बिस्मिल की जयंती पर हरियाणा के पूर्व शिक्षा एवं पर्यटन मंत्री रामबिलास शर्मा ने उन्हें याद करते हुए श्रद्धांजलि दी है। मात्र तीस साल की उम्र में फांसी के फंदे पर झूल जाने वाले अमर शहीद क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल की आज जयंती है। बिस्मिल की जयंती पर प्रदेश के पूर्व शिक्षा एवं पर्यटन मंत्री रामबिलास शर्मा ने उन्हें याद करते हुए श्रद्धांजलि दी है। रामबिलास शर्मा ने जारी सन्देश में लिखा है कि राम प्रसाद बिस्मिल भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि उच्च कोटि के कवि, अनुवादक, बहुभाषाविद व साहित्यकार भी थे जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। रामबिलास शर्मा ने उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में जन्मे राम प्रसाद बिस्मिल को ब्रिटिश सरकार ने मात्र तीस साल की उम्र में फांसी की सजा दे दी थी। अंग्रेजों के खिलाफ चलाये जा रहे हथियार बंद मूवमेंट के तहत राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने साथियों के साथ काकोरी में ट्रेन डकैती की घटना को अंजाम दिया था। इस डकैती काण्ड के बाद ब्रिटिश सरकार ने मुकदमा चलाते हुए राम प्रसाद बिस्मिल सहित चार क्रांतिकारियों को फांसी की सजा दी थी। रामबिलास शर्मा ने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले वीरों में पंडित रामप्रसाद बिस्मिल का नाम विशेष आदर से लिया जाता है !बिस्मिल सदृश क्रांतिकारी वीरों के बलिदान का भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति में विशेष योगदान है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत ने गोडा जेल में 17 दिसम्बर 1927 को क्रांतिकारी राजेन्द्र नाथ लाहड़ी को फांसी पर लटका दिया। वहीं 19 दिसम्बर 1927 को अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखापुर जेल में व 19 दिसम्बर को ही अमर शहीद अशफाक उल्ला खां को उत्तरप्रदेश की फैजाबाद जेल में फांसी पर लटका दिया गया व इसी दिन ठाकुर रोशन सिंह को भी फांसी दी गई। इन तीनों महान क्रांतिकारियों के बलिदान से देश में अंग्रेजों के विरूद्घ सशस्त्र संघर्ष करने के क्रांतिकारी आंदोलन में एक नई प्ररेणा व उत्साह पैदा हुआ ! भारत की मिट्टी का कण-कण सदैव पंडित रामप्रसाद बिस्मिल तथा उनके साथी क्रांतिकारियों का ऋणी रहेगा।इस अवसर पर रीतिक वधवा, नवीन कौशिक भी उपस्थित थे। Post navigation प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत ऐसे ही प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता रहेगा : प्रो. रामबिलास शर्मा मोदी के जन कल्याण के निर्णयों ने भाजपा को देश की जनता के दिलों में बसा दिया: शंकर धपूड़