विप्र फ़ाउंडेशन के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप वशिष्ठ ने कहा की परिवार से दूर रहना कोई आसान काम नहीं है,प्रत्येक व्यक्ति अपना आखिरी वक्त अपने परिवार को देखते हुये काटना चाहता है । वृन्दावन जैसे तीर्थस्थलों में अज्ञात भिखारियों की मृत्यु भगवान की गोद से ज्यादा इस बात को दशार्ती है कि उस वृद्ध या वृद्धा को उसके बेटे का कन्धा मयस्सर नहीं हुआ जिसके पालन-पोषण में उसने अपनी जवानी के दिन-रात एक कर दिये थे ।

जीवन के अन्तिम पढ़ाव में साथी छूटने का गम कितना बड़ा होता है इस बारे में वे लोग ही बता सकते हैं जो इस स्थिति में हैं । चाहे पति हो या पत्नि, एकांकी जीवन बहुत कठिन होता है । तब जीने का एकमात्र सहारा उसके बच्चे होते हैं । टूटे हुये इंसान के दिल पर क्या बीतती होगी जब उसके अपने खून के कतरे उसके साथ अन्जानों जैसा व्यवहार कर जाते हैं । अपने दिल की छोटी सी बात अपने जीवन साथी को बता देने वाला बुजुर्ग, उन बच्चों के तीखे तानों और गैरपन के अहसास को दिल के किस कोने में छुपाता है, कैसे छुपाता है यह वह खुद भी जान नहीं पाता । अपने बच्चों पर अपना अधिकार समझ डांट देने वाले माता-पिता को जब जवाब मिलना शुरू हो जाता है तब उसका स्वाभिमान क्षार-क्षार हो जाता हो जाता होगा । बूढ़ी मातायें यूं ही नहीं वृन्दावन जैसी जगहों पर चली आतीं, कोई बुलाता नहीं है यहाँ । आश्रय सदनों में रहकर भी वे इन्तजार करती रहती हैं कि उनके घर से कोई उनको ससम्मान बुलाने आ जाये कि उन्हें अपनी माँ की जरूरत है । पर दुखद है कि आज की औलाद ‘माँ-बाप’ की इज्जत तब तक ही करती है जब तक कि उनसे कुछ प्राप्ति होती रहे

विफ़ा के प्रदेश उपाध्यक्ष डी. पी.कौशिक ने कहा की दुनियाँ की दौड़ में आगे निकलने की होड़ लगा रहे युवा पता नहीं क्यूँ इतने पत्थरदिल हो जाते हैं कि वे उन्हें भूल जाते हैं जिन्होने उसे दो कदम चलने के काबिल बनाया था । किसी ने कहा था कि वृद्धाश्रम बनाये ही क्यू जाते हैं?

हक़ीक़त में वृद्धाश्रम का बनना उस समाज के मुंह पर तमाचा है जो इंसानियत और संस्कारों की जिम्मेदारी लेता है । ‘प्रदेश कोऑर्डिनेटर राजेश शर्मा ने कहा ‘औल्ड एज होम्स’ में रहने वाले बुजुर्गों का भी परिवार होता है, उनके होनहार बेटे ऐसे वृद्धाश्रम के खर्चे तो उठा सकते हैं लेकिन उनसे अपने माँ-बाप का बुढ़ापा सहन नहीं होता ।

राजेश शर्मा ने कहा की लोग भले ही बेटों को इस स्थिति के लिये दोष दें लेकिन हकीकत में बुजुर्गों की इस बेकदरी के लिये वो बेटियां भी कम दोषी नहीं जो उनके बेटों की हमसफर होती हैं ।

गुरुग्राम ज़िला महामंत्री अनिल अत्रि ने कहा की सवाल ये है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं । क्या बड़े होते-होते हमारी मानवीय संवेदनाये इतनी गिर जाती हैं कि हम अपने माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा भी नहीं बन सकते? उनकी खिन्नता, चिड़चिड़ाहट, कम सुनना, देर से समझना जैसी शारीरिक अक्षमतायें क्या वाकई हमें इतना क्रूर बना देती हैं कि हमें वे एक बोझ लगने लगते हैं ? क्या वास्तव में वृद्धाश्रमों में रहने वाले हमारे माता-पिता हमसे दूर रहकर ज्यादा खुश रहते हैं ? क्या हमारे बच्चों पर उनका अधिकार नहीं है, क्या हम पर उनका कोई अधिकार नहीं है? क्या वे हमें छोड़ना चाहते हैं, क्या हम बूढ़े ना होगें ?

कुलदीप वशिष्ठ ने कहा की हमारे माता-पिता चाहें कितने भी भगवान के बड़े भक्त हो जायें लेकिन फिर भी वे हमें छोड़कर जाना नहीं चाहते । उन्हें सबसे ज्यादा खुशी अपने बच्चों के साथ रहने में मिलती है । शरीर हमारा भी बदलेगा, आज चल रहा है, समय गुजरेगा तो वही सारी अक्षमतायें हमारें शरीर में भी आयगीं । यह निश्चित है, तब फिर क्यूँ ना हम उन्हें अपने सीने से लगाकर रखें । हमारे माता-पिता हमारा अभिमान होने चाहियें, उनकी डाॅंट में भी हमारा सम्मान है । उनकी खिसियाहट में भी हमारा भला है । उनके त्याग का इससे बड़ा सबूत और क्या होगा कि हमारी खुशी के लिये ही वे वृद्धाश्रम जैसी उस अन्जान जगह चले जाते हैं जिसके बारे में उन्होनें कभी सोचा भी ना था । फिर भी वृद्धाश्रम में रहने वाले फरिष्तों की पीड़ा ना समझ पाये हों तो बस इतना महसूस करके देख लीजियेगा कि आप अभी अपने बच्चों को इस स्वार्थी दुनियां में छोड़कर जाने में कितना खुश होगें ..!!!

आज विप्र फ़ाउंडेशन हरियाणा के कार्यकर्ताओं ने निर्णय किया की सेक्टर 4 गुरुग्राम के ओल्ड ऐज होम में जाकर बुज़र्गो की सेवा की जाए!

इसी संदर्भ में वहाँ के संचालकों से बात कर सभी बुज़ुर्गों के दोपहर के खाने की व्यवस्था करने का निवेदन किया जिसे उन लोगों ने स्वीकार कर आज विप्र फ़ाउंडेशन को धन्य किया.!!

विप्र फ़ाउंडेशन महामंत्री योगेश कौशिक ने कहा आज जो आशीर्वाद बुज़र्गो से मिला उसके आगे लाखों करोड़ों की सम्पत्ति भी नगण्य है और उनकी सेवा कर हम धन्य हो गए है..!!

उन्होंने कहा कि विप्र फ़ाउंडेशन आगे भी आश्रम के बुज़र्गो की सेवा करता रहेगा और उनका आशीर्वाद लेता रहेगा..!!

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