साभार— यूसूफ किरमानी की वाल से

कांग्रेस और चीन के रिश्तों पर भाजपा अचानक बहुत आक्रामक हो गई है लेकिन खुद भाजपा चीन से अपने रिश्तों पर ख़ामोश है। भाजपा के कई प्रतिनिधिमंडलों ने 2009 से लेकर 2019 तक जो दौरे किए और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से जो समझौते किए उसे वह देश को क्यों नहीं बताती ? 
प्रधानमंत्री मोदी को चीन के मामले में मिली नाकामी को अगर चीन-कांग्रेस रिश्तों की आड़ में काउंटर किया जाएगा तो भाजपा नेताओं की चीन में हुई मेज़बानी पर भी तो बात होनी चाहिए।
रिटायर्ड आईपीएस विजय शंकर सिंह ने तथ्यों सहित हाल ही में प्रकाशित एक लेख में भाजपा नेताओं की चीन यात्रा और वहाँ उड़ाई गई दावत पर विस्तार से प्रकाश डाला है। अगर आप में पढ़ने का सब्र है तो उस लंबे लेख के चुनिंदा अंश मैं नीचे दे रहा हूँ—-

2009 में ही भारतीय जनता पार्टी और संघ के कुछ लोग चीन गए थे और कम्युनिस्ट पार्टी के साथ इनका भी एक समझौता हुआ था।

टाइम्स ऑफ इंडिया के 19 जनवरी 2009 के संस्करण में महुआ चटर्जी की एक स्टोरी में  इस पर  रोशनी डाली गई है।

2009 में भाजपा और आरएसएस का एक पांच सदस्यीय शिष्टमंडल चीन की राजधानी बीजिंग गया था। बीजिंग और शंघाई की यात्रा करने वाला यह शिष्ट मंडल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के निमंत्रण पर गया था। वहां से यह शिष्टमंडल इस उम्मीद के साथ भारत आया कि दोनों ही राजनीतिक दलों (भाजपा और सीपीसी) में आपसी समझदारी बढ़ाने के लिये जरूरी कदम उठाए जाएंगे। सीपीसी मतलब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना।

आरएसएस के बड़े नेता, उनके प्रवक्ता और पार्टी की तरफ से जम्मू-कश्मीर के प्रमुख कर्ताधर्ता राम माधव ने उस मीटिंग के बाद टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा था –

” यह आपसी बातचीत, बीजेपी और सीपीसी के बीच बातचीत का एक सिलसिला शुरू करेगी और एक दूसरे की स्थिति को बेहतर समझदारी के साथ समझने में सहायक होगी। “ आगे राम माधव ने कहा कि, ” जो तात्कालिक मुद्दे थे, वे आतंकवाद, वैश्विक आर्थिक परिदृश्य जिससे भारत और चीन दोनो ही जुड़े हुए हैं पर भी बात हुई। साथ ही, तिब्बत का मसला और अरुणाचल प्रदेश के सीमा विवाद जैसे जटिल मुद्दे आदि पर भी विचार विमर्श हुआ। इस दल का नेतृत्व भाजपा नेता बाल आप्टे ने किया था।

एक रोचक तथ्य यह है कि चीन ने भारतीय माओवादी संगठनों से अपना कोई भी संबंध न होने की बात भी कही है। जब सीपीसी से उनका नक्सलवादी आंदोलन के  बारे में विचार पूछा गया और यह कहा गया कि, नक्सल संगठन चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ को अपना नेता मानते हैं, तो सीपीसी के नेताओं ने कहा कि, ” भारतीय माओवादी जो कर रहे हैं, विशेषकर उनके हिंसात्मक आंदोलन, वह चीन की अधिकृत राज्य नीति नहीं है और न ही यह कहीं से माओवाद के भी निकट है।

भाजपा की चीन के कम्युनिस्ट पार्टी से दूसरी शिष्टमंडल मुलाकात 2014 में हुई और इसकी खबर आप बिजनेस स्टैंडर्ड के 15 नवम्बर 2014 के अंक में पढ़ सकते हैं। यह शिष्टमंडल एक सप्ताह के दौरे पर गया था। इस शिष्टमंडल का एजेंडा चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की संगठनात्मक बारीकियों को समझना था। लौट कर शिष्टमंडल को भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह को अपनी रिपोर्ट देनी थी। 13 सदस्यीय दल का भ्रमण बीजिंग और गुयांगझाऊ शहरों का भ्रमण करना और यह समझना था कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का आंतरिक संगठन कैसा है तथा कैसे वे लोक कल्याणकारी राज्य की ओर बढ़ रहे हैं, का अध्ययन करना था। शिष्टमंडल ने बीजिंग में स्थित सीपीसी के पार्टी स्कूल को भी देखा और उसकी गतिविधियों का अध्ययन किया।

