पार्टी ने स्वम् ही क़ई मर्तबा अपने बयानों में कहा था कि वह चुनाव हारे हुए किसी भी सांसद-विधायक को प्रदेसाध्यक्ष पद नहीं सौंपेगी मगर लगता है कि अपनी बातों से फिरना भाजपा की आदतों में शुमार हो गया है !

कहाँ गया पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र जिसकी बड़ी -बड़ी डींगें हांकती रही है पूर्व में कार्यकर्ताओं के लिए लगाए गए प्रशिक्षण शिविरों में -सेमिनारों में ?

नियम कायदों को ताक पर रखकर ही प्रदेसाध्यक्ष का चुनाव करना था तो क्या कमी थी कैप्टन अभिमन्यु में जिन्होंने जीवन का अधिकांश समय पार्टी को समर्पित किया है ? क्या कमी थी प्रोफेसर रामबिलास शर्मा जी मे जो पहले भी प्रदेश अध्यक्ष पद पर रहकर पार्टी को बुलंदियों तक पहुंचा चुके थे ? बात अनुभव की करें तो नायब सैनी जैसे मिलनसार नेता और विजयी सांसद में क्या कमी थी ,और मौजूदा सांसद श्री कृष्ण पाल गुज्जर भी अनुभवहीन नहीं थे इससे पहले भी दल की कमान संभाल चुके हैं ?

बड़ौदा चुनाव के संदर्भ में यदि यह निर्णय लिया गया है तो कैप्टन अभिमन्यु के प्रशंसकों की भी कोई कमीं नहीं उन्हीं के गृहक्षेत्र में उनकी अनदेखी से वह क्षुब्ध नहीं होंगें और क्या उसका प्रभाव उपचुनाव में देखने को नहीं मिलेगा ?

भाई-भतीजावाद नहीं करने वाली पार्टी ने अपने ही सिद्धांतों से खिलवाड़ कर फिर से उसी बिरादरी के प्रदेसाध्यक्ष को चुनकर साबित किया है कि उसका मकसद एक जातिविशेष के वोटबैंक को साधने का ही था जिससे ईस दल की जातिवादी राजनीति का चेहरा भी स्पस्ट होता है !
ओ पी धनखड़ जी भले इंसान हैं ,मिलनसार हैं और पेसे से प्रोफेसर भी रह चुके हैं मगर लगता नहीं के ज्यादा पढ़े लिखे लोगों को ही जनता तवज्जों देती है , रही लोकप्रियता की बात तो 2019 के विधानसभा चुनावों में ही पटौदी हल्के से सम्बंध रखने वाले कल आए नेता नरेश कौशिक ने पूर्व कृषिमंत्री को उन्ही के हल्के में जाकर करारी शिकस्त दी थी ।

भाजपा को स्मर्ण रखना चाहिए कि यदि वह भूपेंद्र सिंह हुड्डा की काट के लिए ही उन्हीं की बिरादरी के ही नेता को अध्यक्ष पद देकर संतुलन बनाने की फिराख में है तो जाट अब वो जाट नहीं रहे शिक्षित हो चुके हैं अपना हित-अहित समझते हैं ।

अंदरूनी बातें जो सुनने में आ रही हैं तो मोदी जी ने अपने ऋण से अऋणी होने का काम किया है , रेवाड़ी में आयोजित विशाल सैनिक रैली के सफल आयोजन का इनाम है जिसका प्रभार श्री ओ पी धनखड़ जी ही संभाल रहे थे और बाद में भी रैलियों तथा लौहपुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल जी की मूर्ति के निर्माण में किसानों से लौह एकत्रित करने वाले मिशन की जिम्मेदारी भी इन्हीं की थी – खैर सवाल तो बहुत खड़े हो रहे हैं ।

लेकिन इतना तय है कि भाजपा अपने किसी भी संकल्प, घोषणा और नियमों पर खरी नहीं उतरी है – बातों को सार्वजनिक मंचो से कहकर मुकर जाना ही फितरत बन गई है ।

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