युद्धवीर सिंह लांबा

युद्धवीर सिंह लांबा

किसी भी देश की उन्नति में मातृभाषा, राष्ट्रीय भाषा या राजभाषा का महत्वपूर्ण योगदान होता है। 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।

हमारे देश भारत की सबसे बड़ी विडंबना है कि 1949 को हिदी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने के बाद भी भारत में प्रशासनिक कार्यो को हिदी की बजाये अंग्रेजी में ही किया जा रहा है। भारत में हिंदी भाषी लोग सार्वजनिक स्थानों में हिंदी बोलते वक़्त शर्म महसूस करते हैं। सबसे हैरानी वाली बात तो यह है कि आज भारत में हिंदी के शिक्षक हिंदी की बजाये अंग्रेजी बोलने में खुशी महसूस करते हैं । आज भारत में जो लोग हिंदी भाषा का प्रयोग करते हैं तो उन लोगो को हीन दृष्टि से देखा जाता है वहीं अंग्रेजी बोलने वाले लोगो को सम्मान की नजर से देखा जाता है । यह देखकर मन को बहुत पीड़ा होती है कि हमारे देश भारत में हिंदी जानते हुए भी लोग हिंदी में बोलने, पढ़ने या काम करने में हिचकिचाने लगे हैं ।

हिन्दी भाषा आज न सिर्फ भारत में बल्कि समूचे विश्व में अपनी पहचान बना रही है, हिंदी आज पूरे विश्व में अपना विस्तार कर रही है, अपना मान सम्मान बढ़ा रही है । भारत के साथ ही नेपाल, अमेरिका, मॉरिशस, फिजी, द.अफ्रीका, सूरीनाम, युगांडा सहित दुनिया के कई देश ऐसे हैं जहां पर हिंदी बोली जाती है। यह हिंदी के लिए अच्छा है कि आज हिंदी विश्वभर के करीब 176 विश्वविद्यालयों में हिंदी एक विषय के तौर पर पढ़ाई जाती है। अमेरिका, जापान, चीन, फ्रांस और जर्मनी में भी हिंदी को पढ़ाया जा रहा है। हिंदी भाषा की बढ़ती महत्ता को इस बात से समझा जा सकता है कि ‘अच्छा’, ‘बड़ा दिन’, ‘बच्चा’, ‘सूर्य नमस्कार’ जैसे हिंदी शब्दों को ऑक्सफर्ड डिक्शनरी में शामिल कर लिया गया है । हिंदी अब धीरे-धीरे एक विश्वभाषा के रूप में उभर रही है और दुनिया के अन्य देशों में भी लोकप्रिय हो रही है।

हिन्दी के प्रभाव और क्षमता को अब विश्व की बड़ी-बड़ी कंपनियाँ भी सलाम कर रही है। नोकिया कार्पोरेशन, फिनलैंड की बहुराष्ट्रीय संचार कंपनी ने वर्ष 2013 में अपने तीन नए स्मार्टफोन मॉडल बाजार में उतारे थे, इन तीनों स्मार्टफोन मॉडल्स आशा 500, आशा 502 और आशा 503 को कंपनी ने हिन्दी का नाम आशा दिया था । नोकिया आशा 210 को यूरोप, लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के बाजार के लिए लांच किया गया था ।

अमेरिका के 43वें राष्ट्रपति जॉर्ज वॉकर बुश का मानना था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अमेरिकियों को हिन्दी, चीनी, फारसी और रूसी जैसी अन्य विदेशी भाषाओं का ज्ञान होना जरूरी है, ताकि देश की सुरक्षा एजेंसियों में विदेशी भाषाओं के जानकार कर्मचारियों की संख्या बढ़े और वे और मजबूत बन सकें। इससे स्पष्ट होता है कि हिंदी के महत्व को विश्व में खासकर अमेरिका में कितनी गंभीरता से अनुभव किया जा रहा है।

