तरविंदर सैनी ( माईकल ) कोरोना से जंग को फीकी नहीं पड़ने देने के पीछे उनका मंतव्य क्या रहा होगा इसका सहर्ष अनुमान लगाया जा सकता है कि राज्य सरकारों की नकारत्मकता के चलते उनकी पीड़ा और सरकार की साख को कितना बट्टा लगा है , मजदूरों के पीड़ादायी पलायन के पीछे अमानवीय यातनाओं के समान लोगों को हुए कष्ट और दुर्गति से आहत दिखे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जिसका मूल कारण राज्य सरकारों का केन्द्र सरकार पर निर्भर रहना है तथा उनके स्वम् के विवेक से कोई कार्य नहीं करना रहा है । प्रतिमाह आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाले रेडियो कार्यक्रम मन की बात में झलकी उनकी ग़रीब , मजदूर , श्रमिकों के प्रति पीड़ा को वह दबा नहीं सके , पहले आत्मनिर्भर बनने के लिए इशारा दिया मगर राज्यों के मुखियाओं की निष्क्रियता के जारी रहने के चलते मजबूरन उन्हें कहना ही पड़ गया कि यदि राज्य सक्षम व आत्मनिर्भर होते तो ईतनी समस्याएँ पैदा नहीं होती – दुखदायी क्षणों का सामना नहीं करना पड़ता , भारी भरकम पैकेज की घोषणाएं नहीं करनी पड़ती – जरूरत पड़ती भी तो सहायता राशि कम देनी होती , मगर देश पर अतिरिक्त भार वहन करने के बाद भी राज्य सरकारें का मानसिक व आर्थिक दिवालियापन देख कर प्रधानमंत्री मोदी जी ने आत्मनिर्भर बनने की बात कही – जिसका सीधा अर्थ यह हो सकता है कि कुछ तो स्वम् भी कर लीजिए पूर्णत्या केंद्र पर निर्भरता उचित नहीं । सत्ताधारी दल के मुख्यमंत्रियों से बेहतर नतीजे विपक्षीदलों के मुख्यमंत्रियों ने दिए हैं तो उनकी चिंता सौभाविक है – मगर बात फिर वही कि अपने दल के ही ओहदेदारों को किस प्रकार समझाया जाए जब्कि वह बताए हुई बातों का अनुशरण करते हुए ताली,थाली बजा कर प्रतीक्षा में है कि नए आदेश में मोदी जी क्या बजाने के लिए कहेंगे उसकी तैयारी में हैं । बेहिसाब तकलीफें झेलकर अनगिनत लोगों का एक बहुत बड़ा तबका अपने ग्रहराज्यों मे पहुंच कर भाजपा की निज मोदी सरकार को कोस रहा है उसके उत्तरदायी राज्यों के मुखिया हैं – उन्हीं असंवेदनशीलता के चलते भाजपा को आगामी चुनावों में करारी हार का मुँह देखना पड़ सकता है , पार्टी को लोगों के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है जिससे अर्श पर चढ़े दल को फर्श पर आना पड़ सकता है । आत्मनिर्भर भारत की बात का लबोलुबाव यही है कि जो लोग जहां पर भी हैं उन्हें अपने उपक्रम वहीं से चलाने के लिए प्रेरित करना – अपनी क्षमताओं के फलस्वरूप हस्तकला से निर्मित उत्पाद ,किसानी तथा अपने कृत्रिम वस्तुओं का निर्माण अपने ही क्षेत्रों में रहकर करने से है और अपनी आजीविका तलाशकर चलाने के लिए प्रेरणा देना रहा , मगर उन्हें राज्यों से इसकी भी कोई आस शेष नहीं लगती है । नियमों और कायदों की अवहेलना न हो और स्तिथियाँ बेकाबू ना हों उसके लिए श्री मोदी जी ने कोरोना से जंग के प्रत्येक मोर्चे पर मजबूती से खड़े रहकर डटे रहने के पुनः संकेत दिए हैं होंसलहफजाई करते हुए ।बकौल तरविंदर सैनी समाजसेवी ( माईकल ) नहीं लगता कि मोदी जी के इशारों को समझकर भी मुख्यमंत्रियों की सोई हुई चेतना जागृत हो पाएगी और वह देश को पुनः प्रगतिपथ पर लाने उसकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में – उद्योग ,कारखाने व बाजारों को सुचारू रूप से चलाने के लिए कोई प्रयास करेंगे ।तरविंदर सैनी ( माईकल ) Post navigation ऑनलाइन अंतर्राष्ट्रीय काव्य गोष्ठी दलितों का कब्रिस्तान बनता जा रहा है मेवात : जस्टिस पवन कुमार