उमेश जोशी हिंदी दिवस पर ‘सुप्रभात’ के संदेश में हिंदी की महानता और वैज्ञानिकता को दर्शाती चार लाइनें मिली थीं। अपनी बात उन्हीं चार लाइनों से शुरू करता हूँ- “ऊँच-नीच को नहीं मानती हमारी हिन्दी… इसमें कोई भी ‘कैपिटल’ या ‘स्मॉल’ लैटर नहीं होता…सब बराबर होते हैं !!साथ ही आधे अक्षर को सहारा देने के लिए पूरा अक्षर हमेशा तैयार रहता है । हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ…. !!”इस संदेश के एक एक शब्द में दार्शनिकता भी है। देश में जो लोग हिंदी बोलते हैं और अपनी मातृभाषा हिंदी बताते हैं वो कम से कम अपनी भाषा से ही उदारता सीख लें। ‘ऊंच-नीच को नहीं मानती हमारी हिंदी’, ये सात शब्द समुद्र जैसी गहराई लिए हुए हैं। भाषा की ऐसी विशेषता बता रहे हैं जो सच्चे अर्थों में इंसानियत का संदेश देते हैं। इस विशेषता से सारे हिंदी भाषियों ने कुछ सीखा होता तो देश में धर्म और जाति के आधार पर ऊंच-नीच का भेद खत्म हो गया होता। धर्म के नाम पर वैमनस्यता और द्वेष भावना खत्म हो गई होती। जाति के आधार पर छुआछूत की बुराई मिट गई होती। हिंदी की एक विशेषता यह भी है कि “हिंदी में कोई भी ‘कैपिटल’ या ‘स्मॉल’ लैटर नहीं होता…सब बराबर होते हैं !!” यानी कोई बड़ा-छोटा नहीं होता। कितनी गहरी बात है। कितनी उदारता समेटे हुए है हमारी हिंदी भाषा। हमें अपनी भाषा पर गर्व है। हिंदी की दर्जनों विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि आधे अक्षर को सहारा देने के लिए पूरा अक्षर हमेशा तैयार रहता है । इसमें अंतर्निहित संदेश यह है कि निर्बल को सहारा देने के लिए सबल हमेशा तत्पर रहता है। हिंदी भाषा हमें कह रही है कि समाज तभी सुंदर होगा जब निर्बल बेसहारा नहीं रहेगा। सबल और सक्षम वर्ग को अपनी हिंदी से यह सबक सीखना चाहिए कि वे निर्बल को ठीक वैसे ही सहारा दें जैसे हमारी हिंदी भाषा की लिपि में पूरा वर्ण (सबल) आधे वर्ण (निर्बल) को हर वक़्त सहारा देते हैं। गहरी दार्शनिकता आत्मसात किए देवनागरी लिपि वाली अपनी हिंदी भाषा को सही अर्थों में हम तभी सम्मान दे पाएंगे जब उसके गुण ग्रहण कर बड़े-छोटे और ऊंचे-नीचे का भेद खुद तो खत्म करें ही, दूसरों को भी प्रेरित करें; पिछड़े और कमज़ोर वर्ग को सहारा दें ताकि वो सबल के साथ चल सके। हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। Post navigation लघुकथा : छलावा “हिन्दी आज रोजगार की भाषा बन चुकी है”