जब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पार्टी स्कूल के भ्रमण के औचित्य पर भाजपा के नेताओं से सवाल किया गया तो, भाजपा के नेता श्रीकांत शर्मा ने कहा, ” भाजपा इस ग्रह की सबसे बड़ी पार्टी बनने के मंसूबे पर काम कर रही है, और भाजपा तथा सीपीसी दोनो ही कैडर आधारित राजनीतिक दल हैं। हमारा इतिहास बताता है कि कैसे हमने रचनात्मक आलोचनाओं से अपने दल का विकास किया है। “

इस शिष्टमंडल यात्रा के पहले भाजपा के युवा नेताओं का भी एक दल चीन की यात्रा पर जाकर लौट आया था। उस युवा दल का नेतृत्व सिद्धार्थ नाथ सिंह ने किया था। इस दल ने भी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना से जुड़े पार्टी स्कूल देखे थे और उनका अध्ययन किया था। इस युवा दल के सदस्यों और नेताओं का चयन प्रधानमंत्री कार्यालय पीएमओ ने किया था। बीजेपी ने तब अपने सांसदों और विधायकों के लिये रिफ्रेशर कोर्स जैसे पाठ्यक्रम भी चलाये थे।

चीन गए इस शिष्टमंडल का नेतृत्व तब के लोकसभा सदस्य भगत सिंह कोश्यारी ने किया था जो अब महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। भाजपा ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर के शिष्टमंडल के जाने के निम्न उद्देश्य बताये थे।

” यह शिष्टमंडल दोनो ही सत्तारूढ़ दलों के बीच एक मजबूत संबंध स्थापित करने पर ज़ोर देगा।” विदेश मंत्री रहते सुषमा स्वराज ने इस यात्रा को दोनों देशों के बीच, राजनीतिक, आर्थिक और भौगोलिक क्षेत्र में आ रही छोटी मोटी समस्याओं को सुलझाने में सहायक होने की बात कही। सुषमा स्वराज ने यह भी कहा कि, शिष्टमंडल को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और चीन की सरकार में जो हैं, उन्हें नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा भारत के सभी पड़ोसी देशों विशेषकर चीन के साथ संबंध सुधारने की जो नीति चल रही है के सकारात्मक कदमों को बताना होगा। 

भाजपा महासचिव राम माधव जो 2009 में खुद एक शिष्टमंडल के साथ चीन जा चुके थे, ने इसे एक गुडविल विजिट बताया था। 2014 की इस यात्रा के पहले राम माधव सितंबर 2014 में भी बीजिंग गए थे और उन्होंने वहां शी जिनपिंग की बाद में होने वाली भारत यात्रा की पृष्ठभूमि तैयार की थी। जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आये थे तो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच भाजपा और सीपीसी के बीच नियमित और बेहतर विचार-विमर्श की भूमिका और कार्यक्रम भी बना था।

भगत सिंह कोश्यारी के अतिरिक्त इस दल में, अन्य सांसद तरुण विजय, भोला सिंह, कामाख्या प्रसाद तासा, हरीश द्विवेदी, कर्नाटक के एमएलए, विश्वनाथ पाटिल, विश्वेश्वर, अनन्त हेगड़े, बिहार के एमएलए विनोद नारायण झा, बिहार के एमएलसी, वैद्यनाथ प्रसाद, हरियाणा के एमएलए असीम गोयल, हिमाचल प्रदेश के एमएलए, वीरेन्द्र कंवर और उत्तर प्रदेश के एमएलए सलिल कुमार बिश्नोई थे।

