डॉ अशोक शर्मा अक्स

सहमी हुई दुनियाँ,ठिठके हुये अर्थव्यवस्था के पहिये,स्तब्ध शासक,प्रशासक,अन्वेषक व धर्म प्रचारक।रुकी रेल,खाली सड़कें,वीरान आसमान,ठप्प व्यापार,बन्द उद्योग,यानी समस्त जीवन चक्र अपने अपने दड़बों में बन्द होने को मजबूर।।शवों को दफनाने के लिये कम पड़ती ज़मीन,श्मशानों में अपनी बारी का इंतज़ार,उत्सवों व आयोजनों पर बेरहम प्रहार। आधा वर्ष बीतने को और बन्द स्कूल कालेज व उच्च शिक्षण संस्थान।और तो और अपना माथा रगड़ने व प्रार्थना कर सकें ऐसे समस्त मन्दिर,मस्ज़िद,चर्च व गुरु स्थान,बन्द हैं

मग़र ऐसे में एक व्यापार बड़े ही नैसर्गिक कुकुरमत्ते से यत्र तत्र सर्वत्र विस्तार पा गया। चाहे मर्ज़ की दवा ईज़ाद न हो पायी हो मगर अल्कोहल युक्त सेनेटाइजर,मनुष्यमात्र की आवश्यकता बन गयी या बना दी गयी।घर,दफ्तर,दुकान,रेल,बस,यान,टैक्सी रिक्शा, यानी व्यक्ति सांस ले या न ले पर अल्कोहलिक सेनेटाइजर से हाथों का प्रक्षालन अवश्य करता रहे।।आप सोच रहे होंगें कि इसमें नई बात क्या है,यह तो सभी को पता है,सभी जानते हैं,फिर इतना ज्ञान बघारने की आवश्यकता क्यों???

आवश्यकता है,जब इस आपात काल में व्यक्ति शारीरिक,मानसिक व आर्थिक रूप से मर रहा है तब मुनाफाखोरों का एक ऐसा वर्ग बहुतायत में पनप आया जिसने 5 लीटर के सेनेटाइजर के जार पर MRP 2550 रुपये प्रिंट किया,औऱ उसे जब मैंने खरीदा तो 1200 रुपये से 700 रुपये तक मिला।मुझे यह भी नही कहना पड़ा कि कुछ कम कर लो।

जिसने 1200 का दिया उसने बेस्ट क्वालिटी का भरोसा थमाया व 700 वाले ने कहा कि साहब माल वही है सिर्फ जार का फर्क है। मेडिकल स्टोर से लेकर,परचून की दुकान तक इसकी उपलब्धता है।

यहां प्रश्न यह उठता है कि इस पदार्थ की क्वालिटी की जांच किसी ड्रग इंस्पेक्टर ने की।किसी चीफ मेडिकल ऑफिसर ने यह जांचने की कोशिश की कि लाखों लोगों की आवश्यकता बन चुका यह तरल पदार्थ कहीं अधिक मुनाफाखोरी के चक्कर में घटिया तो नही,कहीं हाथ शुद्ध रखने के चक्कर में चर्म रोगों को आमंत्रित तो नही किया जा रहा।

फिर रेट,दर,मूल्य,price निश्चित स्वतः ही हो गये या किसी शासकीय,प्रशासकीय तंत्र ने अपने a/c कार्यालयों से बाहर आ कर अपना दायित्व निभाने का प्रयास भी किया या मात्र मंथली से काम चल गया।

इसी तरह,मास्क,शील्ड,फॉगिंग व सेनेटईसिंग मेटीरियल की क्वालिटी व MRP को किसी ने निश्चित करने का प्रयास भी किया या उसी तरह 7999 रुपये के प्रिंट मूल्य वाली टेम्परेचर गन,लगभग आधे या आधे के आधे या उससे भी कम पर उपलब्ध है।

इस आपात काल में जब कोरोना ग्रस्त मरीज सरकारी व्यवस्था के पास जाये तो रब्ब राखा।यदि निजी हस्पतालों में जाये तो लाखों का बिल और जो कोरोना से बच गये हैं उन्हें ये संवेदन हीन धनपशु,प्रशासन की मिली भगत से लूट रहे हैं,,जनता जाये तो किधर जाये,,,

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