संभवत: यह पहली बार था जब पूरी तरह से गैर हिन्दी भाषी किसी विदेशी राष्ट्रपति ने हिन्दी शब्दों का अपने भाषण में दिल खोल कर प्रयोग किया । नवंबर 2010 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शासनकाल में भारत आए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारतीय संसद को अपने भाषण में संबोधित करते हुए पंचतंत्र, ‘ई-पंचायत’,’चाँदनी चौक’ शब्दों का प्रयोग किया । भारतीय संसद को संबोधित ओबामा के भाषण में न सिर्फ हिन्दी के शब्दों की भरमार थी बल्कि शब्दों का उच्चारण भी बेहतरीन था। ओबामा ने हिन्दी शब्दों का बखूबी प्रयोग किया, ओबामा ने अपने भाषण के अंत में कहा, ‘बहुत धन्यवाद’ और ‘जय हिन्द’और हॉल तालियों से गूँज उठा।

ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर डेमियन मार्टिन ‘ट्विटर’ पर नियमित रूप से टिप्पणी करते रहते हैं। परंतु वर्ष 2020 में उनका हिन्दी में ट्विट करना थोड़ा चौंकाने वाला रहा। क्रिकेट से संन्यास ले चुके मार्टिन की भाषा अंग्रेज़ी है। इस लिहाज़ से उनका अंग्रेज़ी में ट्वीट करना स्वाभाविक था लेकिन जैसे ही उन्होंने हिन्दी में ट्विट किया तो उनके पास सवालों की झड़ी लग गई। उन्होंने कहा, “मैं एक बार फिर हिन्दी में ऑनलाइन हूँ। मैंने सोचा कि मैं इस भाषा (हिन्दी) में कुछ कहने की कोशिश करूँगा।” इसके बाद उन्होंने कहा, “मुझे हिन्दी के लिए किताब देखनी होगी। आप लोग मुझे कुछ रास्ता सुझाइए जिससे मैं अपनी बात का हिन्दी में सही ढंग से अनुवाद कर सकूँ।”

संयुक्त राज्य अमेरिका की सिनेमा, जिसे प्रायः हॉलीवुड नाम से जाना जाता है, हॉलीवुड ने भी पहचानी हिन्दी की ताकत । प्रसिद्द हॉलीवुड निर्देशक जेम्स कैमरून ने दुनिया की सबसे महँगी फिल्म ‘अवतार’ का नामकरण हिंदी में करना पसंद किया था । साल 2009 में हॉलीवुड की फिल्म ‘अवतार’ रिलीज हुई थी । हॉलीवुड की मशहूर फ़िल्म ‘अवतार’ ने दुनिया भर में रिकॉर्ड तोड़ कमाई की थी और आंकड़ा 2.8 अरब डॉलर पर जाकर रुका था ।

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड भले ही हिंदी को तवज्जो नहीं देता हो लेकिन इंग्लैंड एवं वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) ने हिन्दी का लोहा मानते हुए 2014 के जुलाई के महीने में भारत के खिलाफ चल रही टेस्ट सीरीज के दौरान अपने कुछ ट्वीट हिन्दी में करने का फैसला किया था । इंग्लैंड एवं वेल्स क्रिकेट बोर्ड के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से हिन्दी में ट्वीट देख भारतीय हैरान रह गए।

मेरा (युद्धवीर सिंह लांबा, धारौली, झज्जर) मानना है कि यह देश का दुर्भाग्य है कि भारतीय संविधान में राजभाषा का दर्जा पाने के बावजूद हिंदी को आज तक देश में उचित मान-सम्मान नहीं मिल पाया है। हिन्दी भाषी लोग अपनी हिंदी भाषा को उचित स्थान नहीं देते हैं अपितु अंग्रेजी जैसी भाषा का प्रयोग करने में गर्व महसूस करते हैं। यह प्रश्न भी विचारणीय है ? आखिर क्यों? हमारी मानसिकता इस तरह की बनती जा रही है कि अंग्रेजी सीखे बिना कोई देश तरक्की नही कर सकता है, लेकिन जापान, चीन फ्रांस और जर्मनी ये वो देश है जो अपनी मातृभाषा में पढ़कर व लिखकर आगे बढ़ रहे है, तरक्क़ी कर रहे है।

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