लोकडाउन खुलने के बाद न खोले जाए हुक्का बार्स, सख्त कानून बनाए सरकार
— 3 महीने बाद आए आरटीआई का जवाब असंतोषजनक

पंचकूला।जिला पंचकूला में धड़ले से चल रहे हुक्का बार्स को बन्द करवाने के लिए एनएसयूआई आरटीआई सेल के राष्टÑीय कन्वीनर व शिवालिक विकास मंच के उपाध्यक्ष दीपांशु बंसल काफी समय से प्रयासरत है जिसके लिए कानूनी रूप से भी हर संभव प्रयास करके बन्द करवाने की कवायद करते आ रहे है। दीपांशु बंसल ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को ज्ञापन भेजकर प्रदेश में चल रहे हुक्का बार्स को लोकडाउन के बाद पूर्णत: बन्द रखने,विशेष टीम गठित कर हुक्का बार्स को बन्द करते हुए मॉनिटर करने व हुक्का बार्स को प्रतिबंधित करने के लिए ठोस कानून बनाने की मांग की है। बंसल का कहना है कि प्रदेश में कोई भी हुक्का बार रेस्ट्रॉन्ट की आड़ में युवाओ, छात्रों व निवासियो को हुक्के का सेवन न करे। बहुत जल्द न्यायलय के माध्यम से इसकी रोकथाम के लिए पंजाब की भांति सख्त कानून भी बनवाने का प्रयास किया जाएगा जिससे युवाओ,छात्रों व प्रदेशवासियों का भविष्य सुरक्षित रहे।

बंसल का कहना है कि जिला पंचकूला में युवाओ को नशे से रोकथाम के लिए राज्य की भाजपा-जजपा सरकार व जिला प्रशासन गंभीर नही है, मसलन सरकार की विफलता से जिले में नशा कारोबारी सरेआम बिना अनुमति के नशीले पदार्थो का सेवन बच्चो,युवाओ व छात्रों को करवाते रहे है। लोकडाउन के कारण इन हुक्का बार्स के बन्द रहने के चलते थोड़ी राहत मिली पर लेकिन 31 मई 2020 को जैसे ही लोक डाउन खुलेगा वैसे ही हुक्का बार्स का कारोबार भी दोबारा चल पड़ेगा।

बंसल ने हरियाणा सरकार के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, डीजीपी, डीसी, ड्रग्स विभाग के कमिश्नर व एचएसवीपी के एस्टेट अफसर को हुक्का बार्स बन्द करने के संदर्भ में 3 दिसम्बर 2019 को लीगल नोटिस भेजा था जिसके बाद प्रशासन हरकत में आया और सभी हुक्का बार्स में रेड कर यह पाया कि अवैध रूप से हुक्का बार्स चल रहे है जो निकोटिन आदि के माध्यम से नशा सरेआम बेच रहे है और युवाओ को नशे की लत लगा रहे है, इसमें पुलिस द्वारा विभिन्न हुक्का बार्स मालिको के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कर मामले विभिन्न धाराओं के अंतर्गत रजिस्टर किए गए परन्तु इसके सन्दर्भ में कोई ठोस कानून न होने के चलते कोई सख्त कार्यवाही नही की गई।

डीसी पंचकूला से 24 जनवरी 2020 को अब तक की गई कार्यवाही के संदर्भ में जानकारी मांगी थी जिसके जवाब में डीसी ने 13 फरवरी 2020 को सिविल सर्जन को पत्र स्थानांतरित किया था। 3 महीने के बाद सिविल सर्जन ने उप सिविल सर्जन का जवाब भेजते हुए सूचित किया है कि यह सूचना स्वास्थ्य विभाग से सम्बंधित नही है। ऐसे में जिला प्रशासन व राज्य सरकार की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठना लाजमी है कि प्रशासन को मालूम ही नही है कि अब तक क्या कार्यवाही की गई है व किस विभाग से इसकी जानकारी दी जानी है। राज्य सरकार का ऐसे मामले में गंभीर न होना दुखदायी है।

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