कार्तिक मन्दिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित
पितरों की शांति के लिए पिंडदान उपरांत होती है कार्तिक पूजा
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र: महाभारत और पुराणों में कुरुक्षेत्र के प्राचीन तीर्थों और मंदिरों का गहन रहस्य समाहित है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण तीर्थ है—पृथुदक तीर्थ (पिहोवा), जो कुरुक्षेत्र से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां स्थित प्राचीन कार्तिकेय मंदिर की धार्मिक महत्ता इतनी गहरी है कि सैकड़ों श्रद्धालु प्रतिदिन पूजा-अर्चना के लिए पिहोवा पहुंचते हैं।
विशेष पूजा विधि से शांत होते हैं क्रूर ग्रह
इस मंदिर में भगवान कार्तिकेय का विशेष पूजन विधि से अभिषेक किया जाता है। मान्यता है कि कार्तिकेय जी का सरसों के तेल और सिंदूर से अभिषेक करने से जन्मकुंडली में मौजूद क्रूर ग्रहों का प्रभाव शांत हो जाता है। विशेष रूप से पितृ दोष, गृहस्थ सुख में अड़चनें, कारोबार में बाधाएं, धन हानि, संतान सुख की कमी, असाध्य रोग और शत्रु पीड़ा जैसी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि जब भगवान शंकर ने अपने पुत्र कार्तिकेय का राजतिलक करने का निर्णय लिया, तब माता पार्वती ने गणेश जी के लिए यह अधिकार मांगा। इस पर देवताओं ने निर्णय लिया कि जो भी पृथ्वी का चक्कर लगाकर सबसे पहले लौटेगा, वही राजतिलक का अधिकारी होगा।
गणेश जी का विजय प्राप्त करना और कार्तिकेय का क्रोध
कार्तिकेय जी ने अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा शुरू कर दी। दूसरी ओर, माता पार्वती के सुझाव पर गणेश जी ने वहां उपस्थित सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा कर भगवान शंकर को प्रणाम किया। इस प्रतीकात्मक परिक्रमा को ही संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा मान लिया गया और गणेश जी को प्रथम पूज्य का अधिकार दे दिया गया।
जब कार्तिकेय को इस बात का पता चला, तो वे अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने अपनी खाल और मांस को माता पार्वती के चरणों में रखकर शाप दिया कि जो भी स्त्री उनके इस रूप को देखेगी, वह सात जन्मों तक बांझ रहेगी। उनके क्रोध को शांत करने के लिए देवताओं ने तेल और सिंदूर से अभिषेक किया, जिसके बाद उनका क्रोध शांत हुआ।
भगवान शंकर और अन्य देवी-देवताओं ने कार्तिकेय जी को देव सेना का सेनापति बना दिया। तभी से कार्तिकेय पृथुदक पिहोवा में सरस्वती तट पर पिंडी रूप में स्थित हुए। उन्होंने कहा कि जो श्रद्धालु उनके शरीर पर तेल का अभिषेक करेगा, उसके मृत पितर बैकुंठ में प्रतिष्ठित होकर मोक्ष के अधिकारी होंगे।
कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर भगवान कार्तिकेय का व्रत और अभिषेक करने से एक वर्ष का पुण्य और कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही, सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
यह मंदिर महिलाओं के प्रवेश के लिए निषेध है, क्योंकि कार्तिकेय जी ने अपने क्रोध में नारी जाति को दर्शन का शाप दिया था। हालांकि, पुरुष श्रद्धालु यहां आकर कार्तिकेय जी की पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
धार्मिक मान्यता और आस्था का प्रतीक
कार्तिकेय मंदिर में प्रतिदिन श्रद्धालु अपनी समस्याओं के समाधान के लिए सरसों तेल और सिंदूर से अभिषेक करते हैं। इस पूजा का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि इसे करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और ग्रह दोष भी समाप्त होते हैं।
पिहोवा का कार्तिकेय मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि समाज के लिए यह एक आध्यात्मिक धरोहर भी है, जहां श्रद्धालु अपनी आस्थाओं का अभिषेक करते हैं और जीवन में शांति एवं समृद्धि की कामना करते हैं।