–कमलेश भारतीय पुलिस किसी भी प्रदेश की हो , सबमें काली भेड़ें मिलने की समय समय पर सूचनाएं आती रहती हैं । आतंकवाद के दिनों में पंजाब में ऐसे ही पुलिस कर्मचारी थे । इनके कारण खूब आतंक फैला । अभी कुछ माह पहले जम्मू कश्मीर में देवेंद्र सिंह को पकड़े जाने की खूब चर्चा रही । वह आतंकवादियों को सही ठिकाने अपनी कार में पहुंचाने जा रहा था । आतंकवाद ग्रसित जम्मू कश्मीर में इस तरह के और देवेंद्र सिंह भी होंगे जो देश का अन्न जल खाकर देश को ही गद्दारों के हाथों बेच रहे हैं । बताइए किस तिरंगे को सलामी देते हो और क्या करते हो ? किस प्रदेश से वेतन लेते हो और कहां से रिश्वत लेकर देश बेच देते हो ? अब यही पुलिस का रवैया कानपुर में देखने को मिला है । विकास दुबे के एक मोबाइल में चालीस पुलिस कर्मियों के मोबाइल नम्बर मिलना क्या साबित करता है ? यानी चालीस पुलिस कर्मी विकास के दरबारी थे ? जैसे कि बहुत सी फिल्मों में दिखाया जाता है ? विकास ने एक पुलिस थाने के अंदर ही संतोष नामक राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त नेता को बार गिराया लेकिन पुलिस वालों ने गवाही नहीं दी । वह बच निकला । अब आठ पुलिस कर्मचारियों को सरेआम मौत की नींद सुलाकर भाग निकला है विकास । अब भी गवाही नहीं दोगे क्या ? वह जो पुलिस कर्मी सस्पेंड किया है उसका मन क्या उसे कचोटेगा नहीं ? अपने ही आठ साथियों की मौत का अपराध उसकी आत्मा कब तक झेल सकेगी ? हरियाणा में शराब माफिया में पुलिस के लोगों के नाम आये । यह भी तो अपराध को शह देने जैसा है । क्या पुलिस अपराधियों को पकड़ने के लिए है या उनका साथ देने के लिए ? बहुत सोच विचार की बात है । आखिर पुलिस बल कहां जा रहा है? कितने मेडल लेकर भी गद्दारी? कैसे मेडल और किसको मेडल ? Post navigation चोर की मां को मारो न कि मकान गिराओ धार्मिक दुकानों, मृत्युभोज और महंगी शादियां पर लगे प्रतिबन्ध