भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

कोरोना महामारी सरकार के नियंत्रण में आ नहीं रही। कारण, सरकार के पास संसाधनों की कमी या कोरोना के नियंत्रण पर प्रयास अधूरे यह बहुत बड़ा सवाल है और इस सवाल को और ताकत तब मिली जब कल गृह मंत्री अनिल विज से ट्विटर के माध्यम से घोषित किया कि हर शनिवार और रविवार को अगले आदेशों तक लॉकडाउन रहेगा।

आमतौर पर देखा जाता है कि किसी निर्णय पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं मिलती हैं, कोई पक्ष में होता है तो कोई विपक्ष में। लेकिन इस निर्णय पर जनता खुश नहीं है। सभी का कहना है कि जब हम कुछ काम करके रास्ते पर आने लगे हैं तो फिर रुकावट क्यों डाली जा रही है। क्या दो दिन के लॉकडाउन से कोरोना समाप्त हो जाएगा। पहले भी तो कई माह तक लॉकडाउन करके देख लिया, उससे क्या कोरोना समाप्त हुआ?

सरकार की लापरवाही, पूरा संदेश नहीं

जब शुक्रवार को यह सूचना मिली कि शनिवार और रविवार को लॉकडाउन रहेगा तो जनता में यह उत्सुकता थी कि प्रशासन की ओर से या शासन की ओर से इस लॉकडाउन के बारे में भी कोई नियमावली आएगी कि क्या बंद रहेगा, क्या खुलेगा, यातायात चलेगा या नहीं चलेगा आदि-आदि। परंतु सरकार की ओर से या प्रशासन की ओर से अभी तक कोई नियमावली जारी नहीं की गई है। ऐसे में नागरिक अनिश्चितता के माहौल में जीने को मजबूर हैं।

जनता में चर्चा कि लक्ष्य कुछ और!

जनता में विभिन्न वर्गों से अनेक तरह की प्रतिक्रियाएं आईं। उन प्रतिक्रियाओं में कुछ का कहना तो यह था कि सरकार जनता का ध्यान बंटाने के लिए इस प्रकार के निर्णय लेती रहती है। इन निर्णयों के पीछे लगता नहीं कि कोरोना से लडऩा इनका लक्ष्य है। लक्ष्य कुछ और हो सकते हैं। वर्तमान में सरकार से हर वर्ग का कर्मचारी परेशान है। आंदोलन की राह पर है और अधिकांश आंदोलन शनिवार और रविवार को ही होते हैं। तो उन पर नियंत्रण पाने के लिए भी यह शनिवार-रविवार का लॉकडाउन हो सकता है। आंदोननरत कर्मचारियों में पीटीआइ टीचर, आशा वर्कर, रोडवेज कर्मचारी, बिजली कर्मचारी, रेलवे कर्मचारी… इस तरह से अनेक संगठन सरकार से प्रसन्न नहीं हैं।

अब तक सरकार ने किया क्या

जो सवाल ढके-छुपे थे, वे मुखर होकर नहीं बोल रहे थे। अब वह खुलकर बोलने लगे हैं कि सरकार ने इस समय में जनता के लिए किया क्या? आई गाइडलाइन जनता से तो पूरी करा ली लेकिन सरकार ने अपनी गाइडलाइन कितनी पूरी की? जनता की तो बात छोड़ो, सरकार की ओर से अपने कथित कोरोना योद्धाओं को भी अब तक कोरोना से निपटने के लिए पूरे संसाधन उपलब्ध नहीं कराए, जिसका प्रमाण स्वास्थ कर्मियों के आंदोलन अपने आप हैं।

जनता की बात करें तो सरकार की ओर से सेनेटाइज होना था जो केवल खानापूर्ति के लिए हुआ। वर्तमान में कोरोना मरीजों को होम आइसोलेशन में रखा जाता है। उनकी निगरानी में भी कमी है। जब कोरोना आरंभ हुआ था तो लोगों को खाना आदि सामान वितरित किया गया था। वह सब जनता और उद्योगपतियों द्वारा उपलब्ध कराया गया था। गुरुग्राम में अधिकारियों और विधायक से पूछने पर भी उत्तर नहीं मिलता कि सरकार की ओर से कितना फंड गुरुग्राम में आया है और वह किस-किस काम में खर्च हुआ है। तात्पर्य यह है कि जनता अपने आप मिलकर इस लड़ाई को लड़ रही है। इस पर जब उसे कुछ राह पर आने की आशाएं बंधी तो फिर रुकावट खड़ी कर रहे हैं।
इतना ही नहीं जनता ने तो सरकार में कार्यरत स्वास्थ विभाग, पुलिस विभाग आदि को भी कोरोना से लडऩे का सामान उपलब्ध कराया है। ऐसी अवस्था में सरकार की ओर से यह लॉकडाउन जले पर नमक छिडक़ने के बराबर है।

बरोदा उप चुनाव के कारण तो नहीं है यह लॉकडाउन

वर्तमान में कोरोना उपचुनाव पर सभी राजनैतिक दलों की दृष्टि है और वहां चर्चाकार कहते हैं कि भाजपा की स्थिति कमजोर है। तो लॉकडाउन के कारण शनिवार और रविवार को जो दल प्रचार में अधिक समय लगाते हैं, उन पर बंदिश लगाने का कारण तो नहीं। अब सवाल यह भी है कि यह बंदिश भाजपा पर भी होगी? परंतु ऐसा दिखाई नहीं दे रहा, क्योंकि भाजपा पर तो शायद लॉकडाउन के नियम लागू ही नहीं होते।

आज भी सोमबीर सांगवान बरोदा हलके में प्रचार कर रहे थे और नए प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ जब से बने हैं, तब से लगातार बैठकें करते ही जा रहे हैं। नियमानुसार शादी-विवाह और दाह संस्कार में 50 से अधिक व्यक्ति के सम्मिलित होने पर रोक है परंतु उनकी सभाओं में कितने व्यक्ति होते हैं, वह अखबारों में लगी तस्वीरें अपने आप बता देती हैं। गृह मंत्री विज जी आप भी यह सबकुछ देख रहे हैं और आप गब्बर कहलाए जाते हो। अपने पराए का भेद भुलाकर जनता देखना चाहेगी कि आप सभी पर एक नियम लागू कर पाएंगे? भाजपाई जो कोरोना के नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, उन पर एफआइआर दर्ज करा पाएंगे?