भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

आज भाजपा ने ट्रैक्टर रैली के माध्यम से यह दिखाने का प्रयास किया कि किसान उनके साथ हैं लेकिन सारी सरकार और संगठन मिलकर भी यह नहीं दिखा पाए कि किसान उनके साथ हैं। और कहीं की क्या कहें प्रदेश अध्यक्ष जहां रैली कर रहे थे, वहां के बारे में भी समाचार आ रहे हैं कि ट्रैक्टर किराये पर लाए गए और दिहाड़ी वाले आदमियों से चलवाए गए। अब यह बात भाजपा वाले तो मानेंगे नहीं।

इसी प्रकार भिवानी से भी समाचार मिले कि दावा था 500 ट्रैक्टरों का और ट्रैक्टर मुश्किल से हुए 100। उनमें भी संगठन की फूट सामने नजर आई। तात्पर्य यह है कि वह कहावत चरितार्थ हो रही है कि मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की।

दस तारीख को पीपली कांड के पश्चात जब भाजपा बैकफुट पर थी, तभी हमने लिखा था कि भाजपा अधिक देर बैकफुट पर रहने वाली नहीं और वह इस आंदोलन के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराएगी तथा वही अब हो रहा है। चाहे प्रदेश के मुख्यमंत्री हों, उपमुख्यमंत्री हों, गृहमंत्री हों, कृषि मंत्री हों या फिर संगठन के प्रदेश अध्यक्ष हों, सभी के ब्यान अर्थ केवल और केवल यह निकल रहा है कि किसान तो हमारे साथ हैं। ये तो कांग्रेसी अस्थिर करने के लिए इस प्रकार की स्थितियां पैदा कर रहे हैं।

प्रश्न उठता है कि एक ओर तो भाजपा कह रही है कि कांग्रेस हरियाणा में समाप्त है, जो नेता हैं वे गुटों में बंटे हुए हैं और बरौदा चुनाव भी अकेले भूपेंद्र सिंह हुड्डा लड़ेंगे तथा दूसरी ओर यह भी कह रहे हैं कि कांग्रेस ने किसानों को बरगला लिया। अरे भाई, हमारे लाखों कार्यकर्ता सरकार की शक्ति, काबिल प्रदेश अध्यक्ष का संगठन वह सब पिछले लगभग एक माह से केवल और केवल किसानों को समझाने के काम में ही लगे हुए हैं तो हम क्या यह मान सकते हैं कि यह टूटी-फूटी कांग्रेस भाजपा सरकार और संगठन पर भारी पड़ रही है।

अब आगे भाजपा सरकार को यह सोचना पड़ेगा कि इन तीन नए कृषि कानूनों को किस प्रकार हम किसानों समझाएं कि ये उनके हित में हैं। दूसरी ओर वर्तमान मंडियों में बाजरे की खरीद की भी चल रही है। उसमें भी जगह-जगह से समाचार आ रहे हैं कि किसानों का पूरा बाजरा नहीं खरीदा जा रहा। कोविड-19 की वजह से खरीद के लिए सीमित संख्या में किसान बुलाए जा रहे हैं। अब इस सीमित संख्या में बुलाने से सारे किसान तो महीने में भी नहीं आ पाएंगे। तो क्या सरकार बाजरे की खरीद तब तक जारी रखेगी, जब तक हर किसान का बाजरा खरीद न लिया जाए। दूसरी ओर यह मेरी फसल-मेरा ब्यौरा पोर्टल नेट की कमी के कारण न चलने के समाचार भी आ रहे हैं। ऐसे में भाजपा की कठिनाइयां बढ़ती जा रही हैं और आने वाले समय में देखना होगा कि कांग्रेस के साथ किस नए मुद्दे को भाजपा किसान कानूनों से जोड़ेगी?

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