भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। आज निगम की ओर से एक विज्ञप्ति प्राप्त हुई कि उन्होंने दो निर्माणाधीन इमारतों को सील किया है। तो मुझे ध्यान आया कि कल ही किसी ने मेरे पास फोटोज भेजे थे, जिसमें पूर्व डिप्टी मेयर परमिन्दर कटारिया के निवास के दोनों ओर दो बड़ी-बड़ी बहुमंजिला इमारतें बन रही हैं। पता किया तो उनका काम तो थोड़ा बहुत लॉकडाउन में भी चलता रहा था और अभी भी जारी है। आस-पड़ोस वालों का कहना है कि इसे कोई रोक नहीं सकता। आपको पता नहीं है कि यह डिप्टी मेयर गजेसिंह कबलाना का वार्ड है और पूर्व डिप्टी मेयर परमिन्दर कटारिया ने यह इमारत बना ही रखी है, उसे किसने रोका था, जो इन्हें रोक लेंगे। पूछा कारण क्या है तो कहना था कि इतने अंजान तो आप भी नहीं, सब समझते हुए। यह सब तो चढ़ावे का खेल है। अब देखना है कि निगम इस प्रकार की अनेक इमारतें गुरुग्राम में बन रही हैं, उन्हें सील करता है या फिर बस ऐसे ही कोई एक-दो सील कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है। वैसे पुराना अनुभव यह बताता है कि सील की हुई इमारतों में भी एक-दो दिन बाद काम आरंभ हो जाता है और कई बार तो सील करने वाली टीम का मुंह दूसरी ओर होता है और काम जारी रहता है। अब यह क्या गोरखधंधा है, आम आदमी तो समझ नहीं पाएगा लेकिन एक बात जरूर दिमाग में आ जाती है कि कहीं न कहीं कोई खेल अवश्य खेला जा रहा है। आपको याद दिला दूं कि निगम की सामान्य बैठकों में बार-बार यह सवाल उठता रहा था कि निगम के अधिकारी जहां-जहां इमारतें बनती हैं, लाख रूपए प्रति लैंटर के हिसाब से लेते हैं और जहां से यह प्राप्त नहीं होता है, वहां निगम उसे सील कर देता है और बाद में लाख की जगह डेढ़-दो लाख देकर फिर आरंभ हो जाता है। यह हम नहीं कह रहे हैं। निगम के पार्षद, निगम की सामान्य बैठक में निगम के सभी अधिकारियों, निगम के तीनों मेयरों, ज्वाइंट कमिश्नर और कमिश्नर की उपस्थिति की बातें हैं। तो जब सभी के सम्मुख जनता के चुने हुए प्रतिनिधि (पार्षद) इस प्रकार की आवाज उठाते हैं और किसी अधिकारी पर कोई कार्यवाही नहीं होती तो यह बात तो अवश्य सिद्ध हो जाती है कि सब जगह भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार है। बाकी अब ये दो इमारतें बन रही हैं, इनके ऊपर क्या कार्यवाही होती है यह देखकर भी पता लग जाएगा। आजकल निगम में एक बात बहुतऔर चर्चा में है। निगम के एक इंजीनियरिंग विंग के एससी सत्यवान के बारे में एक समाचार पत्र में समाचार प्रकाशित हुआ कि उनको लैटर मिला है कि एक महीने के अंदर-अंदर जवाब दें कि आप कैसे इस पद पर आसीन हैं। इस बारे में अधिक जानने के लिए हमने एससी सत्यवान को फोन लगाया तो उन्होंने एक बार विषय सुना और अखबार वाले तो ऐसे ही लिखते रहते हैं, इसके पीछे कोई सच्चाई नहीं है। तो फिर हमने उनसे पूछा कि सच्चाई क्या है आप ही बता दें, इस पर उन्होंने कहा कि मैं मीटिंग में जा रहा हूं, समय नहीं है फिर बताउंगा। उसके पश्चात फोन करते रहे, उन्होंने फोन उठाया नहीं। एक जाकर उनके कार्यालय में उनसे मुलाकात की तो उनका कथन था कि सबकुछ ठीक है। इसमें बताने जैसी कोई बात नहीं है। मैं वर्षों से नौकरी कर रहा हूं और इस प्रकार की बातें नौकरी का हिस्सा होती हैं। वहीं निगम के कुछ लोगों से इस बारे में जानकारी लेने का प्रयास किया तो जो ज्ञात हुआ वह यह कि नियम अनुसार एससी के पास सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री होनी चाहिए, जबकि सत्यवान सर के पास केवल डिप्लोमा है। एक व्यक्ति ने तो वहां बड़ा ही रोचक उदाहरण देकर समझाया कि जिस प्रकार एमए का पर्चा बीए का स्टुडेंट देखे, कुछ वैसा ही है यह। क्योंकि इनके नीचे काम करने वाले एक्सइएन डिग्री धारक हैं और यह डिप्लोमा करे हुए हैं और वे उनके काम का इंस्पैक्शन करते हैं। कुछ लोगों ने बताया कि यह कोई नई बात नहीं है। जबसे वह एससी बने हैं, तबसे कुछ अधिकारी इनकी शिकायत करते हैं, क्योंकि वह गलत हैं। नियमानुसार एससी बन नहीं सकते और वह पता नहीं किस प्रकार जाकर अधिकारियों को समझा आते हैं और वर्तमान में भी ऐसा ही होने वाला है।इसमें एक विशेष मजेदारी वाली बात जो पता लगी कि निगम के सभी जोनों में जितने काम भी इंजीनियरिंग के 50 लाख से कम के होते हैं, वे सभी इनके दस्तखत होकर ही पास होते हैं और 50 लाख से अधिक के कार्य चीफ इंजीनियर के पास जाते हैं। चीफ इंजीनियर जाहिर ही बात है कि डिग्री धारक होते हैं और एससी से वरिष्ठ भी होते हैं लेकिन प्रश्न यह है कि अधिकांश कार्य तो 50 लाख से कम के ही होते हैं। 50 लाख से कम के कामों के लिए एक डिप्लोमा धारक एससी देख रहा है और 50 लाख से अधिक के चंद कामों को दो डिग्री धारी चीफ इंजीनियर देख रहे हैं। अत: कह सकते हैं कि काम का उचित बंटवारा भी नहीं है। अब जो एक बात मैं कहने जा रहा हूं, उसका प्रमाण कहीं नहीं मिलेगा लेकिन वास्तविकता को जो भी आदमी सरकार के टेंडर के कार्यों में लगा हुआ है, चाहे छोटा या बड़ा उन सभी को इस बात का ज्ञान होगा कि वर्तमान में जो चल रहा है कि दस्तखत, कमीशन के साथ होते हैं और यही वजह है कि यहां हर जेई, एसडीओ, एक्सइएन, चीफ इंजीनियर यह चाहते हैं कि हमारे हिस्से में अधिक से अधिक कार्य आएं। वैसे आम आदमी की दृष्टि में यह अजीब लग रहा होगा कि सरकारी नौकरी में आदमी यह सोचता है कि काम न करना पड़े तो ही अच्छा। Post navigation डाडावास गांव को सेनेटाइज किया गया युवा पृथवीराज चैहान के जीवन से प्ररेणा लें