वर्षों उपरांत ऐसी खगोलीय घटनाएं देखने को मिलती हैं जो आज पूर्ण सूर्यग्रहण के रूप में हमारी पीढ़ी को देखने को मिली है , एक तरफ तो यह घटना खगोशास्त्रीयों के लिए बहुत कुछ सीखने हेतु उनके मन में जिज्ञासा से भरी रही तो  दूसरी और धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से यह घटना पीड़ादायक रही – जो कुछ समय ही घटकर टल भी गई  !

मगर सरकार की भूमिका के कारण  उद्योग, कारखाने, काम-धंधे , रोजगार , मजदूरी पर लगे ग्रहण की समय सीमा तो  निर्धारित ही नहीं हो पा रही है  उससे कब राहत मिलेगी तय नही !

आज के हालात जनमानस के लिए भुखो मरने के हैं ,  मेहनत की कमाने खाने वाले अपने काम धंधे शुरू नहीं कर पा रहे हैं , यदि करना भी चाहें तो कानून की अदृश्य बेडिया डाल दी गई हैं  और मौखिक तौर पर स्वीकृति देने की बातें कर सहायक होने का दिखावा कर शुर्खियों में बनीं हुई है सरकार ।

चुनौतियां तो छोटे कारखाने यूनिट्स वालों को के लिए हैं  बड़े उद्योग तो फिर भी सफर कर लेंगे मगर जिनके पास 25-30 श्रमिक काम करते थे अब आडर नहीं होने के चलते दस श्रमिकों से ही काम ले रहे हैं – उनके लिए स्वीकृतियां लेना इतना कठिन कर दिया गया है कि तमाम मुश्किलें पेश आ रही हैं , उपर से नियमों की पालना बेहद जरूरी कर दी गई है जो करना सभी के बूते से बाहर हो चुका है

उनकी अक्षमता साफ तौर पर प्रतीत हो रही है मगर नीतियां और दंड के प्रावधान इतने भयानक हैं कि उद्योगपतियों ने अपने संगठन में चर्चा कर अपने कारोबार बंद करने का फैसला लेना पड़ रहा है मज़बूरी में क्योंकी सरकार कोई मदद करने की बजाय पैसा वसूलने की सोच रख नियमों को ओर सख्त बनाए जा रही है  जिससे काम करना दूभर हो गया है ।

बिजली के अनुमानित भारी बिलों के भुगतान , भवन कर , जी एस टी भुगतान , कर्मचारिों की पगार , मेडिकल खर्च , कच्चे माल की सप्लाई लाइन का टूटना हो चाहें खपत में कमी के चलते उत्पादन में बाधाएं आना हो !

इस सब का सारांश यह है कि सरकार अपने नियमों में लचीलापन लाए , जरूरी दिशनिर्देशों को समझाकर स्वतंत्रता से कार्य करने दिए जाएं अनावश्यक चालान नहीं काटे जाएं  और बेकार की प्रमिश्नों के लिए चक्कर कटवाने बंद किए जाएं ।

बकौल तरविंदर सैनी सरकार बाजारों को पुनः खोलकर मांग को बढ़ाने का काम करे ताकि उत्पादन बढ़ सके , उससे रोजगार बढ़ सके बेरोज़गारी कम हो सके और यह सब तभी संभव है  जब रेहड़ी पटरी वालों से लेकर फुटकर विक्रेता , मनझोले  व्यापारी तथा फैक्ट्रियों और उद्योगों को ऋण दिया जाएगा अन्यथा उनपर लगा यह ग्रहण सिघ्र समाप्त होता नज़र नहीं आ रहा है  तथा इस ग्रहण को हटाना सरकार के हाथों में है वह जितना शीघ्र निर्णय लेगी उतना ही लाभप्रद होगा आमजन सहित सरकार के लिए भी ।

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