कमलेश भारतीय

यों कहावत तो कुछ और है लेकिन सचिन पायलट की सम्मान की लड़ाई में इतना ही काफी है कि लौट के पायलट कांग्रेस में आए । जो कहावत है उसके अनुसार कुछ कहना शोभा नहीं देता । वह काम तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद ही कर चुके हैं , उन्हें निकम्मा और नकारा ही नहीं धोखेबाज तक कह कर । अब सचिन कह रहे हैं कि विचारधारा की लड़ाई थी न कि किसी पद प्रतिष्ठा की । पार्टी पद , प्रतिष्ठा देती है तो वापस भी ले सकती है । पूरे 32 दिन बार याद आई राहुल गांधी और बहना प्रियंका बाड्रा गांधी की । जब इतना मना रहे थे तब पता नहीं किस ऐंठ में बैठे थे ।

जब पूरा नतीजा निकल गया कि उन्नीस से आगे विधायक नहीं जुटा सकते तब बहन भाई की याद सताई । मान सम्मान और पार्टी की विचारधारा की याद आई । पार्टी के वादे याद आए और मानेसर से हरियाणा के मुख्यमंत्री के शाही मेहमान बनाये विधायक भी रिसोर्ट से निकल पहुंच गये हाईकमान के सामने । शर्तें रखी गयीं ,मानी भी गयीं और विधायक भंवर लाल शर्मा दौड़ कर पहुंचे मुख्यमंत्री के पास यह कहने कि हमारी नाराजगी दूर हो गयी है । परिवार में ऐसे तो हो ही जाता है । वाह । आपका जब मन चाहा नाराज हो गये और जब मन आया खुश हो गये । यदि आपके इस खेल में राजस्थान की सरकार गिर जाती तो ? कौन जिम्मेदार होता ? यह तो मज़ाक हो गया । गहलोत ने अपना घर संभाला और पार्टी के सम्मान की रक्षा की , उन्हें क्या यही इनाम कि एक मैनेजिंग बोर्ड की देखरेख में सरकार चलेगी? युवा नेता भी सब राय दे रहे थे कि सचिन को रोक लो । फिर चाहे जितेन हो या मिलिंद या हमारे हरियाणा के दीपेंद्र । सबने मनाया मामला लगभग हल होने के संकेत । पर क्या मुख्यमंत्री ने कुछ गलत किया ? सरकार बचाने की कवायद में सारे मान सम्मान पायलट के और उनको दो दो उपमुख्यमंत्री और सचिन गुट के विधायकों को साधना होगा ? मैनेजिंग बोर्ड की हिदायतों का पालन करना होगा ?

भाजपा की ओर से प्रतिक्रिया आ रही है कि देर सबेर गहलोत सरकार को तो जाना ही है । यह सुलह कब तक चलेगी ? अस्थायी है सब कुछ । यानी पायलट सेंध लगाने आये हैं क्या ? पहले तीस नहीं जुटा पाये , अब कसर पूरी कर लेंगे । किन मूल्यों की रक्षा के लिए भाजपा की मेहमानबाजी स्वीकार की ? तब मूल्य कहां थे ? सम्मान कहां गिरवी रख दिया था ?

पार्टी , विचारधारा , वादे और इरादे सब क्यों भूल गये थे ? कहां दिल लगा बैठे थे ?

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी अपने सम्मान की रक्षा के लिए खामोशी ओढ़नी पड़ी । भाजपा की बैठक नहीं होने दी और न ही इस ऑपरेशन लोट्स का समर्थन किया । इनकी खामोशी ही गहलोत के लिए संजीवनी का काम दे गयी । वसुंधरा के होते सचिन की एंट्री करने का फैसला अमित शाह भी नहीं कर पाये । पूरे भाजपा के 72 विधायकों में से 45 तो वसुंधरा के साथ रहे । कैसे सरकार पलट पाते ? वहां भी तो विद्रोह का संकट मंडराने लगा था । जाकर कर्नाटक संभालने पड़े भाजपा विधायक । क्या पता भाजपा विधायक ही महारानी के संकेत पर कांग्रेस सरकार को गिरने से पहले थाम लेते ? इतना रिस्क कौन लेता? बस । चुप्पी साथ ली । तभी तो आशुतोष टीवी के पुराने एंकर कह गये कि पापकाॅर्न का पैकेट हाथ में लेकर बाहर बैठ कर भाजपा यह फिल्म नहीं देख सकती थी । उसे अंदर आना चाहिए था । अब कितने भी बहाने बना ले । आखिर इसके साथ खाली रहे । कर्नाटक , मध्य प्रदेश , मणिपुर, गोवा कितने ही राज्यों में ऑपरेशन लोटस चला और जादू चला लेकिन राजस्थान में जादूगर के बेटे अशोक गहलोत के सामने नहीं चल पाया । असली जादूगर कौन ? हम नहीं बोलेंगे । हम कुछ नहीं बोलेंगे । हम बोलेंगे तो बोलोगे कि बोलता है ,,,,,

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