-प्रियंका सौरभ …….. रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस

हमारे तेज़ी से बदलते सामाजिक और राजनीतिक माहौल में महिला पुरस्कारों का महत्व और उनकी आवश्यकता आज सवालों के घेरे में है। हाल ही में हरियाणा में महिला दिवस पर एक विवादित महिला को मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित किए जाने की घटना ने इन पुरस्कारों की निष्पक्षता और गरिमा पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
आज के सांस्कृतिक परिवेश में, जहाँ प्रतिनिधित्व को प्राथमिकता दी जाती है, कुछ पुरस्कारों ने सच्ची उपलब्धियों से ध्यान हटाकर केवल दिखावे और राजनीतिक लाभ तक खुद को सीमित कर लिया है। महिला पुरस्कार केवल औपचारिकता का हिस्सा नहीं होने चाहिए, बल्कि उन्हें महिलाओं की विशिष्ट चुनौतियों और उपलब्धियों पर प्रकाश डालने और उनकी वास्तविक योग्यता को सम्मानित करने का कार्य करना चाहिए।
क्या महिला पुरस्कार अपनी गरिमा खो रहे हैं?
कई वर्षों से, महिला पुरस्कार उन क्षेत्रों में महिलाओं की अभूतपूर्व उपलब्धियों को पहचानने का प्रतीक रहे हैं, जहाँ वे लंबे समय तक उपेक्षित रही हैं। ये सम्मान सिर्फ़ समावेशन का प्रयास नहीं थे, बल्कि समाज में महिलाओं की उत्कृष्टता, दृढ़ संकल्प और संघर्ष का उत्सव थे।
हालाँकि, हाल के वर्षों में इन पुरस्कारों की अखंडता पर संदेह बढ़ा है। राजनीतिक हस्तक्षेप, पूर्वाग्रहपूर्ण चयन और पुरस्कारों का राजनीतिकरण उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं। योग्यता और वास्तविक उत्कृष्टता के बजाय, चयन समितियाँ अब राजनीतिक रूप से सही फैसले लेने के दबाव में हैं। जब पुरस्कार किसी व्यक्ति की असली क्षमताओं के बजाय किसी विशिष्ट राजनीतिक या वैचारिक एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए दिए जाते हैं, तो वे अपनी गरिमा खो देते हैं।
समानता की आड़ में महिला पुरस्कारों का ह्रास
कुछ लोग तर्क देते हैं कि अगर हम समानता की ओर बढ़ रहे हैं, तो लिंग-विशिष्ट पुरस्कारों की आवश्यकता ही क्यों है? क्या समानता का अर्थ यह है कि उन मंचों को समाप्त कर दिया जाए जो कभी महिलाओं की आवाज़ को सशक्त बनाते थे?
वास्तव में, यह चिंताजनक प्रवृत्ति उभर रही है कि महिला पुरस्कारों को या तो निरर्थक बना दिया गया है, या फिर उनका उद्देश्य पूरी तरह से बदल दिया गया है। प्रतिभा और उपलब्धि का जश्न मनाने के बजाय, पुरस्कार केवल “राजनीतिक शुद्धता” के नाम पर बांटे जाने लगे हैं। जब विजेता का चयन उसकी उपलब्धियों के बजाय अन्य कारकों के आधार पर किया जाता है, तो इससे पुरस्कारों की विश्वसनीयता पर गहरा असर पड़ता है।
महिला पुरस्कार: गरिमा बचाने की ज़रूरत
महिला पुरस्कारों का वास्तविक उद्देश्य महिलाओं की कड़ी मेहनत, संघर्ष और समर्पण को मान्यता देना होना चाहिए। केवल सांकेतिक इशारों से या फिर दिखावे के लिए महिलाओं को सम्मानित करने से समाज में महिलाओं के वास्तविक योगदान की अवहेलना होती है।
महिला पुरस्कारों की गरिमा बनाए रखने के लिए, निम्नलिखित सुधार आवश्यक हैं:
- सख्त चयन प्रक्रिया – यह सुनिश्चित किया जाए कि केवल वास्तविक योग्यता और उत्कृष्टता के आधार पर पुरस्कार दिए जाएं।
- राजनीतिक प्रभाव से मुक्ति – पुरस्कार समितियों को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाया जाए, ताकि वे बिना किसी बाहरी दबाव के सही निर्णय ले सकें।
- पारदर्शिता – यह स्पष्ट किया जाए कि पुरस्कारों का निर्धारण किन मानदंडों पर किया गया है। इससे जनता में विश्वास बढ़ेगा।
- महिलाओं की विविध उपलब्धियों को मान्यता – पुरस्कार केवल मुख्यधारा के क्षेत्रों (जैसे फिल्म, राजनीति, खेल) तक सीमित न रहकर, विज्ञान, तकनीक, उद्यमिता, समाज सेवा और अन्य क्षेत्रों में योगदान देने वाली महिलाओं को भी सम्मानित करें।
निष्कर्ष
आज, जब हमें महिला उपलब्धियों का जश्न मनाना और उनकी गरिमा को बनाए रखना चाहिए, तब महिला पुरस्कारों की घटती निष्पक्षता चिंता का विषय बन गई है। यदि हम वास्तव में महिलाओं के योगदान की सराहना करना चाहते हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि महिला पुरस्कार केवल औपचारिकता न बनें, बल्कि सच्ची योग्यता और उपलब्धियों का प्रतीक बनें।
महिलाओं की मेहनत और संघर्ष की सम्मानजनक स्वीकृति केवल एक औपचारिक इशारे के रूप में नहीं, बल्कि उनके योगदान को वास्तविक श्रद्धांजलि के रूप में दी जानी चाहिए। समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए यह अनिवार्य है कि महिला पुरस्कारों की अखंडता, निष्पक्षता और गरिमा को बरकरार रखा जाए।