राजनीति के कान मंत्री जी , बड़ा कहर ढाया है ,,,आपने ।-किस मामले में भाई? अपने इलाके के एक मास्टर की ट्रांस्फर करके ।-अरे , वह मास्टर ? वह तो विरोधी पार्टी के लिए भागदौड़,,,-क्या कहते हैं हुजूर ? उस पर यही इल्जाम है । ज़रा चल कर कार तक पहुंचने का कष्ट करेंगे? क्यों ? अपनी आंखों से उस मास्टर को देख लीजिए । जो चल कर आप तक तो पहुंच नहीं पाया । बदकिस्मती से उसकी दोनों टांगें बेकार हैं । और भागदौड़ करना उसके बस की बात कहां ? जो अपने लिए भागदौड़ नहीं कर सकता , वह किसी के विरोध में क्या भागदौड़ करेगा ? अच्छा भाई । तुम तो जानते हो कि राजनीति के कान बहुत कच्चे होते हैं और आंखें तो होती ही नहीं । खैर । आपने कहा है तो मैं इस गलती को दुरुस्त करवा दूंगा ।खिसियाए हुए मंत्री जी ने कहा जरूर लेकिन आंखों में कहीं पछतावा नहीं था । -कमलेश भारतीय Post navigation ऑनलाइन अंतर्राष्ट्रीय काव्य गोष्ठी लघुकथा : सेलिब्रिटी 1 2 3