2019 में भी भाजपा का एक प्रतिनिधिमंडल चीन गया था। इकॉनोमिक टाइम्स की खबर, 27 अगस्त 2019 के अनुसार, भाजपा के एक 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने चीन का दौरा किया था। इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भाजपा के महासचिव अरुण सिंह ने किया था। यह यात्रा चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के निमंत्रण पर की गयी थी। इस यात्रा का उद्देश्य अक्टूबर में होने वाली चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रस्तावित यात्रा की भूमिका भी तैयार करना था।

यह यात्रा सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 के हटाने और जम्मू कश्मीर का पुनर्गठन कर के लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के निर्णय के बाद हुई थी। छह दिन के इस भ्रमण कार्यक्रम में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और चीन के अधिकारियों से मिलने का कार्यक्रम तय था। इस शिष्टमंडल के सदस्य और भाजपा के विदेशी मामलों के प्रभारी तथा आरएसएस से जुड़े तरुण विजय ने कहा, “भाजपा और सीपीसी ने आपस मे दोनों दलों के बीच बेहतर तालमेल की संभावनाओं को तलाश करने की बात कही है। हमारा पार्टी नेतृत्व यह समझता है कि यह विचार विमर्श का एक उचित अवसर है जबकि चीनी राष्ट्रपति हाल ही में भारत का दौरा करने वाले हैं। “शिष्टमंडल की योजना, मोदी सरकार की मुख्य योजनाओं और नीतियों, और जो उचित प्रशासनिक कदम उठाए गए हैं, जैसे भ्रष्टाचार, आसान कराधान, गरीबों को उनके खाते में सीधे धन का आवंटन, आदि के बारे में विचार विमर्श करना। यात्रा के पहले यह प्रतिनिधिमंडल विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन में हमारे राजदूत विक्रम मिश्री से भी मिला था। शिष्टमंडल के एक सदस्य के अनुसार, “पार्टी अनुशासन का पाठ समझना और चीन की आर्थिक नीतियों और विदेश नीति पर उसके नियंत्रण को समझ कर हम भारत में उसकी नीतियों के अनुसार काम कर सकते हैं। “यह शिष्टमंडल चीनी थिंक टैंक और विधि निर्माताओं से भी मिलेगा और ” चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के आंतरिक सांगठनिक  ढांचा, राजनीतिक क्रिया कलाप, और लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना में उसकी भूमिका का अध्ययन करेगा।” प्रतिनिधिमंडल की यात्रा से पहले ऐसा कहा गया था।

2009 और 2014 में दो भाजपा शिष्टमंडल के चीनी दौरे के बाद 2015 में भाजपा मुख्यालय दिल्ली में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सेंट्रल कमेटी के इंटरनेशनल डिपार्टमेंट के मंत्री, वांग जियारूई ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की थी। 2014 में चीन गए भाजपा के शिष्टमंडल ने जिसमें एमपी और एमएलए शामिल थे, सीपीसी के कुछ पार्टी स्कूलों का दौरा ग्वांग झाऊ में किया था, और चीन के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा किये गए सुधारों का भी अध्ययन किया था।लेकिन 2019 में गए इस शिष्टमंडल का उद्देश्य दोनों देशों के बीच भाजपा और सीपीसी के विकास और प्रसार पर चर्चा करना था। साथ ही, मोदी और शी जिनपिंग की सरकारों के बीच पार्टी की मुख्य योजनाओं और नीतियों, भारत चीन के द्विपक्षीय संबंधों, व्यापार की संभावनाओं तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर भी विचार-विमर्श करना था। साथ ही, अमेरिका द्वारा चीन पर उत्पाद शुल्क लगाने के मुद्दे, बेल्ट और रोड योजना, चीन से संपर्क और यूरेशिया से उसकी कनेक्टिविटी और वर्तमान परिदृश्य में भारत चीन संबंध, पब्लिक हेल्थ, परंपरागत औषधियां, नगर विकास और आवास के मुद्दों पर भी विचार विमर्श करना था।

इस प्रकार हम देखते हैं कि 2008 में कांग्रेस और सीपीसी के नेताओं से मुलाकात के बाद 2009 से 2019 तक भाजपा के नेताओं और सीपीसी के नेताओं से मुलाकात का सिलसिला बराबर चलता रहा है। कांग्रेस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच 2008 में हुई मुलाकात पर अगर सरकार को लेशमात्र भी सन्देह है कि वह मुलाकात भारत विरोधी कोई कृत्य है तो सरकार कार्रवाई करने के लिये सक्षम है।

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