अनिल श्रीवास्तव

देश में लॉकडाउन की स्थिति को देखते हुए साहित्य एवम समाज को समर्पित संस्था “परम्परा” गुरुग्राम द्वारा साहित्य की अविरल धारा बहाने हेतु काव्य तथा संगीत गोष्ठियों का अनवरत क्रम ज़ारी है। इसी क्रम में भारत सहित दुबई, अमेरिका एवम ऑस्ट्रेलिया के सहित्यकारों को लेकर तीसरी अंतर्राष्ट्रीय डिजिटल काव्य गोष्ठी “दिल है हिन्दुस्तानी” का आयोजन शनिवार, दिनांक 30 मई’2020 को किया गया। इसमें अपने-अपने घरों से ही मोबाइल व कम्प्यूटर के माध्यम से कविताएं सुनाकर, गोष्ठी सफलतापूर्वक आयोजित की गई ।

गोष्ठी की अध्यक्षता दिल्ली की प्रतिष्ठित सहित्यकार एवम कवियित्री डॉ सविता चड्ढा ने की। ऑस्ट्रेलिया निवासी वरिष्ठ शायर प्रगीत कुँअर मुख्य अतिथि के रूप में विराजमान रहे। गोष्ठी में भारत से तीन, दुबई से पाँच, अमेरिका से पाँच एवम ऑस्ट्रेलिया से दो सहित्यकारों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं।

गोष्ठी का आयोजन एवम संचालन महिला काव्य मंच की हरियाणा प्रदेश, उपाध्यक्ष इन्दु “राज” निगम व परम्परा के संस्थापक अध्यक्ष राजेन्द्र निगम “राज” द्वारा किया गया। इस गोष्ठी में कोरोना वायरस से लड़ने हेतु जागरूकता फैलाने वाली रचनाओं के साथ ही अन्य विषयों पर भी रचनायें प्रस्तुत की गईं। अध्यक्षता कर रही डॉ सविता चड्ढा जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि लोकडाउन के इस दौर में “परम्परा” संस्था द्वारा इस तरह ऑनलाइन काव्य गोष्ठियों का आयोजन करके, कविता की अलख जगाना वास्तव में बड़ा ही सराहनीय कार्य है।

गोष्ठी में प्रस्तुत रचनाओं की एक बानगी इस प्रकार है-

गम में थोड़ा मुस्कुरा कर देखिए जिंदगी के पास आकर देखिए। मिल ही जाएगा खुदा भी एक दिनबस जरा सी लौ लगा कर देखिए।(सविता चडढा-भारत)

थोड़े   धड़ पर रखता   है   वो   थोड़े  भीतर   रखता   है. रावण  जैसे   ही  इंसा  अब  अपने  दस  सर  रखता  है(प्रगीत कुँअर-ऑस्ट्रेलिया)

मन के अंदर एक मंदिर है, उस मंदिर में एक मूरत है. जब ईशवर पूजन का मुहूर्त हो, माँ याद तुम्हारी आती है…(आलोक प्रकाश “ख़ुशफ़हम”-यूएस

गैर-ओ-करम से शरमिंदा,आदमी छुप के रहता है. तू बता ऐ ख़ुदा,तेरी क्या मजबूरी है (संदीप लेले-दुबई)

मौन  की  पीड़ायें गहरी,संवेदनाएं जग की बहरी,  किस तरह  से आँसुओं  को पोंछने निकलूं यहाँ (नितीन उपाध्ये-दुबई)

देख कैसी आयी विपदा ,चुभे है वो कुछ फाँस सी, है चिलमनों से झाँकती,रुद्र आँखो से वो आँकती।(प्राची चतुर्वेदी-यूएसए)

नेत्रों में अश्रु की धार लिए, रिक्त हस्त ही चला आया | देवसरी के तट पर जा, शुष्क कंठ ही चला आया |(ऋचा शर्मा-दुबई)

ज़रा मुस्कुराएं हुम्, ज़रा गुनगुनाए हम, ज़माने के सब गम, चलो भूल जाएं हम(इन्दु “राज” निगम, भारत)

खिलाए बिन उन्हें हम से भी न खाया जाए, थोड़ा हिस्सा चलो भूखों को खिलाया जाए।(डा० भावना कुँअर,ऑस्ट्रेलिया)

वो तेरी बातों की चाश्नी,ये मेरा ज़ेहनपरस्त दिल  यक़ीन करूँ भी तो कैसे ,हद से मीठे  तेरे लहजे !(भारती रघुवंशी ‘प्रिया’-दुबई)

मिले तो मुझको मुकम्मल मिले तेरी दुनिया. वगर्ना मेरे लिये और कायनात बने (माधव नूर-दुबई)

हम  लोगों  को  समझ  सको  तो  समझो  दिलबर  जानी, गरीबी  ने  याद  दिला  दी  हमको  अपनी  नानी (मनीष गुप्ता-यूएसए)

माटी से अपनी दूर है, तो इतना ग़म ना कर ।हर राम को वनवास, दिलाती है ज़िंदगी ।।(आशीष सिंह-यूएसए)

फूल नहीं खिलते उपवन में काँटे बोने से. खुशियाँ नहीं मिला करती हैं जादू-टोने से (राजेन्द्र निगम “राज”- भारत)

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