अबकी बार मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दे मोदी सरकार लेखक युद्धवीर सिंह लांबा, दिल्ली टेक्निकल कैंपस, बहादुरगढ़, जिला झज्जर, हरियाणा में रजिस्ट्रार के पद पर कार्यरत है ‘आज शिद्दत से करो कोशिश चिराग जलाने की,कौन जाने तुम्हीं से कल रोशन, सारा जहां हो’। किसी व्यक्ति को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किसी शायर की ये पंक्तियाँ जोश, उत्साह बढ़ाने और प्रोत्साहित करने वाली है। कहते हैं प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती है। कोई भी बाधा प्रतिभा को आगे बढऩे से नहीं रोक सकती हैं। अपनी विलक्ष्ण प्रतिभा से मेजर ध्यानचंद जी ने लगातार तीन ओलंपिक (1928 एम्सटर्डम, 1932 लॉस एंजेलिस और 1936 बर्लिन) में भारत को हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाकर दुनिया में भारत का मान-सम्मान बढ़ाया, जो सभी देशवासियों के लिए प्रेरणादायक, गौरवमयी एवं अनुकरणीय है। कहा जाता है कि मेजर ध्यानचंद के जैसा हॉकी खिलाड़ी आज तक कोई नहीं है। मेजर ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के बराबर माना जाता है। 29 अगस्त को हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद की 115वीं जयंती है। मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में हुआ था। वर्ष 2012 में मेजर ध्यानचंद के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनके जन्मदिन 29 अगस्त के अवसर पर भारत सरकार ने इस दिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया और तब से हर वर्ष पूरे भारत में 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। पिछले काफी लंबे समय से मेजर ध्यानचंद जी को भारत रत्न दिलाने को लेकर कई बार अलग-अलग स्तर पर मांग उठती रही है, लेकिन ध्यानचंद को भारत रत्न देने के प्रति सरकारों ने जो बेरूखी दिखाई है वो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। सवाल उठता है कि 1928, 1932 और 1936 में ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतकर भारत को पूरी दुनिया में गौरवान्वित करने वाले मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न के लिए लगातार अनदेखी करना क्या उचित है? हॉकी के समर्थकों और खेलप्रेमियों में बेचैनी है कि हॉकी के जादूगर को सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा जाएगा या नहीं ? अब तो ये बात पूरी तरह से साफ हो चुकी है कि सरकारें वर्षों से भारत रत्न देने के फ़ैसले में अपना सियासी नफ़ा-नुकसान देखती रही हैं । यह मेजर ध्यानचंद के साथ मजाक के अतिरिक्त और कुछ नहीं कि तत्कालीन मनमोहन सरकार ने 2011 में संसद के 82 सदस्यों की मांग ठुकरा दी थी, जिन्होंने भारत रत्न के लिए ध्यानचंद के नाम की सिफारिश की थी। जर्मनी की नागरिकता और सेना में कर्नल पद के प्रस्ताव को कर दिया था लेने से इंकार, सचिन तेंदुलकर से पहले भारत रत्न सम्मान का मेजर ध्यानचंद जी थे असली हकदार । सचिन तेंडुलकर को मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम पर 16 नबंवर 2013 में क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद तत्कालीन मनमोहन की सरकार ने सचिन तेंडुलकर की लोकप्रियता को भुनाने के लिए भारत रत्न देने की सारी औपचारिकता महज 24 घंटों में पूरी कर ली थी । 2014 में तेंदुलकर और सीएनआर राव को भारत रत्न देने के साथ – साथ मेजर ध्यानचंद को भी भारत रत्न दिया जा सकता था परन्तु मनमोहन सरकार ने ऐसा नहीं किया । भारत रत्न भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है और इस सम्मान की स्थापना 2 जनवरी 1954 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई थी। अब तक 48 हस्तियों को भारत रत्न सम्मान दिया जा चुका है। खिलाडय़िों को भारत रत्न से सम्मानित किये जाने के लिए साल 2013 में ही भारत रत्न के पात्रता के मानदंड में संशोधन किया गया। 1936 का बर्लिन में हॉकी ओलिंपिक का फाइनल मैच भारत और जर्मनी के बीच चल रहा था। जर्मन तानाशाह हिटलर भी मैच देख रहे थे। भारत ने उस मैच में जर्मनी को 8-1 से रौंद डाला। मैच खत्म होने के बाद हिटलर ने ध्यानचंद के खेल से प्रभावित होकर जर्मनी की नागरिकता के साथ जर्मन सेना में कर्नल बनाने तक प्रस्ताव दे दिया हालांकि मेजर ध्यानचंद ने इस प्रस्ताव को बड़ी विनम्रता के साथ यह कहकर इसे ठुकरा दिया, मैंने भारत का नमक खाया है, मैं भारत के लिए ही खेलूंगा । एक समय गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने भी ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग की थी लेकिन आज मोदी की दुबारा सरकार बन चुकी है फिर भी ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने में देरी होना दुर्भाग्य की बात है। यह कैसी विडंबना है कि मोदी सरकार साल 2016, 2017 और 2018 में किसी भी नागरिक को भारत रत्न देना तक भूल गए है । मोदी सरकार ने 2014 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न से नवाजा था। अटल और मालवीय के साथ – साथ ध्यानचंद को भी भारत रत्न दिया जा सकता था परन्तु मोदी सरकार ने ऐसा नहीं किया । मोदी सरकार ने 2019 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, जनसंघ के नेता नाना जी देशमुख और गायक भूपेन हजारिका को भारत रत्न से सम्मानित किया । देश के लिए लगातार तीन ओलंपिक में हॉकी का स्वर्ण जीतने वाले ध्यानचंद ने 1948 में खेल से संन्यास लिया था। साल 1956 में भारत सरकार ने मेजर ध्यानचंद को भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्म भूषण से नवाजा गया । ध्यानचंद का 3 दिसंबर, 1979 को दिल्ली में निधन हो गया । ध्यानचंद के सम्मान में दिल्ली में स्थित नेशनल स्टेडियम को 2002 में ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम का नाम दिया गया। मेरा (युद्धवीर सिंह लांबा धारौली, झज्जर) मानना है कि भारत को तीन बार ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलाने वाले मेजर ध्यानचंद को अब जल्द से जल्द भारत रत्न से सम्मानित किया जाए।मेजर ध्यानचंद की देशभक्ति और प्रेम में नहीं है रति भर भी संदेह की गुंजियाश, मोदी जी करें मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न से सम्मानित, ये ही है सभी की ख्वाहिश। Post navigation सुशांत सीरियल नहीं , न्याय मांगता है बंद दरवाजों की बजाय माहवारी पर खुलकर चर्चा की जरूरत है.