उपचुनाव में हार-जीत का मनोविज्ञान और नफा-नुकसान सत्तारूढ़ दल को सबसे ज़्यादा प्रभावित करता है। सत्तारूढ़ दल के पास जनता को लुभाने के लिए योजनाओं की मोटी पोटली होती है। अपने भूत से सुनहरी भविष्य का भरोसा देने का मज़बूत आधार होता है। खजाने के किवाड़ खोलने की कोई कानूनी अड़चन भी नहीं होती है। सत्तारूढ़ पार्टी का एक ही मक़सद और एक ही दर्शन होता है, येन केन प्रकारेण उपचुनाव जीतना। दाँव पर लगी होती है इज़्ज़त। दाँव पर लगा होता है भविष्य। इसके पीछे का मनोविज्ञान समझना जरूरी है। 

 उपचुनाव में एक सीट की हार-जीत के बड़े मायने होते हैं। लोकतंत्र में बीजगणित जैसे फॉर्मूलों से एक्स के मूल्य से वाई का मूल्य निकालना होता है और उसी मूल्य से राजनीतिक पंडित सरकार की कुंडली बनाते हैं। यदि सरकार पूर्ण बहुमत में है या गठबंधनी सरकार में सदस्य संख्या अच्छी खासी है तो एक सीट जीतने से कोई फर्क नहीं पड़ता। एक सीट जीतने के मायने तब बदल जाते हैं जब वो सीट विपक्ष से छीनी जाती है। अब हार का मनोविज्ञान भी समझ लें। एक सीट हारने से ही पूरे राज्य में सीधा संदेश जाता है कि सरकार  की लोकप्रियता का ग्राफ गिर रहा है। सब कुछ होते हुए भी सत्तारूढ़ पार्टी एक सीट नहीं जीत पाई। इस हार से सरकार तो नहीं हिलती लेकिन सरकार के प्रति जनता का भरोसा हिलता दिखने लगता है जो भविष्य के लिए अपशकुन का संकेत है।

उपचुनाव के मनोविज्ञान से देखें तो बरोदा उपचुनाव बीजेपी के गले की फांस बन गया है। बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक रखी है। भांति भांति की योजनाओं से मतदाताओं को सम्मोहित किया जा रहा है। जाट बहुल क्षेत्र होने के कारण जाट कार्ड खेलने का पूरा इंतज़ाम किया हुआ है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़, उपचुनाव के प्रभारी कृषि मंत्री जेपी दलाल, साझीदार पार्टी जेजेपी के अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री दुष्यन्त चौटाला सभी जाट मतदाताओं को लुभाने के लिए शीर्षासन तक करेंगे।    हाल में किसानों से संबंधित तीन क़ानून बने हैं जिनसे किसान बेहद नाराज हैं। कानून वापस नहीं होंगे तो किसान भी खुश नहीं होंगे। ना नौ मन तेल होगा, ना राधा नाचेगी। मतलब कि किसानों की नाराजगी खत्म नहीं होगी भले ही मुख्यमंत्री समेत सारे नेता शीर्षासन करते रहें।   

बीजेपी उम्मीदवार उतारने में बड़ी सावधानी बरतेगी। ऐसा उम्मीदवार उतारेगी जो जाट मतदाताओं को भी स्वीकार्य हो। एक पत्रकार से यही पूछा कि बीजेपी मैदान में किसे उतार सकती है। उनका जवाब था कि किसी को भी उतारे, नतीजा 60:40 का रहेगा। अपने जवाब का खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि 60 प्रतिशत काँग्रेस और 40 प्रतिशत में सारी पार्टियाँ। 

 उनके आकलन से शतप्रतिशत तो सहमत नहीं हूँ लेकिन इतना अवश्य समझ आ रहा है कि काँग्रेस अपनी सीट हाथ से नहीं जाने देगी भले ही वो किसी को भी टिकट दे। 2019 के चुनाव में काँग्रेस ने जीत दर्ज की थी। 1967 से अब तक इस विधानसभा क्षेत्र में 13 चुनाव हुए हैं जिनमें से काँग्रेस ने पांच चुनाव जीते है। पिछले तीन चुनाव काँग्रेस ही जीत रही है। 2014 में मोदी लहर में भी बीजेपी इस सीट पर कब्ज़ा नहीं कर पाई थी। आज हालात बिल्कुल अलग हैं। किसानों की भारी नाराज़गी है। इन हालात में इस सीट पर जीत के बारे में बीजेपी का सोचना ही ऊसर भूमि पर अंगूर उगाने जैसा प्रयास है।

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