क्राइम रिफाॅर्मर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ. संदीप कटारिया ने बताया कि टिकटाक के भीतर मंे भारत सरकार ने बाकायदा एक अपना प्लेटफाॅर्म बनाया हुआ है और इस प्लेटफाॅर्म के 1 मिलियन फोलोअर्स हैं और 7.5 बिलियन लाइक किए हुए है। सिर्फ इतना ही सच नहीं है। माइ गवर्नमेंट इंडिया इसका इतना भर सच नहीं है। बाकायदा भारत चीन सीमा पर जो 20 सैनिक शहीद हुए। उन सैनिकों को जो शद्धांजलि देने के लिए 1 मिनट से कम का एक वीडियों बनाकर भी भारत सरकार की तरफ इसी टिकटाक में डाला गया है। यानि जो श्रद्धांजलि दी जा रही है। वह भी चीन की ऐप मंे बाकायदा भारत सरकार दे रही है। जब आप इस वीडियो को देखते हो तो आप क्या महसूस करते होंगे। आपके जहन में बहुत सारे सवाल होंगे कि क्या ये सब कुछ दिखाया जाता है। ये भावनाओं को जानबूझ के उभारा जाता है या सरकार के पास कोई विजन नहीं है। विजन का मतलब है कि आप जिन बातों का जिक्र करते हैं। जनता उस से प्रभावित हो जाती है। लेकिन जनता को प्रभावित करने की दिशा से आगे बढ़ते हुए आप कोई समाधान नहीं निकाल पाते हैं।

1962 का युद्ध हुआ था तकरीबन 58 साल हो गए। इस 58 साल के भीतर में उस दौर की पीढ़ी के भीतर आज भी चीन को लेकर गुस्सा हैं। 1971 का जब युद्ध हुआ था। तो ऐसे में बहुत सारे भारतीय सैनिकों के बारे में कहा जाता है कि वो पाकिस्तान की अलग-अलग जेलों में बंद हैं। उनको वापस लाने का कोई प्रयास किस रूप में कोई प्रयास किया गया या नही किया गया।  इसको लेकर उन सैनानियों के परिजनों से जब आप मिलते हैं। जिनकी उम्र अब हो चली है। वह भी बेहद गुस्से में नजर आते हैं। कारगिल युद्ध के समय जब सीमा से शव आ रहे थे। उस दौर में हम लोग रिपोर्टिंग किया करते थे और देखते थे कि हरियाणा के कई गांवों में लगातार जाना पड़ता था। मध्यप्रदेश के कई गांवों में गए और वहां पर गुस्सा था पाकिस्तान को लेकर लेकिन सवाल है इन सबके बीच भी वाकई हम रास्ता अपना निकाल पाएं। जहां पर भारत एक ताकत के साथ अपने देशवासियों के साथ खड़ा होता नजर आएं या फिर सŸाा ने उस दौर में लोगों की भावनाओं के साथ ही खिलवाड़ किया है।

क्यांेकि जब हम इस ऐप को देखते हैं। उस ऐप के साथ झटके में नजर हमारी जाती है मीडिया चाएं वो प्रिंट मीडिया हो या टेलिविजन मीडिया हो उसमें खबर आई कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने एक लंबी फिरस्त दी हैं। कहा गया हैं कि 50 चाइनीज ऐप जो हैं वो खतरनाक हैं। इसमे पहला नाम टिकटाॅक का ही है। उसके बाद यूसी ब्राउजर हैं, वी चेट हैं, क्लब फैक्ट्ररी हैं, साइन हैं अलग-अलग तरीके से है। लेकिन सच क्या है। क्या वाकई हम इन परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। कि हमारे पास इसका कोई विकल्प नहीं है और हम सिर्फ तत्काल में इसकी उम्र बहुत छोटी हैं। जब तक युद्ध की आकाक्षाएं हैं उसको लेकर देश के भीतर जो भावनाएं हैं उन भावनाओं के साथ सरकार अपने आप को खड़ा करना चाहती है। इसलिए इन बातों का जिक्र किया जाता है और मीडिया इन बातों को देखता, परखता नहीं है। कि दरअसल जिन बातों का जिक्र सरकार की तरफ से भी हो रहा है। मंत्री भी आके कह रहा है लेकिन सच क्या है। क्या कहने भर को दिखा देना सच हैं या उसके बारे में क्रीटिकल होकर जानकारी हासिल करना सच है।

डाॅ. कटारिया ने कहा कि आज जरा इस बात को परखने की कोशिश करें। उसके साथ एक चीज ओर परखेगें। इस देश में सीमा पर लड़ते हुए जो जवान शहीद हुए हैं। उसमें कोई कोरपोरेट का बेटा नहीं है। कोई इंडस्ट्रीज का बेटा नहीं है। कोई पालिटिशियन का बेटा नहीं है। सारे के सारे शहीद हुए सिपाहियों के पिता जो थे वो किसान हैं और जहां-जहां से भी हमने जिक्र करना शुरू किया। जहां-जहां से चीजों को निकाला किसान का बेटा ही सीमा पर मारा गया है। वहीं पर वो शहीद हुआ है। उसके गांवों और खेड़े की परिस्थ्तिियों को जब आप टटोलेगें तो बड़ी न्यूनतम लड़ाई वो लड़ रहा था। उसके पैसे से घर का मकान पक्का हो रहा था। उसका पैसा जो चलकर आता था उसके जरिये पुराने कर्ज चुकाए जा रहे थे। जो पैसा सिपाही का घर तक पहुंचता था उसके जरिये 2 धोती खरीदी जाती थी। 2 जून की रोटी मोहीया हो रही थी। बड़ी न्यूनतम लड़ाई वो लड़ रहा था। घर के भीतर में और देश के लिए सबसे बड़ी लड़ाई सीमा पर लड़ रहा था।