भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

पीपली कांड हरियाणा की राजनीति में इतिहास बनने की ओर अग्रसर है। तीन किसान अध्यादेशों के विरूद्ध किसानों का प्रदर्शन भाजपा सरकार के लिए परीक्षा बना हुआ है। लगता है कि अभी तक भजापा के नीति निर्धारक लोगों को इतना समय नहीं मिल पाया कि वे कोई नीति निर्धारित कर सकें, क्योंकि घटनाएं बड़ी तीव्रता से घटीं।

अब देखिए, घटना वाले दिन प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ कहते हैं कि दुखद हुआ, संयम से काम लेना चाहिए था। ऐसे ही ब्यान पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु, सांसद धर्मबीर, सांसद बिजेंद्र व अन्य नेताओं के आए और उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के भाई ने तो उसी दिन लाठी चार्ज की न्यायिक जांच की मांग कर दी।

गृहमंत्री अनिल विज की तरफ से उस दिन कोई ब्यान नहीं आया। बाद में उनका ब्यान आता है कि लाठीचार्ज हुआ ही नहीं तो फिर जांच कैसी। मुख्यमंत्री भी लंबे समय तक खामोश रहे और अब बोले तो गृहमंत्री के सुर में सुर मिलाया। हां, इतना जरूर जोड़ दिया कि कोई घटना हुई है तो वह पुलिस ने आत्मरक्षा के लिए की है। यह नई बात आ गई। इससे पूर्व कहीं किसी ओर से यह बात तो आई ही नहीं थी कि किसानों ने पुलिस पर हमला बोला हो।

खैर, विचारनीय बात यह है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की गृहमंत्री अनिल विज से सदा ही खटकती ही रही है और अब इतने समय सोच-विचार के बाद वह उनके साथ आ खड़े हुए। इसमें क्या भेद है, इस पर राजनैतिक विश्लेषक मनन कर रहे हैं।

भाजपा में शीर्ष नेतृत्व को उदाहरण मान कार्यकर्ता चलता है। अब जो हरियाणा में जमीनी स्तर पर देखा जा रहा है, वह यह है कि भाजपा कार्यकर्ता आपस में तो कोई बात करता है लेकिन प्रेस से या आम जनजा से लाठी चली या नहीं चली, इस विषय पर बात करने से कतराता है। वह नहीं समझ पा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष को सही मानकर ब्यान दें या गृहमंत्री को और अब तक गृहमंत्री के साथ मुख्यमंत्री का नाम भी जुड़ गया है तो कार्यकर्ताओं का असमंजस और बढ़ गया है।

अब दिग्विजय चौटाला की देखिए, वह अभी भी अपनी बात पर डटे हुए हैं कि पीपली कांड की जांच होनी चाहिए, उनके साथ उनके प्रदेश अध्यक्ष सरदार निशाल सिंह भी गए हैं, जबकि उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला पहले तो इस्तीफा दे रहे परंतु अब दो दिन से भाजपा के पक्ष में बात करने लगे हुए हैं। उनका कहना है कि हमें कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर और प्रधानमंत्री के आश्वासन पर विश्वास करना चाहिए कि न तो मंडियों में खरीद रुकेगी और न ही एमएसपी समाप्त होगी, लेकिन जो सवाल किसानों में बना हुआ है, वह यह है कि जब सबकुछ लिखित में हो रहा है तो हमारी मांग भी तो यही है कि यह भी अध्यादेश के रूप में पारित किया जाए या जो अध्यादेश थे, उनमें ये चार लाइन और लिखी जा सकती थी। सरकार के नियम कागजों में बनते हैं, आश्वासनों पर नहीं। इसी का उत्तर दुष्यंत चौटाला पर भारी पड़ रहा है।

अब और आगे की देखिए, 20 तारीख को किसानों ने रास्ता रोको अभियान चलाया। भाजपा के सभी नेता, कार्यकर्ता, किसान सेल सभी पूर्ण शक्ति से लगे हुए थे, किसानों को यह समझाने में कि यह अध्यादेश उनके लाभ के लिए हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ जो पहले दो बार किसान सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं और पांच साल हरियाणा के कृषि मंत्री रहे चुके हैं और वर्तमान कृषि मंत्री जेपी दलाल, ये तो सामथ्र्य से बाहर होकर भी किसानों को समझाने में लगे हुए थे। परंतु 20 तारीख की स्थितियां अपने आपमें यह कह रही हैं कि वह किसानों को समझाने में सफल नहीं हो पाए।

10 तारीख के पीपली कांड के परिणाम देखकर इस बार सरकार बहुत सावधानी व नम्रता से कार्य कर रही थी। यहां तक कि उन्होंने पुलिस बल को आदेश कर दिए थे कि किसी के साथ कोई हाथापाई न होने पाए और ऐसा हुआ भी। कुछ छुटपुट घटनाएं तो जब भीड़ एकत्र होती है तो हो जाती हैं। लेकिन कोई ऐसी घटना नहीं हुई, जिसका उल्लेख किया जा सके। अत: उनका सडक़ रोको अभियान शांति से संपन्न हो गया।

जब भारतीय किसान यूनियन का रास्ता रोको कार्यक्रम हुआ, तब भी गृहमंत्री अनिल विज ही थे और पुलिस गृहमंत्रालय के अंतर्गत ही आती है। अत: यह कहा जा सकता है कि वह सारे आदेश गृहमंत्री की तरफ से ही आए थे। परंतु जब प्रदर्शन समाप्त हो गया, उसके पश्चात गृह मंत्री का यह ब्यान आना कि देखा जाएगा कि किसने रास्ते रोके और रास्ता रोकना एक अपराध है तथा उन पर नियम तोडऩे के अंतर्गत कार्यवाही की जाएगी। इस पर प्रश्न यह उठता है कि यह कैसी नीति है कि जब वह रास्ता रोक रहे थे तब तो पुलिस को उनकी सुरक्षा में खड़ा कर दिया कि यह कहकर कि उनसे कुछ नहीं कहना और उसके पश्चात यह कहा जाता है कि नियम तोड़े गए, कार्यवाही होगी तो क्या गृहमंत्री ऐसा समझते हैं कि इस प्रकार के ब्यान देने से आगे वह किसानों को प्रदर्शन करने से रोक पाएंगे।

आज हमने केवल और केवल सत्ता पक्ष की बात की है, विपक्ष का कहीं कोई जिक्र नहीं किया है। कारण केवल यह है कि जो सत्ता पक्ष विपक्ष पर आरोप लगा रहा है कि यह आंदोलन उनके द्वारा प्रयोजित है, वह पहले अपनी ही कार्यशैली पर भी ध्यान करें।