-अपराध की जानकारी रखने वालों का कानूनी दायित्व की वो उसकी शिकायत करें नारनौलः सुलोचना गजराज एसपी व प्रदेश के राज्यमंत्री औमप्रकाश के ऑडियो विवाद में एसपी ने तो एफआईआर दर्ज करवा दी है, अब देखना यह है कि क्या मंत्री जी भी एसपी के विरूद्ध मुकदमा दर्ज करवाते हैं। इस संबंध में जिला बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष मनीष वशिष्ठ अधिवक्ता ने इस विवाद के कानूनी पहलुओं को उठाते हुए कहा कि मामला बहुत गंभीर है। एक प्रदेश के मंत्री ने एक आईपीसी अधिकारी पर बहुत ही संगीन आरोप लगाए हैं। उन आरोपों के प्रतिकार मंे एसपी ने थाना शहर नारनौल में एफआईआर नम्बर 499 धारा 153, 186, 500 व 504 आईपीसी तथा धारा 66ए आईटी एक्ट के तहत दर्ज करवा दी है। श्री वशिष्ठ ने कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 39 में कुछ धाराओं का उल्लेख किया है, जिनके अपराध की जानकारी रखने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह उस अपराध की जानकारी निकटतम मजिस्टेªट या पुलिस को दे। उन धाराओं में अवैध प्रतिफल लेने से संबंधित अपराध की धाराऐ भी शामिल हैं। यदि मंत्री जी को पता था कि एसपी की गुण्डों से मिलीभगत है तथा वह कमीशन लेती हैं, तो उन्हें उक्त धारा की पालना में इस अपराध की शिकायत करनी आवश्यक थी। यदि कोई व्यक्ति उस अपराध की शिकायत नहीं करता है, तो उसे साबित करने का भार भी उसी व्यक्ति पर है, की उसने शिकायत क्यों नहीं की। किसी भी व्यक्ति द्वारा उक्त धारा में उल्लेखत अपराध को छुपाना भारतीय दण्ड संहिता की धारा 202 के तहत अपराध है। उन्होंने कहा कि मंत्री जी को भी स्थानीय पुलिस के पास, इन संगीन आरोपों की एफआईआर दर्ज करवानी चाहिए, ताकी जनता को सच्चाई का पता चल सके। उन्होंने कहा कि अब भी मंत्री जी को, उन अपराधों की एफआईआर दर्ज करवानी चाहिए, जिन अपराधों के आरोप उन्होंने एसपी पर लगाए हैं। यदि वह ऐसा नहीं करते हैं, तो उन्हें एसपी द्वारा दर्ज करवाई गई एफआईआर मे उल्लेखित आरोपों का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस अधीक्षक सुलोचना गजराज ने जो एफआईआर दर्ज करवाई है, उसमें उल्लेखित धारा 66ए को माननीय रुसर्वोच्च न्यायालय ने श्रेया सिंघल बनाम भारत संध के वाद में वर्ष 2015 में ही असंवैधानिक घोषित कर दिया है। दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 199 के अनुसार, धारा 500 अर्थात मानहानी की सजा दिलाने के लिए पीड़ित पक्ष, न्यायालय में शिकायत ही दायर कर सकता है। धारा 186 आईपीसी भी दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 की उपधारा (ए) सेे नियंत्रित होती है। इस धारा के तहत भी एफआईआर दर्ज नहीं हो सकती है। क्योंकि सीआरपीसी की उक्त धारा के अनुसार कोई भी न्यायालय उस तब तक संज्ञान नहीं ले सकता है, जब तक न्यायालय में उस अधिकारी द्वारा शिकायत दर्ज नहीं करवाई जाए, अर्थात इस धारा में ना तो एफआईआर दर्ज हो सकती है तथा ना ही एफआईआर पर न्यायालय इस धारा में संज्ञान ले सकती है। इस शिकायत में मात्र एक धारा 153 आईपीसी ही संज्ञेय अपराध की धारा है। लेकिन इस वायरल ऑडियो से किसी प्रकार का कोई दंगा होने की संभावना नहीं थी, ना ही हुए, ना आगे हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि पुलिस द्वारा भी इस प्रकार की एफआईआर दर्ज करना एक मजाक सा लगा है। उनका यह भी कहना है कि एसपी की इस शिकायत पर पुलिस ने रात्री को ही मुकदमा दर्ज कर दिया, लेकिन जिले की बेटी सपना की हत्या का मुकदमा आज तक दर्ज नहीं किया है। श्री वशिष्ठ का कहना है कि जनता को सच्चाई का पता लगना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि पुलिस का अपराधियों के साथ गठजोड़ है तो यह बेहद गम्भीर बात है। ऐसे में सरकार द्वारा इस मामले की उचित जाँच करवाई जानी आवश्यक है। Post navigation मिनिस्टर से टकराव के मूड में महिला आईपीएस ऑफिसर! पहली बार नहीं ठनी मंत्री और अफसर में