उच्च नैतिक विचार, सेवा भावना, सादगी, सहजता, हिन्दी प्रेम तथा उज्ज्वल चरित्र देशवासियों का युगों−युगों तक मार्गदर्शन करता रहेगा : रीतिक वधवा

भिवानी. भारत रत्न” पं. गोविन्द बल्लभ पंत जी आधुनिक उत्तर भारत के निर्माता के रूप में याद किये जाते हैं। वह देश भर में सबसे अधिक हिन्दी प्रेमी के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने 4 मार्च, 1925 को जनभाषा के रूप में हिन्दी को शिक्षा और कामकाज का माध्यम बनाने की जोरदार मांग उठाई थी।  पंत जी के प्रयासों से हिन्दी को राजकीय भाषा का दर्जा मिला। उक्त शब्द भाजपा नेता रीतिक वधवा ने आज यहां भारत रत्न” पं. गोविन्द बल्लभ पंत जी की  जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहे। उन्होंने कहा की पंत जी ने हिन्दी के प्रति अपने अत्यधिक प्रेम को इन शब्दों में प्रकट किया है− हिन्दी के प्रचार और विकास को कोई रोक नहीं सकता। हिन्दी भाषा नहीं भावों की अभिव्यक्ति है।

पंत जी का जन्म 10 सितम्बर 1857 में गांव खूंट, अल्मोड़ा उत्तराखंड (जोकि पहले उ.प्र.) में हुआ था। वह महाराष्ट्रियन मूल के थे। मां का नाम श्रीमती गोविंदी बाई था। माता के नाम से ही उनको गोविन्द नाम मिला था। उनके पिताजी श्री मनोरथ पंत जी सरकारी नौकरी में रेवेन्यू कलक्टर थे उनके ट्रांसफर होते रहते थे। इस कारण पंत जी अपने नाना के पास पले थे। वह बाल्यावस्था से ही एक मेधावी छात्र थे। आपने बी.ए. तथा एल.एल.बी. तक की शिक्षा ग्रहण की थी। 1909 में पंत जी को कानून की परीक्षा में यूनिवर्सिटी में टॉप करने पर गोल्ड मेडल मिला था। सार्वजनिक रूप से अपने विचार तर्क, साहस, आत्मविश्वास तथा सच्चाई के साथ रखने की आप में विलक्षण क्षमता थी।

पंत जी ने राजकीय सेवा की पारिवारिक परम्परा से हट कर देश सेवा के लिए अपने सम्पूर्ण जीवन को समर्पित कर दिया था। धार्मिक सामाजिक संगठन के संयोजक विनोद अत्री एवं भाजपा नेता विजय कौशिक पालवासिया ने कहा कि भारत रत्न” पं. गोविन्द बल्लभ पंत  प्रखर वक्ता, नैतिक तथा चारित्रिक मूल्यों के उत्कृष्ट राजनेता, प्रभावी सांसद और कुशल प्रशासक थे। जमींदारी उन्मूलन उनकी सरकार का साहसिक निर्णय था जिससे लाखों किसानों का भाग्य बदल गया और वे उस जमीन के मालिक बन गए जिस पर हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद भी उनका कोई अधिकार नहीं था। निर्बलों के कल्याण, कमजोर को आर्थिक, सामाजिक न्याय और प्रदेश में नियोजित विकास की नींव रखने के लिए उन्हें सदैव स्मरण किया जाएगा।

महापुरूष सदैव अपने लोक कल्याण के कार्यों के कारण अमर रहते हैं। आत्मा अजर अमर तथा अविनाशी है। आज वह देह रूप में हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके उच्च नैतिक विचार, सेवा भावना, सादगी, सहजता, हिन्दी प्रेम तथा उज्ज्वल चरित्र देशवासियों का युगों−युगों तक मार्गदर्शन करता रहेगा। हम इस महान आत्मा को उनकी जयंती पर शत-शत नमन करते हैं।

इस अवसर पर सूबेदार मेजर रमेश चंद्र , विनोद कुमार,  विजय कौशिक , पंकज तिलक , पंकज शर्मा,  राम अवतार,  बसंत कुमार , डॉ योगेश राजेंद्र सपड़ा ,  संदीप कुमार , राजेश कुमार,  राजन ,  सतीश कुमार ने भी उनकी जयंती पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए

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